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________________ मेघदूत ] [ मेघदूत प्रधान' काव्य कहा जा सकता है। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है- धनाधीश कुबेर ने अपने एक यक्ष सेवक को, कर्तव्य च्युत होने के कारण, एक वर्ष के लिए अलकापुरी से निर्वासित कर दिया है। वह कुबेर द्वारा अभिशप्त होकर अपनी नवपरिणीता वधू से दूर हो जाता है और भारत के दक्षिणांचल में अवस्थित रामगिरि पर्वत के पास जाकर अपना निवास बनाता है । वह स्थान जनकतनया के स्नान से पावन तथा रुद्राक्ष की छाया से स्निग्ध है । वह अवधि-काल की दुदिन घड़ियों को वेदनाजर्जरित होकर गिनने लगता है । आठ मास व्यतीत हो जाने पर वर्षा ऋतु के आगमन से उसके प्रेम- कातर हृदय में उसकी प्राण-प्रिया की स्मृति हरी हो उठती है। और वह मेघ के द्वारा अपनी कान्ता पास प्रणय-सन्देश भेजता है । 。) ( ४३० प्रिया के वियोग में रोते-रोते उसका शरीर सूख कर कीट हो जाता है और कुश होने के कारण कर का कंगन गिर जाता है । आषाढ़ के प्रथम दिन को, पहाड़ की चोटी पर बादल को खेलते हुए देखकर उसकी अन्तर्वेदना उद्वेलित हो उठती है और वह मेघ से सन्देश भेजने को उद्यत हो जाता है । कवि ने विरहियों के विषय में मेघदर्शन से उत्पन्न तीव्र वेदना का भी समर्थन किया है- 'मेघालोके भवति सुखिनोऽप्पयन्यथावृत्ति चेतः । कण्ठाश्लेपप्रणयिनि जने किं पुनरसंस्थे ।' ३ पूर्वमेघ । कामात्तं यक्ष को चेतनाचेतन का भी भाव नहीं रहता और वह स्वभावतः मूढ़ बना हुआ धूम, ज्योति, सलिल एवं मरुत के सन्निपात से निर्मित मेघ को सन्देश प्रेषण के लिए उपयुक्त समझ लेता है । वह अतिनूतन कुटज - पुष्प के द्वारा मेघ को अध्यं देकर उसका स्वागत करता है तथा उसकी प्रशंसा करते हुए उसे इन्द्र का 'प्रकृतिपुरुष' एवं 'कामरूप' कहता है। इसी प्रसंग में कवि ने रामगिरि से लेकर अलकापुरी तक के भाग का अत्यन्त सरल भौगोलिक चित्र उपस्थित किया है। इस अवसर पर कवि मागंवर्ती स्थानों, नदियों एवं प्रसिद्ध नगरियों का भी रसयुक्त वर्णन करता है । इसी रूप में पूर्वमेघ की समाप्ति हो जाती है | मेघदूत का यात्रा-वर्णन अत्यन्त सरस एवं भारतवर्ष की प्राकृतिक छटा का शोभन चित्र है। डॉ० अग्रवाल के अनुसार - ( वासुदेवशरण अग्रवाल ) 'मेघदूत काव्य क्या है ? भारत की देवमातृक भूमि पर श्रृंगार और आत्मा के चैतन्य की परिपूर्ण भाषा है । इसमें तो मानों प्रकृति ने स्वयं अपनी पूरी कथा भर दी है । - मेघदूत एक अध्ययन भूमिका पृ० १ । पूर्वमेध के माध्यम से महाकवि कालिदास ने भारतवर्ष की प्राकृतिक छटा का अभिराम वर्णन कर बाह्य प्रकृति के सौन्दर्य एवं कमनीयता का मनोरम चित्र वचित किया है । मेघ का मार्ग-वर्णन - मेघ की यात्रा चित्रकूट से प्रारम्भ होती है। पवन-पदवी से चलता हुआ मेघ मार्ग में बिरह-विधुरा पथिक वनिताओं के केश हटा कर स्निग्ध दृष्टि से अपने को देखने के लिए बाध्य कर देता है । रास्ते में जहाँ जहाँ पवंत मिलते हैं वहाँ-वहाँ वह विश्राम करता हुआ और जलप्रपातों के जल का पान करता हुआ चलता है । वह बलाकाओं एवं राजहंसों के साथ ( जो मानसरोवर के यात्री हैं ) मालवभूमि
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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