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रत्नावली ]
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[ रत्नावली
'रत्नावली' संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध नाटिकाओं में है, जिसे नाट्यशास्त्रियों ने अत्यधिक महत्व देते हुए अपने ग्रन्थों में उद्धृत किया है। इसमें नाट्यशास्त्र के नियमों का पूर्णरूप से विनियोग किया गया है । 'दशरूपक' या 'साहित्य दर्पण' प्रभृति शास्त्रीय ग्रन्थों में रत्नावली को आधार बनाकर नाटिका का स्वरूप-मीमांसन किया गया है तथा इसे ही उदाहरण के रूप में रखा गया है । 'द्वयोर्नायिकानायकयोः । यथा - रत्नावली विद्धशालभञ्जिकादि: ।' साहित्य-दर्पण ३।७२ | नाटिका के शास्त्रीय स्वरूप की मीमांसा 'साहित्य-दर्पण' के अनुसार इस प्रकार है-नाटिका क्लृप्तवृत्ता स्यात्स्त्रीप्राया चतुरङ्किका प्रख्यातो धीरललितस्तत्र स्यान्नायको नृपः ॥ स्यादन्तःपुरसम्बद्धा संगीतव्यापृताथवा । नवानुरागा कन्यात्र नायिका नृपवंशजा ॥ संप्रवर्त्तेत नेतास्यां देव्यास्त्रासेन शङ्कितः देवी भवेत्पुनर्ज्येष्ठा प्रगल्भानृपवंशजा ॥ पदे पदे मानवती तदृशः संगमो द्वयोः । वृत्तिः स्वास् कैसिकी स्वल्पविमर्शाः संधयः पुनः ॥ ३।२६९-१७२ । "नाटिका की कथा कविकल्पित होती है । इसमें अधिकांश स्त्रियां होती हैं, चार अङ्क होते हैं । नायक प्रसिद्ध धीरललित राजा होता है। रनवास से सम्बन्ध रखनेवाली या गानेवाली राजवंश की कोई नवानुरागवती कन्या इसमें नायिका होती है। नायक का प्रेम देवी ( महारानी ) के भय से शङ्खायुक्त होता है, और देवी राजवंशोत्पन्न प्रगल्भा नायिका होती है । यह पद-पद पर मान करती हैं। नायिका और नायक का समागम इसी अधीन होता है। यहां वृत्ति कैशिकी होती है और अल्प विमशंयुक्त अथवा विशून्य' सन्धियां होती हैं ।"
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उपर्युक्त सभी नियमों की पूर्ण व्याप्ति 'रत्नावली' में होती है। इसमें चार अंक हैं तथा स्त्री पात्रों की संख्या अधिक है। इसका नायक राजा उदयन धीरललित या संगीत एवं कलाप्रेमी व्यक्ति है । इसकी नायिका रत्नावली अनुरागवती एवं राजकन्या है जिसका सम्बन्ध रनवास से है । राजा और रत्नावली का प्रेम रानी वासवदत्ता के भय के कारण सम्पन्न नहीं हो पाता, और दोनों को वासवदत्ता की शंका लगी रहती है । वासवदत्ता राजवंशोद्भव प्रगल्भा नायिका है। इसके ही अधीन नायक एवं नायिका का समागम है तथा यह पद-पद पर मान करनेवाली है। इसमें सर्वत्र कैशिको वृत्ति अपनायी गयी है । इसमें अंगी रस श्रृंगार है और धीरललित नायक की प्रणय लीलाओं के चित्रण के लिए सर्वथा उपयुक्त है विदूषक की योजना कर हास्यरस की भी सृष्टि की गयी है । शृङ्गार और हास्य के अतिरिक्त वीर तथा भयानक रस का भी संचार किया गया है । कवि ने रुमण्यवान के युद्ध का वर्णन कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। जहाँ तक नाटकीय कथानक के विकास का प्रश्न है, इस घटना का महत्त्व अर्थात् रुमण्वान द्वारा कोशल- विजय की घटना, अल्प है। इस घटना को नाटिका से निकाल देने पर रचना-सौष्ठव एवं कथानक के गठन में अधिक चास्ता आ जायगी । अतः, कथानक के विकास की दृष्टि से यह घटना अनुपयुक्त है। ऐसा लगता है कि कवि मे वीररस की सृष्टि के लिए ही इसका समावेश किया है। सहसा राजकीय बन्दर के छूटने एवं अन्तःपुर में आग लगने की घटना से भयानक रस की सृष्टि हुई है। इस हृदय का कवि ने बड़ा ही स्वाभाविक चित्रण किया है । "हर्म्याणां हेमशृङ्गश्रियमिव