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________________ राजतरङ्गिणी ] ( ४६२ ) [ राजतङ्गिणी संभव सभी रसों का अङ्गरूप से वर्णन है । ग्रन्थारम्भ में नमस्क्रिया के अतिरिक्त खलों की निन्दा एवं सज्जनों की स्तुति की गयी है । राम का सन्ध्या, सूर्येन्दु का संक्षिप्त किन्तु मृगया, शैल, वन एवं सागर का विशद वर्णन है । विप्रलम्भ शृङ्गार, संभोग, मुनि, स्वर्ग, नरक, युद्धयात्रा, विजय, विवाह, मन्त्रणा, पुत्रप्राप्ति, एवं अभ्युदय का सांगोपांग वर्णन किया गया है। इस महाकाव्य के प्रारम्भ में राजा दशरथ एवं पाण्डु दोनों की परिस्थियों में साम्य दिखाते हुए मृगयाविहार, मुनिशाप आदि बातें बड़ी कुशलता से मिलाई गयी हैं। पुनः राजा दशरथ एवं पाण्डु के पुत्रों की उत्पत्ति की कथा मिश्रित रूप से कही गयी है । तदनन्तर दोनों पक्षों की समान घटनाएँ वर्णित हैं- विश्वामित्र के साथ जाना तथा युधिष्ठिर का वारणावत नगर जाना, तपोवन जाने के मार्ग में दोनों की घटनाएँ मिलाई गयी हैं । ताड़का और हिडिम्बा के वर्णन में यह साम्य दिखलाई पड़ता है । द्वितीय सगं में राम का जनकपुर के स्वयंवर में तथा युधिष्ठिर का राजा पांचाल ( द्रुपद ) के यहाँ द्रौपदी के स्वयंवर में जाना वर्णित है । पुनः राजा दशरथ एवं युधिष्ठिर के यज्ञ करने का वर्णन है । फिर मंथरा द्वारा राम के राज्यापहरण एवं द्यूतक्रीडा के द्वारा युधिष्ठिर के राज्यापहरण की घटनाएँ मिलाई गयी हैं । अन्त में रावण के दसों मुखों के कटने एवं दुर्योधन की जंघा टूटने का वर्णन है । अग्निपरीक्षा से सीता का अग्नि से बाहर होने तथा द्रोपदी का मानसिक दुःख से बाहर निकलने के वर्णन में साम्य स्थापित किया गया है । इसके पश्चात् एक ही शब्दावली में राम एवं युधिष्ठिर के राजधानी लौटने तथा भरत एवं धृतराष्ट्र से मिलने का वर्णन है । कवि ने राम ओर पाण्डव पक्ष के वर्णन को मिलाकर अन्य अन्त तक काव्य का निर्वाह किया है, पर समुचित घटना के अभाव में वह उपक्रम के विरुद्ध आचरण करने के लिए वाध्य हुआ है । क — रावण के द्वारा जटायु की दुर्दशा से मिलाकर भीम के द्वारा जयद्रथ की दुर्दशा का वर्णन । खमेषनाद के द्वारा हनुमान् के बन्धन से अर्जुन के द्वारा दुर्योधन के अवरोध का मिलान 1 ग - रावण के पुत्र देवान्तक की मृत्यु के साथ अभिमन्यु के निधन का वर्णन घ सुग्रीव के द्वारा कुम्भराक्षस वध से कर्ण के द्वारा घटोत्कचबध का मिलान । आधारग्रन्थ - राघवपाण्डवीय ( हिन्दी अनुवाद तथा भूमिका) अनु० पं० दामोदर झा, चौखम्बा प्रकाशन ( १९६५ ई० ) । राजतरङ्गिणी - संस्कृत का सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक महाकाव्य । इसके रचयिता महाकवि कल्हण हैं [ दे० कल्हण ] । इसमें आठ तरङ्ग हैं। जिनमें काश्मीर-नरेशों का इतिहास वर्णित है । कवि ने प्रारम्भ-काल से लेकर अपने समकालीन ( १२ वीं शताब्दी) नरेश तक का वर्णन किया है। इसके प्रथम तीन तरङ्गों में ५२ राजाओं का वर्णन है । यह वर्णन ऐतिहासिक न होकर पौराणिक गाथाओं पर बाधित है, तथा उसमें कल्पना का भी आधार लिया गया है । इसका प्रारम्भ विक्रमपूर्व १२ सौ वर्ष के गोविन्द नामक राजा से हुआ है, जिसे कल्हण युधिष्ठिर का समसामयिक मानते हैं । इन वर्णनों में कालक्रम पर ध्यान नहीं दिया गया है, और न इनमें इतिहास और पुराण में अन्तर ही दिखाया गया है । चतुथं तरङ्ग में कवि ने करकोट वंश का वर्णन
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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