SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुद्राराक्षस] (४०५ ) [मुद्राराक्षस स्पष्ट होती है। चाणक्य के स्वगत-कथन से ज्ञात होता है कि उसने अपनी कूटनीति से नन्दवंश को समूल नष्ट कर चन्द्रगुप्त को सिंहासनाधिष्ठित किया है, पर चन्द्रगुप्त का शासन तब तक कण्टकाकीणं बना रहेगा, जब तक कि राक्षस को वश में न किया जाय । इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए जिन साधनों का प्रयोग किया गया है, उनका भी वह वर्णन करता है। उसने स्वयं प्रवंतक का नाश करा कर यह समाचार प्रसारित करा दिया कि राक्षस के षड्यात्र से ही पर्वतेश्वर की हत्या हुई है। राक्षस ने चन्द्रगुप्त को मारने के लिए विषकन्या को भेजा था, किन्तु चाणक्य की चतुरता से उस (विषकन्या ) से पर्वतेश्वर की ही मृत्यु हुई। वह अपने भावी कार्य का वर्णन करते हुए कहता है कि उसने अपने अनेक विश्वासपात्र पात्रों को, छप्रवेश में, अपने सहयोगियों तथा विरोधियों के कार्यों पर दृष्टि रखते हुए उनके रहस्य को जानने के लिए निमुक्त किया है। एतदथं उसने क्षपणक एवं भागुरायण तथा अन्य व्यक्तियों को इसलिए नियुक्त किया है कि वे मलयकेनु एवं राक्षस का विश्वासभाजन बन कर उनके विनाश में सहायक हो सकें। यद्यपि चाणक्य का स्वगत-कथन अत्यन्त विस्तृत है, तथापि कथावस्तु के बीज को उपस्थित करने एवं उसकी कूटनीति के उदमांटन में इसकी उपयोगिता असंदिग्ध है और नाटकीय पृष्ठापार को उपस्थित करने के कारण सामाजिकों के लिए अरुचिकर प्रतीत नहीं होता। चाणक्य की स्वगत उक्ति के समाप्त होते ही एक दूत का प्रवेश होता है और वह उसे सूचित करता है कि कायस्थ शकटदास, क्षपणक जीवसिद्धि तथा श्रेष्ठी चन्दनदास में तीनों ही राक्षस के परम हितकारी हैं। चाणक्य की उक्ति से ज्ञात होता है कि इन तीनों में से जीवसिद्धि तो उसका गुप्तचर है अतः इसे अन्य दो व्यक्तियों की चिन्ता नहीं है । दूत यह भी कहता है कि श्रेष्ठी चन्दनदास राक्षस का परम मित्र है और राक्षस अपना सारा परिवार उसके यहाँ रखकर नगर के बाहर चला गया है। दूत ने श्रेष्ठी चन्दनदास के घर में प्राप्त राक्षस को नामांकित मुद्रा चाणक्य को दी। चाणक्य राक्षस को वश में लाने के लिए नन्द के लेखाध्यक्ष शकटदास से एक कूटलेख लिखवाकर उस पर राक्षस की नामांकित मुद्रा लगवा देता है। चाणक्य शकटदास को फांसी देने की घोषणा करता है, क्योंकि उसने राक्षस का पक्ष लिया है और सिद्धार्थक को शकटदास की रक्षा करने एवं राक्षस का विश्वासपात्र बनने की गुप्त योजना बनाता है। चाणक्य चन्दनदास को बुलाकर राक्षस के परिवार को सौंपने के लिए कहता है, पर चन्दनदास उसकी बात नहीं मानता, इस पर कुछ होकर चाणक्य उसको सपरिवार कारागार में डाल देने का आदेश देता है। द्वितीय अङ्क में राक्षस की प्रतियोजनाओं का उपस्थापन किया गया है । यद्यपि राक्षस की कूटनीति असफल हो जाती है, फिर भी इससे उसकी राजनीतिक विज्ञता का प्रमाण प्राप्त होता है। राक्षस का विराधगुप्त नामक गुप्तचर संपेरा के वेश में रङ्गमन्च पर प्रकट होता है। वह राक्षस के पास जाकर कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) का वृत्तान्त कहता है। विराधगुप्त के कथन से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त के विनाश की जो योजनाएं बनी थीं, उन्हें चाणक्य ने अन्यथा कर दिया है और चन्द्रगुप्त के
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy