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________________ वैदिक देवता] ( ५४३ ) [वैदिक देवता करती है। चित्र-विचित्र किरणों से सम्पन्न होनेवाला ज्योतिष्मान् सूर्य इसी शक्ति के सहारे चलता है। आकाश में उस सूर्य को मेघ तथा वृष्टि से आप लोग छिपा देते हैं । जिससे पर्जन्य मधुमान् जलबिन्दुओं की वर्षा कर जगती को मधुमयी, मंगलमयी तथा मोदमयी बना देता है। यह समस्त गौरव है आपकी मायाशक्ति का।' वरुण सर्वशक्तिमान् देव के रूप में चित्रित किये गये हैं, जिनके अनुशासन से नक्षत्र आकाश में अपनी गति का निश्चय करते हैं एवं चन्द्रमा रात्रि में चमकता है । उनके अनुशासन में ही संसार के पदार्थ अणु से महत्तर बनते हैं और उनके नियम को उल्लंघन करने पर किसी भी व्यक्ति को क्षमा नहीं किया जाता। वे पाशधारी हैं जिससे दोषियों को दण्ड दिया करते हैं। नियम की निश्चितता एवं दृढ़ता के कारण वरुण 'धृतवत' कहे जाते हैं। वे सर्वज्ञ हैं। संसार का पत्ता-पत्ता उनके ही अनुशासन से डोलता है । वे अपने अनुग्रह के द्वारा अपराधी को क्षमा कर देते हैं, जब वह अपना अपराध स्वीकार कर ले। वे कमंद्रष्टा ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित किये गए हैं। वरुण का लोक यह नीला आकाश है जिसके द्वारा वे जगत् पर आवरण डालते हैं; संसार को ढोक लेते हैं। वरुण का अर्थ आवरणकर्ता है-वृणोतिसर्वम्। कालान्तर में वरुण की शक्ति में ह्रास होता है और वैदिक युग के अन्त होते-होते ये जल के देवता मात्र बन कर रह जाते हैं। उनका उल्लेख ग्रीस देश के देवताओं में भी हुआ है जहां उन्हें 'यूरेनस' कहा गया है। वोगाजकोई के शिलालेख में भी वरुण मितानी लोगों के देवता के रूप में विद्यमान हैं तथा ई० पू० १५०० वर्ष में उनके उपास्य के रूप में उल्लिखित हैं। वरुण का रूप निम्नांकित उदरण में देखा जा सकता है-'वरुण के शासन से धौ और पृथिवी पृथक्-पृथक रहते हैं; उसीने स्वर्ण चक्र (सूर्य) आकाश को धमकाने के लिए बनाया भोर इसी चक्र के लिए विस्तृत पथ का निर्माण किया। गगनमंडल में जो पवन बहता है, वह वरुण का निःश्वास है । उसी के अध्यादेश से चमकीला चांद रात में सन्चार करता है, और रात में ही तारे चमकते हैं जो दिन में लुप्त से हो जाते हैं । वरुण ही नदियों को प्रवाहित करता है, उसी के शासन से वे सतत बहती हैं। उसी की रहस्यमयी शक्ति के कारण नदियां वेग से समुद्र में जा मिलती हैं और फिर भी समुद्र में बाढ़ नहीं आती। वह उलटे रखे हुए पात्र से पानी टपकाता है और भूमि को आद्र करता है। उसी की प्रेरणा से पर्वत मेघ से आच्छन्न होते हैं। समुद्र से तो इसका सम्बन्ध बहुत स्वल्प है, संस्कृत साहित्य का इतिहास-मैक्डोनल पृ० ६३ । सूर्य-सूयं वैदिक देवताओं में अत्यन्त ठोस आधार पर अधिष्ठित है। वह ग्रीक देवताओं में 'हेलियाँस' का पर्याय है। वह प्रकाश से शाश्वत रूप से सम्बद्ध है तथा समस्त विश्व के गढ़ रहस्य का द्रष्टा है। उसे आँखें भी हैं जिससे वह भी सभी प्राणियों के सकृत एवं ककृत को देखता है। यह सभी चराचर की आत्मा तथा अभिभावक रूप में चित्रित है। उसके उदय होते ही सभी प्राणी कार्यरत हो जाते हैं। वह सात अश्वों से युक्त एक रथ पर आरूक रहता है। अस्तकाल में जब वह अपने घोड़ों को
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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