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________________ विबुधानन्द प्रबन्ध चम्पू] (५०७ ) [विशालभंजिका काकतीयवंशी राजा प्रतापरुद्र के आश्रित कवि थे जिनकी प्रशंसा में इन्होंने 'प्रतापरुद्रीय' के उदाहरणों की रचना की है। इनका समय १४ वीं शती का प्रारम्भ है । प्रतापरुददेवस्य गुणानाश्रित्य निर्मितः। अलङ्कारप्रबन्धोऽयं सन्तः कणोत्सवोऽस्तुं वः ।। प्रताप० ११९ । इस ग्रन्थ के तीन भाग हैं-कारिका, वृत्ति एवं उदाहरण एवं तीनों के ही लेखक विद्यानाथ हैं। इस पर 'काव्यप्रकाश' ( मम्मट कृत ) एवं 'अलंकारसर्वस्व' ( रुय्यक रचित ) का पूर्ण प्रभाव है । पुस्तक नौ प्रकरणों में विभक्त है और नायिकाभेद, नायक, काव्य, नाटक, रस, दोष, गुण, शब्दालंकार, अर्थालंकार तथा मित्रालंकार का वर्णन है। इस पर कुमारस्वामी कृत रत्नायण टीका मिलती है और रत्नशाण नामक अन्य अपूर्ण टीका भी प्राप्त होती है। इस ग्रन्थ का प्रचार दक्षिण में अधिक है । इसका प्रकाशन बम्बे संस्कृत सीरीज से हुआ है जिसके सम्पादक श्री के० पी० त्रिवेदी हैं। आधारग्रन्थ-१.त्रिवेदी द्वारा सम्पादित-प्रतापरुद्रीय । २. संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास-काणे । ३. अलंकारानुशीलन-राजवंश सहाय 'हीरा'। विबुधानन्द प्रबन्ध चम्पू-इस चम्पूकाव्य के रचयिता का नाम वेंकट कवि है। इनका समय अट्ठारहवीं शताब्दी के आसपास है। इनके पिता का नाम वीर. राघव था। इस ग्रन्थ की कथा काल्पनिक है जिसमें बालप्रिय तथा प्रियंवद नामक व्यक्तियों की बादरिकाश्रम की यात्रा का वर्णन है जो मकरंद एवं शीलवती के विवाह में सम्मिलत होने जा रहे हैं। दोनों ही यात्री शुक हैं। कवि वैष्णव है। अन्य के प्रारम्भ में उसने वेदान्तदेशिक की वन्दना की है-कवितार्किककेसरिणं वेदान्ताचार्यनामधेयजुषम् । बाम्नायरक्षितारं कमपि प्रणमामि देशिकं शिरसा ॥ यह काव्य अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण डी० सी० मद्रास १२३५१ में प्राप्त होता है। आधारग्रन्थ-१. चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययनडॉ० छविनाथ त्रिपाठी। विद्धशालभंजिका-राजशेखर कृत नाटिका है। इसमें चार अंक हैं तथा इसकी रचना 'मालविकाग्निमित्र', 'रत्नावली', एवं 'स्वप्नवासवदत्तम्' के आधार पर हुई है। इसमें कवि ने राजकुमार विद्याधरमह एवं मृगांकावली और कुवलयमाला नामक दो राजकुमारियों की प्रणय-कथा का वर्णन किया है। प्रथम अंक में लाट देश के राजा ने अपनी पुत्री मृगांकावली को मृगांकवर्मन नामक पुत्र घोषित कर राजा विद्याधरमब की राजधानी में भेजा। एक दिन विद्याधर ने अपने विदूषक से बतलाया कि उसने स्वप्न में देखा है कि जब वह एक सुन्दरी को पकड़ना चाहता है तो वह मोतियों की माला वहां छोड़कर भाग जाती है। विद्याधर का मंत्री इस बात को जानता था कि मृगांकवर्मन लड़की है और ज्योतिषियों ने उसके सम्बन्ध में भविष्यवाणी की है कि जिसके साथ उसका विवाह होगा वह चक्रवर्ती राजा बनेगा। इसी कारण उसने मृगांकवर्मन् को राजा के निकट रखा। जिस समय मृगांकवर्मन् राजा के पास बाया उसने देखा कि राजा अपनी प्रेयसी विवशालभंजिका के गले में मोतियों की माला गल
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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