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वेद का समय-निरूपण]
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[वेद का समय-निरूपण
प्राचीन या पचासो हजार वर्ष पूर्व निश्चित कर प्रकारान्तर से इस विचार का पोषण किया है। ठीक इसके विपरीत पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि वैज्ञानिक ढंग से इस प्रश्न के समाधान की ओर रही है। वे वेदों को ऋषियों की रचना मानकर उन्हें पौरुषेय स्वीकार करते हैं। वेदों को मनुष्य की कृति मान कर उन्होंने जो उनकी निश्चित सीमा निर्धारित की है उसे भी अन्तिम सत्य नहीं माना जा सकता, पर उनकी शोधात्मक पद्धति एवं निष्कर्ष सर्वथा निर्मूल एवं उपेक्षणीय भी नहीं है। विन्टरनित्स का कहना है कि "किन्तु वेद भारतीय वाङ्मय की प्राचीनतम कृति है, इण्डो-आर्यन सभ्यता का मूल आधार एवं स्रोत है, सो, प्रस्तुत प्रश्न का किचित् समाधान ऐतिहासिकों, पुरातत्वविदों, अपि च भाषाविदों के लिए भी पर्याप्त महत्त्वपूर्ण है। और सचमुच, यदि इण्डो-आर्यन तथा इण्डो-यूरोपियन संस्कृतियों के ऐतिहासिक युगों का कुछ निश्चित क्रम बिठाया जा सकता है, तो वह भी भारतवर्ष में निष्पन्न आर्य-संस्कृति के प्राचीनतम अवशेषों के विभिन्न कालों को यथाक्रम स्थिर करके ही ( सिद्ध किया जा सकता है ); अन्यथा नहीं।' प्राचीन भारतीय साहित्य भाग १, खण्ड १ पृ० २२४ । ___ मैक्समूलर का विचार-पाश्चात्य विद्वानों में सर्वप्रथम मैक्समूलर ने इस प्रश्न की छानबीन में जीवन पर्यन्त शोध-कार्य किया। उन्होंने १८५९ ई० में अपने ग्रन्थ 'प्राचीन संस्कृत साहित्य' में सर्वप्रथम ऋग्वेद का निर्माण काल खोजने का प्रयत्न किया और निर्णय दिया कि उसकी रचना विक्रमपूर्व १२०० वर्ष हुई थी। उन्होंने अपने निर्णय का 'केन्द्रीय तिथि-बिन्दु' बौद्धधर्म के उदय को मान कर बताया कि उस समय तक सभी वैदिक साहित्य (संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् एवं कल्पादि) का निर्माण हो चुका था, क्योंकि ब्राह्मणों और श्रौतसूत्रों में वर्णित यज्ञानुष्ठान का ही बुद्धदेव द्वारा घोर विरोध किया गया था। उन्होंने समस्त वैदिक युग को चार भागों में विभाजित किया-छन्दकाल, मन्त्रकाल, ब्राह्मणकाल एवं सूत्रकाल तथा प्रत्येक युग के लिए दो-दो सौ वर्षों का समय निश्चित करते हुए सूत्रकाल को ६०० वर्ष पूर्व, ब्राह्मणकाल को ६०० से २००ई०पू० और मन्त्रयुग को १००० वि०पू० माना । उनके अनुसार १२०० वि० पू० से १००० तक वैदिक संहिताओं का रचना-काल है। मैक्समूलर की इस धारणा को पाश्चात्य विद्वानों ने मान्यसिद्धान्त के रूप में ग्रहण किया। तीस वर्ष बाद मैक्समूलर ने 'भौतिकधर्म' शीर्षक जिफोर्ड भाषणमाला में बताया कि संसार की कोई भी ऐसी शक्ति नहीं है जो यह निश्चित कर दे कि वेदोंकी रचना १००० या १५०० या २००० या ३००० वर्ष ई० पू० हुई थी। उनका कहना है कि १००० ई० पू० तक वेद बन चुके थे; १५०० या २००० या ३००० ई० पू० तक प्रथम वैदिक कविता सुनी गई, इसे जानने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं।" मैक्समूलर का काल-निर्णय काल्पनिक आधारों पर प्रतिष्ठित है। तथा किसी भाषा या साहित्य के विकास के लिए दो सौ वर्षों की सीमा भी पर्याप्त अनुचित है। पाश्चात्य विद्वानों ने भी मैक्समूलर के इस विचार की आलोचना की है। हिटनी ने उनकी इस बन्ध-परम्परा की स्पष्ट सब्दों में निन्दा की थी तथा श्रेटर ने १५००