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________________ महिमोदय ] ( ३८४ ) [ महेन्द्रसूरि E हो सकते हैं, पर रस सदा अनुमेय ही होता है। संबन्धतः कुतश्चित्, सा काव्यानुमिति ॥ एतच्चानुमानस्यैव लक्षणं, नान्यस्य ।..."काव्यस्यात्मनि संजिनि रसादिरूपे न कस्य. चिद्विमतिः । संज्ञायां सा केवलमेषापि व्यक्त्ययोतऽतोऽस्य कुतः । शब्दस्यकाभिधाशक्तिरयं. स्यैव लिंगता। न व्यंजकत्वमनयोः समस्तीत्युपपादितम् । व्यक्तिविवेक, प्रथम विमर्श १।२५-२६ । अर्थोपि द्विविधः वाच्योऽनुमेयश्च । तत्र शब्दव्यापारविषयो वाच्यः, स एव मुख्य इत्युच्यते ।..."तत एव तदनुमिताद्वा लिंगभूताद् यदर्थान्तरमनुभूयते सोऽनुमेयः । स च त्रिविधः, वस्तुमात्रमलंकारा रसादयश्च । तत्रादौ वाच्यावपि सम्भवतः अन्यस्त्वनुः मेय एव इति वक्ष्यते। ___महिमभट्ट ने व्यंग्या को अनुमेय स्वीकार करते हुए ध्वनि का नाम काव्यानुमिति दे दिया है। इनके अनुसार काव्यानुमिति वहाँ होती है जहां वाच्य या उसके द्वारा अनुमित अर्थ दूसरे अर्थ को किसी सम्बन्ध से प्रकाशित करे। वाच्यस्तदनुमितो वा यत्रार्थोऽर्थान्तरं प्रकाशयति । सम्बन्धतः कुतश्चित् सा काव्यानुमितिरित्युक्ता । व्यक्तिविवेक १।२५। ___ आधारग्रन्थ-१. हिन्दी व्यक्तिविवेक-व्याख्याकार-पं० रेवाप्रसाद त्रिपाठी । २. ध्वनि संप्रदाय बीर उसके सिद्धान्त-डॉ० भोलाशखर व्यास । ३. संस्कृत काव्यशाल का इतिहास-डॉ० पा० वा० काणे। ४. भारतीय काव्यालोचन-राजवंश सहाय 'हीरा'। महिमोदय-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । इनका स्थिति-काल वि० सं० १७२२ है। लन्धिविजयसूरि नामक जैन विद्वान् इनके गुरु थे। इन्होंने 'ज्योतिष-रत्नाकर' नामक फलित ज्योतिष का महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है जिसमें संहिता, मुहूत्तं तथा जातक तीनों ही अंगों का विवेचन किया गया है । ये फलित एवं गणित दोनों के ही मर्मज्ञ थे। इन्होंने 'गणित साठ सो' तथा 'पंचांगानयनविधि' नामक दो गणित ज्योतिषविषयक ग्रन्थों की रचना की है। आधारग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री। महेन्द्रसरि-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । इनका समय बारहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण है। इनके गुरु का नाम मदनसूरि था। ये फीरोज शाह तुगलक के आश्रय में रहते थे। इन्होंने 'यन्त्रराज' नामक ग्रहगणित का अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है जिस पर इनके शिष्य मलयेन्दुसूरि ने टीका लिखी है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल सं० ११९२ है। इसमें पांच अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय का नामकरण उसमें वर्णित विषयों के आधार पर किया गया है, जैसे-गणिताध्याय, यन्त्रघटनाध्याय, यन्त्ररचनाध्याय, यन्त्रशोधनाध्याय तथा यन्त्रविचारणाध्याय । स्वयं लेखक ने इस ग्रन्थ की प्रशंसा करते हुए निम्नांकित इलोक की रचना की है-यथा भटैः प्रौढरणोत्कटोऽपि शस्त्रविमुक्तः परिभूतिमेति । तद्वन्महाज्योतिषनिस्तुषोऽपि यन्त्रेण हीनो गणकस्तथैव ॥ आधारप्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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