SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 477
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रामचन्द्र ] ( ४६६ ) [ रामचन्द्र मंखककृत 'श्रीकण्ठचरित' का निर्माणकाल ११३५-४५ के मध्य है । रुय्यक ने 'अलंकारसवंस्व' में श्रीकण्ठचरित के ५ श्लोक उदाहरणस्वरूप उद्धृत किये हैं, अतः इनका समय १२ वीं शताब्दी का मध्य ही निश्चित होता है । 'अलंकार सर्वस्व' लेखक की प्रोढ़ कृति है अतः इनका आविर्भावकाल १२ वीं शताब्दी का प्रारम्भ माना जा सकता है । सर्वस्वकार ने साहित्य के विभिन्न अंगों पर स्वतन्त्र रूप से या व्याख्यात्मक ग्रन्थों को रचना की हैं । इनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है- सहृदयलीला ( प्रकाशित ), साहित्य मीमांसा, ( प्रकाशित), नाटकमीमांसा, अलंकारानुसारिणी, अलंकारमंजरी, अलंकारवात्र्तिक, अलंकारसर्वस्व ( प्रकाशित ), श्रीकण्ठस्तव, काव्यप्रकाशसंकेत ( प्रकाशित), हर्षचरितवार्तिक. व्यक्तिविवेकव्यख्यानविचार ( प्रकाशित ) एवं वृहती । सहृदयलीला अत्यन्त छोटी पुस्तक है जिसमें ४-५ पृष्ठ हैं। इसमें 'उत्कर्ष ज्ञान के द्वारा वैदग्ध्य और उसके द्वारा सहृदय बनकर नागरिकता की सिद्धि' का वर्णन है । साहित्यमीमांसा – यह साहित्यशास्त्र का ग्रन्थ है जिसमें आठ प्रकरण हैं । ग्रन्थ तीन भागों में विभाजित है कारिका, वृत्ति एवं उदाहरण । साहित्यपरिष्कार के दोषगुणत्याग, कवि एवं रसिकों का वर्णन, वृत्ति एवं उसके भेद, पददोष, काव्य गुण, अलंकार, रस, कविभेद एवं प्रतिभाविवेचन एवं काव्यानन्द आदि विषयों का इसमें बिवेचन है। इसमें व्यंजनाशक्ति का वर्णन नहीं है और तात्पर्यवृत्ति के द्वारा रसानुभूति होने का कथन किया गया है- अपदार्थोऽपि वाक्यार्थो रसस्तात्पयंवृत्तितः - सा० मी० पृ० ६५ | 'अलंकारसर्वस्व' इनका सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ है जिसमें अलंकारों का प्रौढ़ विवेचन है [ दे० अलंकार सर्वस्व ] | 'नाटक मीमांसा' का उल्लेख 'व्यक्तिविवेकव्याख्यान' नामक ग्रन्थ में किया गया है, सम्प्रति यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है- अस्य च विधेया विमशंस्यानवेतरप्रसिद्धलक्ष्यपातित्वेनास्माभिर्नाटकमीमांसायां साहित्य मीमांसायां च तेषु तेषु स्थानेषु प्रपंचो दर्शितः । पृ० २४३॥ अलंकारानुसारिणी, अलंकारवात्र्तिक एवं अलंकारमंजरी की सूचना जयरथकृत विमर्शणी टीका में प्राप्त होती है । 'काव्यप्रकाशसंकेत' काव्यप्रकाश पर संक्षिप्त टीका है और 'व्यक्तिविवेकयाख्यान' महिमभट्ट कृत 'व्यक्तिविवेक' की व्याख्या है जो अपूर्ण रूप में हो उपलब्ध है । रुय्यक्त ध्वनिवादी आचार्य हैं । इन्होंने 'अलंकारसर्वस्व' के प्रारम्भ में काव्य की आत्मा के संबंध में भामह, उद्भट, रुद्रट, वामन, कुंतक, महिमभट्ट एवं ध्वनिकार के मत का सार उपस्थित किया है। ऐतिहासिक दृष्टि से इनके विवेचन का अत्यधिक महत्व है । परवर्ती आचायों में विद्याधर, विद्यानाथ एवं शोभाकर मित्र ने रुय्यक के अलंकारसंबंधी मत से पर्याप्त सहायता ग्रहण की है । आधारग्रन्थ - अलंकार-मीमांसा - डॉ० रामचन्द्र द्विवेदी । रामाचन्द्र- ये हेमचन्द्राचार्य के शिष्य तथा कई नाटकों के रचयिता एवं प्रसिद्ध नाट्यशास्त्रीय ग्रंथ 'नाट्यदर्पण' के प्रणेता हैं, जिसे इन्होंने गुणचन्द्र की सहायता से लिखा है। ये गुजरात के रहने वाले थे । इनका समय बारहवीं शती हैं । इन्होंने विभिन्न विषयों पर रूपक की रचना कर अपनी बहुविध प्रतिभा का निदर्शन किया है । इनके
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy