SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाग्भट] [वाग्भट तर्थकता ।। २।३०। वाक्यं प्रति मतिभिन्ना बहुधा न्यायवादिनाम् ॥ २।२। भर्तृहरि के अनुसार श्रोता तथा ग्रहीता में भाषा के आदान-प्रदान के चार चरण होते हैं, जिन्हें ग्रहीता में नाद, स्फोट, ध्वनि (व्यक्ति) तथा स्वरूप कहा जाता है। अर्थभावना एवं शब्द को अपनी अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त चार तत्त्वों पर ही आश्रित रहना पड़ता है। इसी काण्ड में प्रासंगिक विषय के अन्तर्गत 'शब्दप्रकृतिरपभ्रंश' पर भी विचार किया गया है। वे शब्दशक्तियों की बहुमान्य धारणाओं को स्वीकार नहीं करते और किसी भी अर्थ को मुख्य या गौण नहीं मानते। उनके अनुसार अर्थ-विनिश्चय के आधार हैं-वाक्य, प्रकरण, अर्थ, साहचर्य आदि । उनके अनुसार जब कोशों में निश्चित किए गए अथवा प्रकृति-प्रत्यय विभाग के द्वारा प्राप्त अर्थों से कुछ भी निश्चय नहीं होता तो प्रतिभा, अभ्यास, विनियोग एवं लोक-प्रयोग के द्वारा अर्थ का विनिश्चय होता है। तृतीयकाण्ड-इसे पदकाण्ड या प्रकीर्णक कहते हैं। इस काण्ड में पद से सम्बद्ध नाम या सुबन्त के साथ विभक्ति, संख्या, लिंग, द्रव्य, वृत्ति, जाति पर भी विज़ार किया गया है। इसमें चौदह समुद्देश हैं। प्रथम अंश का नाम जाति समुद्देश है । आगे के समुदेशों में गुण, साधन, क्रिया, काल, संख्या, लिंग, पुरुष, उपग्रह एवं वृत्ति के सम्बन्ध में मौलिक विचार व्यक्त किये गए हैं। आधारग्रन्थ-१. फिलॉसफी ऑफ संस्कृत ग्रामर-चक्रवर्ती। २. थियरी ऑफ मीनिंग इन इण्डियन फिलॉसफी-डॉ० रामचन्द्र पाण्डेय । ३. अर्थविज्ञान और व्याकरणदर्शन-डॉ. कपिलदेव द्विवेदी। ४. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १, २पं० युधिष्ठिर मीमांसक । ५. वाक्यपदीय (हिन्दी टीका )-अनुवादक पं० सूर्यनारायण शुक्ल, चौखम्बा प्रकाशन । ६. भाषातत्त्व और वाक्यपदीय-डॉ. सत्यकाम वर्मा ७. वाक्यपदीय में आख्यात विवेचन-डॉ० रामसुरेश त्रिपाठी ( अप्रकाशित शोध प्रबन्ध )। __ वाग्भट-संस्कृत में वाग्भट नामधारी चार लेखक हैं-'अष्टांगहृदय' (वैद्यकग्रन्थ) के लेखक, 'नेमिनिर्माण' के कर्ता, 'वाग्भटालंकार' के रचयिता तथा 'काव्यानुशासन' के प्रणेता। यहां जैन कवि वाग्भट का परिचय दिया जा रहा है । इन्होंने 'नेमिनिर्माण' नामक महाकाव्य की रचना की है जिसमें १५ सों में जैन तीर्थकर नेमिनाथ की कथा कही गयी है। इनका जन्म अहिछत्र (वर्तमान नागौद ) में हुआ था और ये परिवाटवंशीय छाहयु या बाहड़ के पुत्र थे। 'मेमिनिर्माण' पर भट्टारक ज्ञानभूषण ने 'पंजिका' नामक टीका लिखी है। वाग्भट-आयुर्वेद के महान लेखक । समय ५ वीं शदाब्दी । इन्होंने 'अष्टांगसंग्रह' विख्यात ग्रन्य की रचना की है। इनके पिता का नाम सिंहगुप्त एवं पितामह का नाम वाग्भट था। ये सिन्धु नामक स्थान के निवासी थे। इनके गुरु का नाम अवलोकितेश्वर था जो बौद्ध थे। इन्होंने अपने ग्रन्थ में स्वयं उपर्युक्त तथ्य को स्वीकार किया है-भिषग्वरो वाग्भट इत्यभून्मे पितामहो नामधरोऽस्मि यस्य । सुतो भवत्तस्य च सिंहगुप्तस्तस्याप्यहं सिन्धुषु लब्धजन्मा ॥ समधिगम्य गुरोरवलोकिता गुरुतराच्च पितुः
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy