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________________ वासुदेव विजय ] (५०२.) [विकटनितम्बा छटा छिटका देता है। वाल्मीकि प्रकृति के कवि हैं। इन्होंने अपनी रामायण में उन्मुक्त रूप से प्रकृति का चित्रण किया है। किसी भी स्थिति में कवि प्रकृति से दूर नहीं रहता और किसी-न-किसी रूप में प्रकृति को उपस्थित कर देता है। प्रकृति-चित्रण में विविधता दिखाई पड़ती है, फलतः कवि प्रकृति के न केवल कोमल दृश्यों का ही वर्णन करता है, अपितु भयंकर एवं कठोर रूपों का भी निदर्शन करते हुए दिखाई पड़ता है। ध्यामिश्रितं सर्जकदम्बपुष्पैनवं जलं पर्वतधातुताम्रम् । मयूरकेकाभिरनुप्रयातं शैलापगाः शीघ्रतरं वहन्ति ॥ मेघाभिकामा परिसंपतन्ति संमोदिताः भातिबलाकपंक्तिः । वातावधूता परपोपरीकी लम्बेव माला रुचिराम्बरस्य । किष्किन्धाकाण्ड २८१८,२३ । “शैलनदियां उस जल को, जिसमें सज और कदम्ब के फल बह रहे हैं, जो पर्वत की धातुओं से ताम्रवर्ण हो रहा है और जिसमें मोरों की केकावाणी की अनुगुन्ज है, तेजी से बहा कर ले जाती हैं । मेषों की कामना रखने वाली, उड़ती हुई श्वेत बकपंक्ति श्रेष्ठ श्वेत पक्षों से निर्मित, हवा में डोलती हुई, आकाश की सुन्दर माला-सी जान पड़ती है ।" आदि कवि ने शब्द-क्रीड़ा की प्रवृत्ति भी प्रदर्शित की है। वर्षा-वर्णन (किष्किन्धाकाण्ड) एवं चन्द्रोदय-वर्णन (लंकाकाण्ड) में यह प्रवृत्ति अधिक है। निद्रा शनैः केशवमभ्युपैति द्रुतं नदी सागरमभ्युपैति । हृष्टा बलाका धनमभ्युपैति कान्ता सकामा प्रियमभ्युपैति । किष्किन्धाकाण्ड २८।२५ । "पोरे-धीरे निशा केशव को प्राप्त होती है, नदी तेजी से सादर तक पहुंचती है, हर्षभरी बमुली वादापास पहुंचती है है और कामनावती रमणी प्रियतम के पास ।" रामायण में अधिकांशतः अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग हुमा है, पर सगं के अन्त में बसन्ततिलका, वंशस्थ या द्रुतविलंबित छन्द प्रयुक्त हुए हैं। इसकी भाषा सरल एवं विषयानुसारिणी है । कवि ने सर्वत्र वर्णन-कौशल का प्रदर्शन कर अपनी बद्भुत काव्यप्रतिभा का परिचय दिया है। वाल्मीकि संस्कृत में रस-धारा के प्रथम प्रयोक्ता महाकवि हैं। इनके सम्बन्ध में अनेक प्रशस्तियां प्राप्त होती हैं उनमें से कुछ को उद्धृत किया वाता है। १-यस्मादियं प्रथमतः परमामृतोषनिघोषिणी सरससूक्तितरङ्गभङ्गिः । गंगेव धूर्जटिजटाञ्चलतः प्रवृत्ता वृत्तेन वाक्तमहमादिकवि प्रपयें ॥ सूक्तिमुक्तावली ४॥३९। २-चर्चाभिश्चारणानां क्षितिरमण ! परां प्राप्य संमोदलीला मा कीर्तेः सोविदल्लानवगणय कविवातवाणीविलासान् । गीतं ख्यातं न नाम्ना किमपि रघुपतेरद्य यावत् प्रसादाद, वाल्मीकेरेव धात्रीं धवलयति यशोमुद्रया रामचन्द्रः । वासुदेव विजय-इस महाकाव्य के प्रणेता केरलीय कवि वासुदेव हैं, जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण का चरित वर्णित है। यह महाकाव्य अधूरा प्राप्त है और इसमें केवल तीन सर्ग हैं। कवि ने पाणिनिसूत्रों के दृष्टान्त प्रस्तुत किये हैं। इसकी पूत्ति नारायण नामक कवि ने 'धातुकाव्य' लिख कर की है। इसके कथानक का अन्त कंस- . वध से होता है। विकटनितम्बा-ये संस्कृत की प्रसिद्ध कवयित्री हैं। इनका जन्म काशी में हुना था। अभी तक इनके सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं हो सका है, और इनका बीवन-वृत्त तिमिरान है । 'सूक्तिमुक्तावली' में राजशेखर ने इनके सम्बन्ध में अपने
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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