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________________ वस्तुपाल ] (४८८ ) गुप्तव्रत तथा हल्के पापों के लिए व्रत । ( २५) २६ ) प्राणायाम के गुण । ( २७ )(२८) नारी की प्रशंसा तथा दान सम्बन्धी वैदिक मन्त्रों की प्रशंसा । (२९) दानपुरस्कार एवं ब्रह्मचर्य व्रत आदि । (३०) धर्म की प्रशंसा, सत्य और ब्राह्मण का वर्णन । इसका समय ईसा पूर्व ३०० वर्ष एवं २०० के बीच है। आधारग्रन्थ-१. धर्मशास्त्र का इतिहास-डॉ. पा० वा. काणे ( भाग १ हिन्दी अनुवाद ) २. वैदिक साहित्य और संस्कृति-पं. बलदेव उपाध्याय । वस्तुपाल-१३ वीं शताब्दी के जैन कवि। इन्होंने 'नरनारायणानन्द' नामक महाकाव्य की रचना की है। इसमें १६ सर्ग हैं तया कृष्ण और अर्जुन की मित्रता, उनको गिरनार पर्वत पर क्रीड़ा तथा सुभद्राहरण का वर्णन है। ये गुजरात के राजा वीरधवल के मन्त्री थे और विद्वानों को सम्मान एवं आश्रय प्रदान करने के कारण 'लघुभोजराज' के नाम से प्रख्यात थे। वसुचरित्र सम्पू-इस चम्पूकाव्य के रचयिता कवि कालाहस्ति थे जो अप्पयदीक्षित के शिष्य कहे जाते हैं। इनका समय सोलहवों शताब्दी है। इस चम्पूकाव्य की रचना का आधार तेलगु में रचित श्रीनाथ कवि का 'वसुचरित्र' है। प्रारम्भ में कवि ने गणेश को वन्दना कर पूर्ववर्ती कवियों का भी उल्लेख किया है। ग्रन्थ की समाप्ति कामाक्षी देवी की स्तुति से हुई है। इसमें कुल छह आश्वास हैं। 'वाल्मीकिपाराशरकालिदासदण्डिप्रहृष्यद्भवभूतिमाषान् । वल्गन्मयूरं वरभारविं च महाकवीन्द्रान् मनसा भजे तान् ॥ यह काव्य अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण तंजोर कैटलॉग संख्या ४।४६ में प्राप्त होता है। आधारमन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छषिनाप त्रिपाठी। वसुबन्धु-बोग्दर्शन के वैभाषिक मत के आचार्यों में वसुबन्धु का स्थान सर्वोपरि है। ये सर्वास्तिवाद (दे० बोरदर्शन ) नामक सिद्धान्त के प्रतिष्ठापकों में से हैं। ये असाधारण प्रतिभा सम्पन्न कौशिकगोत्रिय बाह्मण थे और इनका जन्म पुरुषपुर (पेशावर ) में हुआ था। इनके आविर्भावकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। जापानी विद्वान् तकासुकु के अनुसार इनका समय पांचवों शताब्दी है पर यह मत अमान्य सिद्ध हो जाता है, क्योंकि इनके बड़े भाई असंग के ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद ४०० ई० में हो चुका था। धर्मरक्ष नामक विद्वान् ने जो ४०० ई. में चान में विद्यमान थे, इनके ग्रन्थों का अनुवाद किया था। इनका स्थितिकाल २८० ई० से लेकर १६. ई. तक माना जाता है। कुमारजीव नामक विद्वान ने वसुबन्धु का जीवन-चरित. ४०१ से ४०९ के बोच लिखा था, अतः उपर्युक्त समय हो अधिक तर्कसंगत सिद्ध होता है। ये तीन भाई थे असंग, वसुबन्धु एवं विरिञ्चिवत्स । कहा जाता है कि प्रौढ़ावस्था में इन्होंने अयोध्या को अपना कार्यक्षेत्र बनाया था। इनकी प्रसिद्ध रचना 'अभिधर्मकोश' है जो वैभाषिक मत का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ है। यह अन्य बाठ परिच्छेदों में विभक्त है जिसमें निम्नांकित विषयों का विवेचन है-१ धातुनिर्देश, २ इन्द्रियनिर्देश, ३ लोकधातु निर्देश, ४ कमनिर्देश, ५ अनुशयनिर्देश,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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