SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुद्राराणस] [मुद्राराक्षस उल्लंघन करने वाला भी कह देते हैं। वास्तव में समस्त संस्कृत नाट्य-साहित्य में केवल विशाखदत एक ऐसा नाटककार है, जिसने परम्परागत रूढ़ियों का सम्मान नहीं किया। उसने समस्त सैदान्तिक परम्परागत रूढ़ियों का उल्लंघन किया है । वह चरितनायक की एक अभिनव कोटि की प्रतिष्ठा करके अपनी मौलिकता का परिचय देता है।' संस्कृत के महाकवि और काव्य-डॉ० रामजी उपाध्याय पृ० ३७४ । संस्कृत लक्षण ग्रन्थों के अनुसार नाटक का नायक उच्चकुलोद्भव, प्रतापी, गुणवान्, धीरोदात्त चरित वाला कोई अलोकिक एवं निरभिमानी व्यक्ति होना चाहिए। प्रख्यातवंशो राजषिर्षीरोदात्तः प्रतापवान् । दिव्योऽथ दिव्यादिव्यो वा गुणवान्नायको मतः ।। साहित्य-दर्पण ६९ ___ इस दृष्टि से चन्द्रगुप्त तो इस नाटक का नायक हो सकता है, पर नाटककार ने वस्तुतः चाणक्य को ही इसका नायक बनाया है। चाणक्य का ही इस नाटक पर पूर्ण प्रभाव दिखाई पड़ता है और इसकी सभी घटनाओं का सूत्र-संचालन वही करता है। चाणक्य का चरिण-चित्रण करते समय नाटककार का विशेष ध्यान रहा है, क्योंकि उसे चाणक्य को ही इसका नायक बनाना अभीष्ट है । अन्त तक इस नाटक में चाणक्य की ही योजनाएं फलवती सिद्ध होती हैं। पर, चाणक्य को इसका नायक मानने में शास्त्रीय दृष्टि से बाधा उपस्थित हो जाती है, क्योंकि इसकी वास्तविक फलोपलब्धि चन्द्रगुप्त को ही होती है। नाटक के अन्त में चाणक्य राजनीति से ही नहीं, अपितु समग्र भौतिक कार्यों से पृथक् होते हुए दिखाई पड़ता है। नाटक की समग्र घटना का फलोपभोग चन्द्रगुप्त ही करता है, और चाणक्य उसके राज्य को स्थिर एवं उसके शत्रुओं को परास्त कर उसकी समृद्धि को सुदृढ़ कर देता है। इस दृष्टि से चन्द्रगुप्त ही इसका नायक सिद्ध होता है। चन्द्रगुप्त के नायकत्व के विरुद्ध अनेक प्रकार के तर्क दिये गये हैं। नार्टकार ने जान-बूझ कर चन्द्रगुप्त के व्यक्तित्व को उभरने नहीं दिया है और वह चाणक्य के इङ्गित पर ही चला करता है। चाणक्य के कृत्रिम क्रोध को देखकर भी वह कांप उठता है, अतः वह इसका नायक नहीं हो सकता। संस्कृत नाटकों की परिपाटी के अनुसार भरतवाक्य का पाठ नायक द्वारा ही किया जाता है. किन्तु मुद्राराक्षस के भरतवाक्य का उच्चारण राक्षस करता है; क्योंकि उसे ही मन्त्रित्व की प्राप्ति होती है। पर वह नायक नहीं हो सकता, क्योंकि चाणक्य के समक्ष वह पराजित दिखलाया गया है । सभी दृष्टियों से विचार करने पर चाणक्य ही इसका नायक सिद्ध होता है; क्योंकि अन्ततः उसकी ही फूटनीति फलवती होती है और चन्द्रगुप्त के राज्य को निष्कष्टक. कर उसे अपूर्व आह्लाद होता है। इस नाटक का समस्त कथानक चाणक्य में ही केन्द्रित दिखाया गया है। इसकी सारी घटनाएँ उसकी इच्छा के अनुरूप ही घटित होती हैं। इसका प्रमुख फल है, राक्षस को अपनी ओर मिलाकर चन्द्रगुप्त का अमात्य बनाना और इस कार्य के लिए चाणक्य सदा प्रयत्नशील रहता है । 'चाणक्य जैसे निःस्वार्थ राजनीतिज्ञ के लिए, अपने लिए ख्याति प्राप्त करना अभीष्ट न था; उसका लक्ष्य था, चन्द्रगुप्त के लिए निष्कण्टक राज्य की स्थापना पौर राक्षस को मन्त्री बनाना; बोर वह इस कार्य में सफल होता है। इस प्रकार
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy