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________________ मैत्री या मैत्रायणी उपनिषद् ] ( ४३७ ) [यजुर्वेद का प्राचीन इतिहास लिखा और वैदिक साहित्य की विद्वत्तापूर्ण समीक्षा प्रस्तुत की। जुलाई १९०० में मैक्समूलर रोगग्रस्त हुए और रविवार १८ अक्टूबर को उनका निधन हो गया। मैक्समूलर ने भारतीय साहित्य और दर्शन के अध्ययन एवं अनुशीलन में यावज्जीवन घोर परिश्रम किया। इन्होंने तुलनात्मक भाषा-शास्त्र एवं नृतत्वशास्त्र के आधार पर संस्कृत साहित्य के ऐतिहासिक अध्ययन का सूत्रपात किया था। इनके ग्रंथों की सूची १-ऋग्वेद का सम्पादन । २-ए हिस्ट्री ऑफ दि एंश्येंट संस्कृत लिटरेचर । ३लेक्चर्स ऑफ दि साइन्स ऑफ लैंग्वेज (दो भाग )। ४-ऑन स्ट्रेटीफिकेशन ऑफ लैंग्वेज । ५-वायोग्राफीज ऑफ वंडसं ऐण्ड टीम ऑफ आर्याज । ६-इन्ट्रोडक्शन टु दि साइन्स ऑफ रेलिजन । ७-लेक्चरर्स ऑन ओरीजस ऐण्ड ग्रोथ ऑफ रेलिजन । ऐज इलस्ट्रेटेड बाई दि रेलिजन्स ऑफ इण्डिया । -नेचुरल रेलिजन । ९-फिजिकल रेलिजन । १०-ऐन्थोपोलिजकल रेलिजन । ११-थियोसाफी : आर साइकोलाजिकल रेलिजन । १२-कंट्रीब्यूशन टु दि साइन्स ऑफ साइकोलोजी। १३-हितोपदेश ( जर्मन अनुवाद )। १४-मेघदूत (जर्मन अनुवाद )। १५-धम्मपद ( जर्मन अनुवाद )। १६ -उपनिषद् (जर्मन अनुवाद)। १७-दि सैक्रेड बुक्स ऑफ दि ईस्ट सीरीज ग्रन्थमाला के ४८ खण्डों का सम्पादन । मैत्री या मैत्रायणी उपनिषद्-यह उपनिषद् गद्यात्मक है तथा इसमें सात प्रपाठक हैं। इसमें स्थान-स्थान पर पद्य का भी प्रयोग हुआ है तथा सांख्यसिद्धान्त, योग के षडङ्गों का वर्णन और हठयोग के मन्त्रसिद्धान्तों का कथन किया गया है । इसमें अनेक उपनिषदों के उद्धरण दिये गए हैं, जिससे इसकी अर्वाचीनता सिद्ध होती है । ऐसे उद्धरणों में 'ईश' 'कठ', 'मुण्डक' एवं 'बृहदारण्यक' के हैं। मोरिका-ये संस्कृत की कवयित्री हैं । 'सुभाषितावली' तथा 'शाङ्गंधरपद्धति' में इनके नाम की केवल चार रचनाएं प्राप्त होती हैं। इसके अतिरिक्त इनके सम्बन्ध में कोई विवरण प्राप्त नहीं होता। लिखति न गणयदि रेखा निर्भरबाष्पाम्बुधौतगण्डतला। अवधिदिवसावसानं मा भूदितिशङ्किता बाला ।। ___ यजुर्वेद-यज्ञ-सम्पादन के लिए अध्वयु नामक ऋत्विज का जिस वेद से सम्बन्ध स्थापित किया जाता है उसे 'यजुर्वेद' कहते हैं। इसमें अध्वयु के लिए ही वैदिक प्रार्थनाएं सगृहीत हैं । 'यजुर्वेद' वैदिक कर्मकाण्ड का प्रधान आधार है और इसमें यजुषों का संग्रह किया गया है। यजुष् शब्द के कई अर्थ हैं । कतिपय व्यक्तियों के अनुसार गद्यात्मक मन्त्रों की यजुः संज्ञा होती है। अतः गद्यप्रधान मन्त्रों के आधिक्य के कारण इसे 'यजुर्वेद' कहते हैं-गद्यात्मको यजु: । इस वेद में ऋक् और साम से सर्वथा भिन्न गद्यात्मक मन्त्रों का संग्रह है-शेषे यजुः शब्दः । जिसमें अक्षरों की संख्या निश्चित या नियत न हो वह यजुष् है-अनियताक्षरावसानो यजुः । कर्म की प्रधानता के कारण समस्त वैदिक वाङ्मय में 'यजुर्वेद' का अपना स्वतन्त्र स्थान है । 'यजुर्वेद' से सम्बद्ध ऋत्विज् अध्वर्यु को यज्ञ का संचालक माना जाता है। यजुर्वेद की शाखाएं-'यजुर्वेद, का साहित्य अत्यन्त विस्तृत था, किन्तु सम्प्रति
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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