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________________ वेणीसंहार ] ( ५१७ ) [ वेणीसंहार दुर्योधन के दल का चार्वाक नामम राक्षस संन्यासी का वेष धर कर आता है और कहता है कि उसने भीम एवं दुर्योधन का गदा-युद्ध तो देख लिया है पर प्रचण्ड धूप के कारण, तृषार्त हो जाने से, अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध नहीं देख सका । उसने बताया कि भीम की मृत्यु हो चुकी है । कृष्ण को लेकर बलराम मथुरा चले गए हैं, अतः गदायुद्ध में अर्जुन की मृत्यु निश्चित है । इस हृदय विदारक समाचार को सुन कर युधिष्ठिर और द्रौपदी शोकाभिभूत होकर मरने को तत्पर होते हैं और चार्वाक की सहायता से चिता तैयार की जाती है । चार्वाक उन्हें और भी अधिक उकसाता है और चिता तैयार होने पर वहाँ से खिसक जाता है । वह छिप कर दोनों के चितारोहण की प्रतीक्षा करने लगता है । उसी समय नेपथ्य में कोलाहल सुनाई पड़ता है और युधिष्टिर दुर्योधन का आगमन जान कर शस्त्र धारण करते हैं तथा द्रौपदी छिपने का प्रयत्न करती है । तत्क्षण दुर्योधन के शोणित से रंजित भीमसेन आकर द्रौपदी को पकड़ कर उसका वेणी संहार करना चाहते हैं और युधिष्ठिर उन्हें दुर्योधन समझकर भुजा में कस कर मारना चाहते हैं । भीमसेन उन्हें अपना परिचय देता है और कृष्ण तथा अर्जुन भी आ जाते हैं। भरत वाक्य के पश्चात् नाटक की समाप्ति हो जाती है । । 'वेणीसंहार' का उपर्युक्त कथानक 'महाभारत' पर आधृत होते हुए भी कवि द्वारा अनेक परिवत्र्तन कर लोकप्रिय बनाया गया हैं । इसमें भट्टनारायण की काव्यचातुरी तथा नाट्यकला दोनों परिलक्षित होती है । यह संस्कृत का अद्भुत नाटक तथा इसका नायकत्व भी विवाद का प्रश्न बना हुआ है। विद्वानों ने युधिष्ठिर, भीम एवं दुर्योधन तीनों को ही इसका नायक मानकर अपने मत की पुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार के तर्क उपस्थित किये हैं इसमें कोई भी पात्र ऐसा नहीं है जो नायक की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके पर साथ ही कई पात्र ऐसे हैं जो नायक के पद पर अधिष्ठित किये जा सकते हैं। अब यहां हमें विचार करना है कि इस पद के लिए कौन-सा पात्र अधिक उपयुक्त है । पहले दुर्योधन को लिया जाय - इस नाटक की अधिकांश घटनाएं दुर्योधन से सम्बद्ध हैं तथा वह वीरता एवं आत्मसम्मान की मूर्ति है । वह स्नेही भ्राता, विश्वस्त मित्र तथा कट्टर शत्रु के रूप में प्रस्तुत किया गया है । नाटक के मंच पर वह अधिक से अधिक प्रदर्शित किया गया है। द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा पंचम अ में तो वह प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित रहता है तथा प्रथम अङ्क में कृष्ण को बन्दी बनाने में उसका उल्लेख किया गया है । अन्तिम अंक में भी भीमसेन के साथ गदा-युद्ध करने में उसका कई बार उल्लेख हुआ है। कौरवों का राजा होने के कारण वह नायक - पद के लिए सर्वथा उपयुक्त है । कतिपय विद्वान् 'वेणीसंहार' को दुःखान्त रचना मानकर उसका नायक दुर्योधन की ही स्वीकार करते हैं। पर, इस मत में भी दोष दिखाई पड़ता है, क्योंकि भारतीय नाट्य परम्परा के अनुसार नायक का वध वर्जित है - 'नाधिकारिवधं कापि' । दशरूपक ३१३६, 'अधिकृतनायकवधं प्रवेशकादिनाऽपि न सूचयेत् ।' वही धनिक की टीका अन्य कई कारण भी ऐसे हैं जिनसे दुर्योधन इस नाटक का नायक नहीं हो सकता । नाट्यशास्त्रीय व्यवस्था के अनुसार नायक का धीरोदात्त होना आवश्यक है, जो महा
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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