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________________ शिशुपालवध ] ( ५७४ ) [शिशुपालवध तृतीय सर्ग-इसमें सेना सहित श्रीकृष्ण के इन्द्रप्रस्थ प्रस्थान का वर्णन है । चतुर्थसर्गइसमें श्रीकृष्ण की सेना के रैवतक पर्वत पर पहुंचने तथा रैवतक की शोभा का वर्णन है। पञ्चम सर्ग-श्रीकृष्ण सेना सहित रैवतक पर्वत पर विश्राम करते हैं। इस सर्ग में घोड़ों एवं यानों से उतरती हुई स्त्रियों का वर्णन किया गया है। षष्ठ सर्ग-इसमें षड् ऋतुओं का आगमन तथा यमकालंकार के द्वारा ऋतु-वर्णन है । सप्तम सर्गइसमें वन-विहार का विलासपूर्ण चित्र तथा यदु-दम्पतियों का पुष्पचयन आदि वणित है । अष्टम सर्ग-इसमें जल-विहार का वर्णन है। नवमसर्ग-इसका प्रारम्भ सूर्यास्त से होता है। इसमें चन्द्रोदय, स्त्रियों के शृङ्गार, सूर्यास्त एवं दूती-प्रेषण का वर्णन है। एकादश सर्ग में प्रभात का मनोरम वर्णन तथा द्वादश सर्ग-में श्रीकृष्ण के पुनः प्रयाण का वर्णन है । त्रयोदश सर्ग में श्रीकृष्ण एवं पाण्डवों का समागम तथा युधिष्ठिर-श्रीकृष्णवार्तालाप का वर्णन है । चतुर्दश सर्ग-इस सर्ग में राजसूय आरम्भ होता है। इसमें कवि ने दर्शन, मीमांसा एवं कर्मकाण्ड-विषयक अपने ज्ञान का परिचय दिया है। इसी सगं मैं युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है । भीष्म की ओर से श्रीकृष्ण को अर्घ्यदान देने का प्रस्ताव होता है। भीष्म श्रीकृष्ण की प्रार्थना करते हैं। पञ्चदश सगंश्रीकृष्ण की पूजा से रुष्ट होकर शिशुपाल भीष्म, युधिष्ठिर एवं भीष्म को खरी-खोटी सुनाता है। भीष्म उसे चुनौती देते हैं और शिशुपाल-पक्ष के राजा क्षुब्ध हो जाते हैं। शिशुपाल की सेना युद्ध के लिए तैयार होती है। षष्ठदश सर्ग-इस सर्ग में शिशुपाल के दूत द्वारा श्रीकृष्ण को श्लेषगर्भ सन्देश सुनाने का वर्णन है। जिसमें उनकी निन्दा और स्तुति दोनों का भाव है। श्रीकृष्ण की ओर से दूत का उत्तर सात्यकी देता है। सप्तदश सर्ग-इस सर्ग में सेना की तैयारी एवं वीरों का सन्नद्ध होना वर्णित है । अष्टदश सर्ग-इसमें दोनों सेनाओं का समागम एवं भयंकर युद्ध का वर्णन किया गया है। उन्नीसवें सर्ग में चित्रबन्ध वाले श्लोकों में द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन किया गया है तथा बीसवें सर्ग में शिशुपाल एवं श्रीकृष्ण का अस्त्रयुद्ध तथा शिशुपाल का वध वर्णित है । अन्त में कवि ने अपने वंश का परिचय दिया है। __महाभारत की छोटी घटना के आधार पर इस महाकाव्य की कथावस्तु संघटित की गयी है। कवि ने मूलकथा में अपनी उद्भावनाशक्ति एवं कल्पना के प्रयोग के द्वारा अनेक परिवर्तन उपस्थित किया है। प्रथम सर्ग में आकाशमार्ग से नारद का आगमन एवं कृष्ण से इन्द्र का सन्देश सुनाना, द्वितीय सर्ग में बलराम, उद्धव एवं कृष्ण का राजनीतिक वार्तालाप, प्राकृतिक दृश्यों एवं यज्ञ का विस्तृत वर्णन, ये कवि की मौलिक उद्भावनायें हैं। जहां तक महाकाव्योचित कथानक का प्रश्न है, शिशुपाल. वध की कथावस्तु संक्षिप्त होने के कारण अपर्याप्त है । महाकाव्य के लिए जीवन का विस्तार अपेक्षित है किन्तु शिशुपालवध में जीवन के विस्तृत पक्षों का निदर्शन नहीं है। श्रीकृष्ण के जीवन की एक छोटी-सी घटना को महाकाव्य का रूप दिया गया है। वस्तुतः यह कथा एक खण्डकाव्य के लिए ही उपयुक्त है। इसके अनेक प्रसंग जैसे, पानगोष्ठी, रूप-विन्यास, प्रातः, संध्या एवं ऋतुवर्णन आदि कथानक से सम्बद्ध न होने के कारण स्वतन्त्र रूप से लिखे गए-से लगते हैं। कथावस्तु के विकास
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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