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________________ वेदांग ज्योतिष ] ( ५२३ ) [ वेदांग ज्योतिष इसमें इसकी नारीसुलभ कोमलता प्रदर्शित होती है । वह पत्नी के रूप में भीम को अपने शरीर से असावधानी नहीं रखने पर जोर देती है और भीम एवं अर्जुन की मृत्यु का समाचार सुनकर जल मरने को प्रस्तुत हो जाती है । भानुमती आदर्श हिन्दू गृहिणी के रूप में दिखाई पड़ती है जो सदा अपने पति के मंगल की कामना करती है तथा इसीलिए व्रत करती है । वह एक धर्म भीरु नारी की भाँति दुःस्वप्न पर विश्वास कर, भावी आशंका से पीड़ित होकर, उसके परिहार का उपाय करती है । रस- 'वेणीसंहार' वीररसप्रधान नाटक है । इसके प्रथम अंक में ही वीररस की जो अजस्त्र धारा प्रवाहित होती है वह अप्रतिहत गति से अन्त तक चलती है। बीच-बीच में शृङ्गार, करुण एवं अन्य रसों का भी समावेश किया गया है, किन्तु इनकी प्रधानता नहीं है। वीरों के दर्पपूर्ण वार्तालाप एवं कटूक्तियों में रौद्ररस का भी रूप दिखाई पड़ता है । द्वितीय अंक में दुर्योधन की प्रेमिल -भंगिमाओं में शृङ्गाररस का वर्णन है । वीररस के साथ-ही-साथ इसमें करुण रस की सर्वत्र छाया दिखाई पड़ती है । वृषसेन एवं कणं की मृत्यु से दुर्योधन के शोकमग्न होने में करुण रस की व्यब्जना हुई है । षष्ठ अंक चार्वाक द्वारा भीम और अर्जुन की मृत्यु का समाचार पाकर युधिष्टिर और द्रौपदी के शोकग्रस्त होने में भी करुण रस की अभिव्यक्ति हुई है । कतिपय विद्वान् इस नाटक को दुःखान्त मानते हुए, करुण रस का ही प्राधान्य मानते हैं । तृतीय अंक के प्रवेशक में राक्षस और राक्षसी के वार्त्तालाप में बीभत्सरस दिखाई पड़ता है । सम्पूर्ण नाटक में वीररस की ही प्रधानता है और अन्य रस उसके सहायक रूप में प्रयुक्त हुए हैं । भीम की गर्वोक्ति में वीररस की व्यंजना हुई है । योगिराज श्रीकृष्ण के दुर्योधन की सभा से असफल लौटने में भीमसेन की उक्ति में शान्त रस की छटा दिखाई गयी है आधारग्रन्थ - १. वेणीसंहार - हिन्दी अनुवाद सहित - चौखम्बा प्रकाशन । २. वेणीसंहार : ए क्रिटिकल स्टडी ( अंगरेजी ) ए० वी० गजेन्द्रगडकर । ३ टुजेडिज इन संस्कृत --- प्रोसिडिंगस् ऑफ एट ओरिएन्टल कॉनफेरेन्स – १९३५, पृ० २९९ लेखक श्रीरामचन्द्रराव । ४. संस्कृत काव्यकार - डॉ० हरिदत्तशास्त्री । ५. संस्कृत नाटककार - कान्तिकिशोर भरतिया । ६. संस्कृत नाटक ( हिन्दी अनुवाद ) कीथ । ७. संस्कृत नाटक-समीक्षा - इन्द्रपाल सिंह 'इन्द्र' | वेदांग ज्योतिष - यह भारतीय ज्योतिषशास्त्र का सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ है । विद्वानों ने भाषा एवं शैली के परीक्षण के आधार पर इसका समय ई० पू० ५०० माना है । इसमें कुल ४४ श्लोक हैं। इसके दो पाठ प्राप्त होते हैं- 'ऋग्वेद ज्योतिष' तथा 'यजुर्वेद ज्योतिष' 'ऋग्वेद ज्योतिष' में ३६ श्लोक हैं और 'यजुर्वेद ज्योतिष' में ४४ । दोनों के अधिकांशतः श्लोक मिलते-जुलते हैं पर उनके क्रम में भिन्नता दिखाई पड़ती है । 'वेदांग ज्योतिष' में पंचाग बनाने के आरम्भिक नियमों का वर्णन है । इसमें महीनों का क्रम चन्द्रमा के अनुसार है और एक मास को तीस भागों में विभक्त कर प्रत्येक भाग को तिथि कहा गया है। इसके लेखक का पता नहीं चलता पर ग्रन्थ के अनुसार किसी लगध नानक विद्वान् से ज्ञान प्राप्त करके हो इसके लेखक ने इसकी
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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