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________________ अमोष राघव चम्पू] [अलंकारसर्वस्व हुए पपरागमणि के टुकड़े को उसकी चोंच के पास रख दिया जिससे सुग्गा उसे अनार का दाना समझ कर चुप हो गया और वधू उसके वाग्बन्धन में समर्थ हुई। __ आधार-ग्रन्थ-१. अमरुकशतक (हिन्दी अनुवाद )-अनु० ५० प्रद्युम्न पाण्डेय चौखम्बा प्रकाशन २. अमरुकशतक-(हिन्दी अनुवाद ) अनु० डॉ० विद्यानिवास मिश्र राजकमल प्रकाशन ३. अमरुकशतक (पद्यानुवाद)-मित्रप्रकाशन ४. संस्कृत कविदर्शन-डॉ० भोलाशंकर व्यास ! अमोघ राघव चम्पू-इस चम्पू काव्य के रचयिता का नाम दिवाकर है । इनके पिता का नाम विश्वेश्वर था। ग्रन्थ का रचनाकाल १२९९ ई. है। यह चम्पू अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण दिवेण्ड्रम कैटलग वी० ६३६५ में प्राप्त होता है। इसकी रचना 'वाल्मीकि रामायण' के आधार पर हुई है। कवि ने महाकवि कालिदास की स्तुति में निम्नाङ्कित श्लोक लिखा है रम्याश्लेषवती प्रसादमधुरा शृङ्गारसनोज्ज्वलाचाटूक्तरखिलप्रियरहरहस्संमोहयन्ती मनः। लीलान्यस्तपदप्रचाररचना सवर्ण संशोभिता, भाति श्रीमतिकालिदासकविता कान्तेवतान्ते रता। आधार-ग्रन्थ-चम्पू काव्य का ऐतिहासिक एवं आलोचनात्मक समीक्षा-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी। अलंकारसर्वस्व-अलंकार का प्रौढ़ ग्रन्थ । इसके रचयिता राजानक रुय्यक हैं। [दे० राजानक रुय्यक ] 'अलंकारसर्वस्व' में ६ शब्दालंकार-पुनरुक्तवदाभास, छेकानुप्रास, वृत्यनुप्रास, यमक, लाटानुप्रास एवं चित्र तथा ७५ अर्थालंकारों एक मिश्रालंकार का वर्णन है। इसमें चार नवीन अलंकार हैं-उल्लेख, परिणाम, विकल्प एवं विचित्र । 'अलंकारसर्वस्व' के तीन विभाग हैं—सूत्र, वृत्ति एवं उदाहरण । सूत्र एवं वृत्ति की रचना रुय्यक ने की है और उदाहरण विभिन्न ग्रन्थों से दिये हैं। 'अलंकारसर्वस्व' के सूत्र एवं वृत्ति के रचयिता के सम्बन्ध में विद्वानों में बहुत मतभेद रहा है । इसके टीकाकार जयरथ ने सूत्र एवं वृत्ति का रचयिता रुय्यक को ही माना है। इस ग्रन्थ के मंगलश्लोक से भी इस मत की पुष्टि होती है नमस्तकृत्य परां वाचं देवीं त्रिविधविग्रहाम् । निजालंकारसूत्राणां वृत्त्या तात्पर्यमुच्यते ॥ १ ॥ किन्तु दक्षिण भारत में उपलब्ध होने वाली प्रतियों में 'गुवलंकारसूत्राणां वृत्त्यातात्पर्यमुच्यते' पाठ देखकर विद्वानों ने विचार किया कि वृत्ति की रचना रुय्यक के शिष्य मंखक ने की होगी। पर अब यह तथ्य स्पष्ट हो गया है कि दोनों के ही प्रणेता रुय्यक थे। परवर्ती आचार्यों में अप्पय दीक्षित ने रुय्यक को वृत्तिकार के भी रूप में मान्यता दी है, अतः दक्षिण की परम्परा को पूर्ण प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। ___'अलंकारसर्वस्व' में सर्वप्रथम अलंकारों का वैज्ञानिक विभाजन किया गया है और उनके मुख्य पांच वर्ग किये गए हैं तथा इनके भी कई अवान्तर भेद कर सभी अर्था
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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