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________________ माधवनिदान ] ( ३९१ ) [माध्यमत माध्यन्दिनिराचार्यः। पदमब्जरी भाग २ पृ० ७३९ । इनके नाम से दो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं-'शुक्लयजुःपदपाठ' तथा 'माध्यन्दिनशिक्षा' । कात्यायन कृत 'शुक्लयजुः प्रातिशाख्य' में 'माध्यन्दिनिसंहिता' के अध्येता माध्यन्दिनों का एक मत उद्धृत है। (८1 ३५) 'वायुपुराण' माध्यन्दिनि को याज्ञवल्क्य का साक्षात् शिष्य कहा गया है (६१॥ २४,२५) 'माध्यन्दिन-शिक्षा' में स्वर तथा उच्चारण सम्बन्धी नियमों का निरूपण है। इसके दो रूप हैं-लघु एवं बृहत् । आधारग्रन्थ-१. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १-५० युधिष्ठिर मीमांसक । २. वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग १-५० भगवद्दत्त । माधवनिदान-आयुर्वेद का प्रसिद्ध ग्रन्थ । इस ग्रन्थ के रचयिता का नाम माधव है। इनका समय सातवीं शताब्दी के आसपास है। 'माधवनिदान' आधुनिक युग में निदान का अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ माना जाता है-निदाने माधवः श्रेष्ठः । ग्रन्थकर्ता माधव ने इसका नाम 'रोगविनिश्चय' रखा था पर कालान्तर में यह'माधवनिदान' के ही नाम से विख्यात हुआ। ग्रन्थकार ने इसके प्रारम्भ में बताया है कि अनेक शास्त्रों के ज्ञान से रहित व्यक्तियों के लिए इस ग्रन्थ की रचना की गयी हैनानातन्त्रविहीनानां भिषजामल्पमेधसाम् । सुखं विज्ञातुमातङ्कमयमेव भविष्यति ॥ निदान ३ । माधव के पिता का नाम इन्दु है । कविराज गणनाथसेन जी ने इन्हें बंगाली कहा है । 'माधवनिदान' की दो प्रसिद्ध टीकाएं हैं-श्रीविजयरक्षित एवं उनके शिष्य श्रीकण्ठकृत मधुकोशटीका तथा श्रीवाचस्पति वैद्य कृत आतंकदर्पण टीका। इसके तीन हिन्दी अनुवाद प्राप्त होते हैं-(१) माधवनिदान-मधुकोष संस्कृत एवं विद्योतिनी हिन्दी टीका-श्रीसुदर्शन शास्त्री, (२) मनोरमा हिन्दी व्याख्या, (३) सर्वांगसुन्दरी हिन्दी टीका। आधारग्रन्थ-आयुर्वेद का बृहत् इतिहास-श्री मत्रिदेव विद्यालंकार । माध्वमत-वैष्णवमत का एक सम्प्रदाय जिसके प्रवर्तक आनन्दतीर्थ या मध्वाचार्य हैं। इस सम्प्रदाय को ब्रह्मसम्प्रदाय एवं इसके सिवान्त को देतबाद कहा जाता है । मध्वाचार्य का जन्म दक्षिण भारत में 'उडुपी' नामक प्रसिद्ध स्थान के निकट १९९९ ई० में हुआ था। उन्होंने ३७ ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें १४ प्रमुख हैं-'ब्रह्मसूत्रभाष्य', 'अनुव्याख्यान', 'ऐतरेय', 'छान्दोग्य', 'केन', 'कठ', 'बृहक्षरव्यक' आदि उपनिषदों का भाष्य, 'गीताभाष्य', 'भागवत-तात्पयं-निर्णय', 'महाभारततात्पर्य-निर्णय', 'विष्णुतत्त्वनिर्णय', 'प्रपंचमिथ्यात्वनिर्णय', 'गीतातात्पर्यनिर्णय' तथा 'तन्त्रसारसंग्रह' । मध्वाचार्य का प्रामाणिक जीवनवृत नारायण पण्डित ने 'मध्वविजय' तथा 'मणिमम्जरी' नामक ग्रन्थों में प्रस्तुत किया है। वे अद्वैतवाद के विरोधी तथा दैतवाद के समर्थक हैं । कहा जाता है कि यह मत सर्वप्रथम वायु को प्राप्त हुआ था। उनसे हमुमान् ने ग्रहण किया और हनुमान से भीम ने। तदनन्तर इसे आनन्द तीथं ने ग्रहण किया। समस्त वैष्णवदर्शनों की भांति इस सम्प्रदाय में भी भक्ति को प्राधान्य देकर उसे ही मुक्ति का साधन माना गया है, और ईश्वर, जीव तथा जगत तीनों की सत्यता स्वीकार की गयी है।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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