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________________ मृच्छकटिक. ] 1. मृच्छकटिक में सच्चा मातृवात्सल्य भरा हुआ है । चारुदत्त के पुत्र रोहसेन के द्वारा यह कहने पर कि यह मेरी माता नहीं है, क्योंकि यह तो आभूषणों से लदी हुई है. वह फूट पड़ती है और उसकी बातों पर मुग्ध होकर अपने आभूषण उसकी गाड़ी में भर देती है । उसके चरित्र की अन्य विशेषताएँ हैं— कोमलता, विनम्रता, उदारता, स्निग्धता, विनोदप्रियता एवं बुद्धि की सतर्कता । मदनिका को दासीत्व से मुक्त कर वह शर्विलक को सौंपते हुए अपूर्व उदारता का परिचय देती है । वह अपने सारे आभूषण मदनिका को ही समर्पित कर अपनी वाग्चातुरी का भी परिचय देती है । वह बुद्धिमत्तापूर्ण असत्य भाषण करती है - "आर्य चारुदत्त ने मुझ से कहा कि- 'जो कोई इस अलंकार को लौटावेगा उसके लिए मदनिका को समर्पित कर देना।' इसलिए मदनिका आपको दी जा रही है" । शक्लिक को मदनिका को समर्पित करने से वह मदनिका के लिए 'बन्दनीय' बन जाती है । चारुदत्त के प्रति अनुरक्त होते हुए भी उसे अपने गणिका होने का स्मरण होता है । वह कुलीन के घर में प्रवेश करने में संकोच करती हैं तथा चारुदत्त के यह कहने पर कि अन्दर चलो वह मन ही मन कहती कि मैं आपके अन्तःपुर में प्रवेश करने के लिए अभागिनी हूँ। इससे पता चलता है कि वह मर्यादा का उल्लंघन करना नहीं जानती । राजमार्ग पर शकार उसका पीछा करता है और विट भी उसके साथ है । वह विट के अर्थगभित वचनों का अर्थ समझ कर चारुदत्त के घर पहुँच जाती है । इससे उसकी बुद्धिमत्ता का ज्ञान होता है। वह विदुषी है एवं यदा-कदा संस्कृत भाषण भी करती है । वह चित्र बनाने की कला में भी निपुण है । चारुदत्त का चित्र बनाकर वह मदनिका को दिखाती है । उसमें एकमात्र वेश्या का गुण दिखाई पड़ता है और वह है प्रणय-क्षेत्र में सक्रियता । सम्पूर्ण प्रणय-व्यापार में चारुदत्त निष्क्रिय रहता है और वसन्तसेना की ओर से ही सारे प्रयास होते हैं । इस प्रकार शूद्रक ने वसन्तसेना का चित्रांकन कर उसमें स्त्रीत्व के उत्तम गुणों को दर्शाया है तथा गणिका होते हुए भी, सद्गुणों के कारण उसे कुलबधू के कराया है । पावन पद पर अधिष्ठित खलनायक हास्यास्पद एवं पूर्वतापूर्ण उत शकार वह चारूदत्त का प्रतिद्वन्द्वी तथा राष्ट्रियपबालक है और इस प्रकरण में रूप में उपस्थित किया गया है। वह अपने ढंग का अद्भुत एवं बिरल पात्र है जिसमें बिकत्व तथा खलनायकत्व का मिश्रण कराया गया है उसको टक में हास्य को सृष्टि करायी गुदेता है है वह दूषित प्रकृति अवरमता, इज्यमिता, मूर्खता, चैनमल तत्वों के मेल से उसके विचित्र का प्रयोग अपनी बेबी मेरी बातों से है और प्रबंधना, धृष्टता ( ४२७ ) क्रूरता एवं विलासिता बारि परस्परं . का निर्माण हुआ है। वह बोलने तथा पौराणिक घटनाओं एवं नामों को उलट कर बनी मूर्खता प्रदर्शित करता है । वह राम से डरी हुई द्रोपदी की भाँति वसन्तसेना का पीछा कर रहा है तथा और वह उसे इस प्रकार हरण कर लेगा जैसे विश्वावसु की बहिन सुभद्रा को हनुमान् ने हर लिया था । वह मूर्ख एवं हास्यास्पद होते हुए भी धूर्त एवं दुष्ट है। वह वसन्तसेना को
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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