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यक्ष-मिलन काव्य ]
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[यतिराज विजय चम्पू
आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन--डॉ. छविनाथ त्रिपाठी।
यक्ष-मिलन काव्य-इस सन्देश-काव्य के रचयिता परमेश्वर मा हैं। इसका दूसरा नाम ( यक्ष-समागम ) भी है। कवि का समय वि० सं० १९१७ से १९८१ है। ये विहार के दरभंगा जिला के तरुवनी (तरोनी ) नामक ग्राम के निवासी थे। इनके पिता का नाम पूर्णनाथ झा या बाबूनाथ झा था जो व्याकरण के अच्छे पण्डित थे। परमेश्वर झा स्वयं बहुत बड़े विद्वान् थे और विद्वमण्डली ने इन्हें वैयाकरणकेसरी, कर्मकाण्डोद्वारक तथा महोपदेशक प्रभृति उपाधियां प्रदान की थीं। इन्हें तत्कालीन सरकार की ओर से.महामहोपाध्याय की उपाधि भी प्राप्त हुई थी। इनके द्वारा रचित अन्य ग्रन्थों के माम हैं-महिषासुर-वध नाटक, वाताह्वान काव्य, कुसुमकलिका-आख्यायिका, ऋतुवर्णन काव्य । 'यक्ष-समागम' में महाकवि कालिदास के 'मेघदूत' के उत्तराख्यान का वर्णन है। कवि ने यक्ष एवं उसकी प्रेयसी के मिलन का बड़ा ही मोहक वर्णन किया है। देवोत्थान होने पर यक्ष प्रेयसी के पास आकर उसका कुशल-क्षेम पूछता है । वह अपनी प्रिया से विविध प्रकार की प्रणय कथाएँ एवं प्रणय लीलायें वर्णित करता है । प्रातःकाल होने पर बन्दीजन के मधुर गीतों का श्रवण कर उसकी निद्रा टूटती है और वह उरता-डरता कुबेर के निकट जाकर उन्हें प्रणाम करता है । कुबेर उस पर प्रसन्न होते हैं और उसे अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्यभार देते हैं। यक्ष
और यक्षपत्नी अधिक दिनों तक सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते हैं। यह सन्देशकाव्य लघु आकार का है और इसमें कुल ३५ श्लोक हैं। इसमें मन्दाक्रान्ता छन्द प्रयुक्त हुआ है। यक्ष-पत्नी का सौन्दर्य वर्णन देखिए-बाले भाले रुचिररुचिरः सूक्ष्मसिन्दूरबिन्दुः, कर्णे पुष्पं दशनवसने गाढताम्बूलरागः। सौवीरन्ते दृशि नखततो यावकश्चित्रवासो गोरे गाने गुणिनि सुभगम्भावुकत्वं गृणन्ति ॥ २३ । इस काव्य का प्रकाशन १८१७ शाके में दरभंगा से हो चुका है।
आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देश काव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य ।
यतिराज विजय चम्प-इसके रचयिता अहोबल सूरि थे। इनके माता-पिता का नाम क्रमशः लक्ष्माम्बा एवं वेंकटाचार्य था। श्री राजगोपाल मुनि के ये शिष्य थे। इनका समय चौदहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध है । इन्होंने 'विरूपाक्षवसन्तोत्सव चम्पू' नामक अन्य ग्रन्थ को भी रचना की है। [दे० विरूपाक्षवसन्तोत्सव चम्पू ] 'यतिराजविजय चम्पू' सत्रह उल्लासों में विभक्त है पर अन्तिम उल्लास अपूर्ण है। कवि ने इस चम्पू में रामानुजाचार्य का जीवन वृत्त वर्णित किया है तथा विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय के आचार्यों की परम्परा भी प्रस्तुत की है। इसकी शैली सरल एवं व्यासप्रधान है तथा स्थान-स्थान पर यमक का भी प्रयोग है और वाक्य-विन्यास की प्रवृत्ति सरलता की ओर है । विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय की आचार्य-परम्परा का निदर्शन कवि के शब्दों में इस प्रकार है--आदौ सरश्शठरिपुप्रमुखावताराम् नाथायंयामुनमुनिप्रवरप्रभावान् । रामानुजस्य चरितं निपुणं भणामि हृधेरवद्यविमुखैरथ गद्यपद्यः ।। १।१०। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है । विवरण के लिए । दे० रि० केट लॉग मद्रास १२३३८ ।