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अश्वघोष ]
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[ अश्वघोष
. इनके ग्रन्थ के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वे जाति से ब्राह्मण रहे होंगे।
रचनाएँ-अश्वघोष का व्यक्तित्व बहुमुखी है। इन्होंने समान अधिकार के साथ काव्य एवं धर्म-दर्शनसम्बन्धी रचनाएँ की हैं। इनके कवि-पक्ष एवं धर्माचार्य-पक्ष में कौन प्रबल है, कहा नहीं जा सकता। इनके नाम पर प्रचलित ग्रन्थों का परिचय दिया जा रहा है।
• १-वज्रसूची-इसमें वर्णव्यवस्था की आलोचना कर सार्वभौम समानता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। वर्णव्यवस्था के समर्थकों के लिए सूई की तरह चुभने के कारण इसकी अभिधा वचसूची है। कतिपय विद्वान् इसे अश्वघोष की कृति मानने में सन्देह प्रकट करते हैं।
२-महायान श्रद्धोत्पादशास्त्र-यह दार्शनिक ग्रन्थ है तथा इसमें विज्ञानवाद एवं शून्यवाद का विवेचन किया गया है।
३-सूत्रालंकार या कल्पनामण्डितिका-सूत्रालंकार की मूल पुस्तक प्राप्त नहीं होती, इसका केवल चीनी अनुवाद मिलता है जिसकी रचना कुमारजीव नामक बौद्ध विद्वान् ने पंचम शती के प्रारम्भ में की थी। कल्पनामण्डितिका में धार्मिक एवं नैतिक भावों से पूर्ण काल्पनिक कथाओं का संग्रह है। __ ४-बुद्धचरित—यह अश्वघोषरचित प्रसिद्ध महाकाव्य है जिसमें भगवान् बुद्ध का चरित २८ सर्गों में वर्णित है। [ दे० बुद्धचरित ]
५-सौन्दरनन्द-यह अश्वघोष रचित द्वितीय महाकाव्य है जिसमें महाकवि ने भगवान् बुद्ध के अनुज नन्द का चरित वर्णित किया है। [ दे० सौन्दरनन्द ]
६-शारिपुत्रप्रकरण-यह अश्वघोष रचित नाटक है जो खण्डितरूप में प्राप्त है। मध्य एशिया के तुर्फान नामक क्षेत्र में प्रो० ल्यूडर्स को तालपत्रों पर तीन बौद्ध ...कों की प्रतियां प्राप्त हुई थीं जिनमें 'शारिपुत्रप्रकरण' भी है। इसकी खण्डित प्रति में कहा गया है कि इसकी रचना सुवर्णाक्षी के पुत्र अश्वघोष ने की थी। इसकी खण्डित प्रति से ज्ञात होता है कि यह 'प्रकरण कोटि का नाटक' रहा होगा और इसमें नव अंक थे। इस प्रकरण में मौद्गल्यायन एवं शारिपुत्र को बुद्ध द्वारा दीक्षित किये जाने का वर्णन है। इसका प्रकाशन ल्यूडर्स द्वारा बलिन से हुआ है। इसमें अन्य संस्कृत नाटकों की भौति नान्दी, प्रस्तावना, सूत्रधार, गद्य-पद्य का मिश्रण, संस्कृत एवं विविध प्रकार की प्राकृतों के प्रयोग, भरत वाक्य आदि सभी नाटकीय तत्त्वों का समावेश है। ___ अश्वघोष की दार्शनिक मान्यताएँ-अश्वघोष ऐसे कलाकारों की श्रेणी में आते हैं जो कला की यवनिका के पीछे छिपकर अपनी मान्यताएं प्रकाशित करते हैं । इन्होंने कविता के माध्यम से बौद्धधर्म के सिद्धान्तों का विवेचन कर उन्हें जनसाधारण के लिए सुलभ एवं आकर्षक बनाया है। इनकी समस्त रचनाओं में बौद्धधर्म के सिद्धान्तों की झलक दिखाई पड़ती है। भगवान् बुद्ध के प्रति अटूट श्रद्धा तथा अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता, इनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी विशेषता है। दुःखवाद बौद्धधर्म का प्रमुख सिद्धान्त है। इसका चरम लक्ष्य है निर्वाण की प्राप्ति । अश्वघोष ने इसे इस प्रकार प्रकट किया है