SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संकर मिय] ( ५९९) [शंकराचार्य का समय है। कवि के पिता का नाम बालकृष्ण तथा पितामह का नाम तुष्टीराज पा। कवि ने इस काव्य की रचना महाराज वेतसिंह से प्रोत्साहन प्राप्त कर की पी। यह रचना अपूर्ण है एवं अप्रकाशित भी। (इसके विवरण के लिए देखिए सी० सी० १४७)। इसकी रचना तीन उबासों में हुई है। अन्य के आरम्भ में राजा चेतसिंह के प्रति मंगलकामना करते हुए गणेश की वन्दना की गयी है-उद्यसिन्दूरदण्डप्रतिकृतिविलसदभालबालेन्दुखण्डः प्रत्यूहव्यूहबण्ड: पददलितवलीमण्डिताखण्डमः। वेगादु धूतशुण्डः सुररिपुविजयोद्दण्डदणः प्रचण्डः कुर्याच् श्रीचेतसिंह-क्षितिपतिभवने मंगलं वक्रतुः ॥१॥३। ___ आधारप्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी। शंकर मिभ-वैशेषिक दर्शन के प्रसिद्ध आचार्यों में श्रीशंकर मिश्र का नाम आता है। ये दरभंगा के निकटस्थ सरिसव ग्राम के निवासी थे। इनका समय १५ बतक है। इन्होंने अपने ग्राम में 'सिद्धेश्वरी' के मन्दिर की स्थापना की थी जो आज भी स्थित है। इनके पिता का नाम भवनाथ मिश्र था जो मीमांसा एवं व्याकरण प्रभृति अनेक शास्त्रों के प्रकाण विद्वान् थे। ये अयाची मिश्र के नाम से प्रसिद्ध थे। इनके पितृव्य जीवनाथ मिश्र भी अपने समय के विख्यात विद्वान् थे। शंकर मिश्र ने अनेक ग्रन्थों की रचना की है जिनका विवरण इस प्रकार है-उपस्कार ( यह कणाद सूत्रों पर रचित टीका है ), कणादरहस्य, आमोद ( यह 'न्यायकुसुमान्जलि' की व्याख्या है ), कल्पलता ( आत्मतत्वविवेक नामक ग्रन्थ की टीका ) आनन्दवर्धन ( श्रीहषरचित खण्डनखण्डखाद्य के ऊपर रचित टीका), मयूख (चिन्तामणि नामक ग्रन्थ की टीका ) कण्ठाभरण ( न्यायलीलावती के ऊपर रचित व्याख्या ग्रन्थ), वादिविनोद ( यह वादविवाद संबंधी स्वतन्त्र ग्रन्थ है), भेदरत्नप्रकाश ( इसमें न्याय एवं बैशेषिक के द्वैतसिद्धान्त का निरूपण है तथा श्रीहर्षकृत खण्डनखण्डखाद्य का खण्डन किया गया है)। आधार ग्रन्थ-१-इण्डियन फिलॉसफी भाग-२-डॉ. राधाकृष्णन् । २-भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । शंकराचार्य-आचाय शंकर भारतीय तत्वचिंतन के महान् विचारकों में से हैं। वे विश्व के महान दार्शनिक तथा अद्वैतवाद नामक सिखान्त के प्रवर्तक हैं। उनका जन्म ७८८ ई. में ( संवन् ८४५ ) तथा निर्वाण ८२० ई० में हुआ। केरल राज्य के कालटी नामक ग्राम में आचार्य का जन्म नम्बूद्री बाह्मण के घर हुआ था। उनके पितामह का नाम विवाधिराज या विद्यापिप तथा पिता का नाम शिवगुरु था। उनकी माता का नाम 'सती' अथवा विशिष्टा था। शंकर बाल्यावस्था से ही प्रतिभासम्पन्न थे। उन्होंने तीन वर्ष में अपनी मातृभाषा मलयालम सीख ली थी तमा पाँच वर्ष की उम्र में संस्कृत बोलने लग गए थे। ये बाचायं गौडपाद के शिष्य गोविन्द भगवत्पाद के शिष्य थे। बाठ वर्ष की अवस्था में उन्होंने पारो वेदों का बनयम कर लिया था तथा द्वादश वर्ष में सर्वशास्त्रविद हो गए थे। बोलह वर्ष की अवस्था
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy