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________________ मध्यमव्यायोग ] ( ३७७ ) [ मनुस्मृति के साथ कही गयी है । भगवान् शङ्कर के मुख से काशी का माहात्म्य वर्णित कर विभिन्न देवताओं की प्रतिमा के निर्णय की विधि बतलायी गयी है । इसमें सोमवंशीय राजा ययाति का चरित अत्यन्त विस्तार के साथ वर्णित है तथा नर्मदा नदी का माहात्म्य १८७ से, १९४ अध्याय तक कहा गया है। इसके ५३ वें अध्याय में अत्यन्त विस्तार के साथ सभी पुराणों की विषय-वस्तु का प्रतिपादन किया गया है। जो पुराणों के क्रमिक विकास के अध्ययन की दृष्टि से अत्यन्त उपादेय है । इसमें भृगु, अङ्गिरा, अत्रि, विश्वामित्र, काश्यप, वसिष्ठ, पराशर तथा अगस्त्य आदि ऋषियों के वंश का वर्णन है जो १९५ से २०२ अध्याय तक दिया गया है। इस पुराण का अत्यन्त महत्वपूर्ण अङ्ग है राजधर्म का विस्तारपूर्वक वर्णन जिसमें दैव, पुरुषकार, साम, दाम, दण्ड, भेद, दुगं, यात्रा, सहाय सम्पति एवं तुलादान का विवेचन है जो २१५ से, २४३ अध्याय तक फैला हुआ है । इस पुराण में प्रतिभाशास्त्र का वैज्ञानिक विवेचन है जिसमें कालमान के आधार पर विभिन्न देवताओं की प्रतिमाओं का निर्माण तथा प्रतिमापीठ के निर्माण का निरूपण किया गया है । इस विषय का विवरण २५७ से २७० अध्याय तक प्रस्तुत किया गया है । आधारग्रन्थ - १. मत्स्यपुराण : ए स्टडी-डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल । २. पुराणम् - भाग ३, संख्या १, तथा पुराण भाग १ पृ० ८०-८८ । ३. पुराण-विमर्श - पं० बलदेव उपाध्याय । ४ पुराण तत्व-मीमांसा - श्री कृष्णमणि त्रिपाठी । ५. प्राचीन भारतीय साहित्य खण्ड १, भाग २ - विष्टरनित्स । मध्यमव्यायोग - यह महाकवि भास रचित एक असू का नाटक है [ दे० भास ]। इसमें भीम और हिडिम्बा की प्रणय कथा तथा घटोत्कच से सताये गये एक ब्राह्मण की भीम द्वारा मुक्ति का वर्णन है । घटोत्कच अपनी माता हिडिम्बा के आदेश से एक ब्राह्मण को सताता है । भीम ब्राह्मण को देखकर उसके पास जाते हैं और हिडिम्बा के पास पहुँच कर उसकी रक्षा करते हैं । हिडिम्बा अपने पति से मिलकर अत्यन्त प्रसन्न होती है और अपना रहस्योद्घाटन करती हुई कहती है कि उसने भीम से मिलने के लिए ही षड्यन्त्र किया था । घटोत्कच भी पिता से मिलकर अत्यन्त प्रसन्न होता है। इस नाटक में मध्यम शब्द, (द्वितीय) पाण्डव का द्योतक है । कवि ने इसके कथानक को 'महाभारत' से काफी परिवर्तित कर दिया है । इस नाटक में भीम का व्यक्तित्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, पर नाटक का सम्पूर्ण घटनाचक्र घटोत्कच पर केन्द्रित है । यह नाटक व्यायोग की कोटि में आता है । व्यायोग का कथानक तथा नाटक धीरोद्धत्त होता हैं। इसमें वीर और रौद्ररस प्रधान होते हैं तथा गर्भ और विमशं सन्धियों नहीं होतीं । इसमें एक ही अक और एक ही दिन की घटना होती है । शास्त्रीय दृष्टि से 'मध्यमव्यायोग' में सभी तत्वों को पूर्ण व्याप्ति हुई है | रस परिपाक एवं भावोन्मेष की दृष्टि से यह नाटक सफल है । मध्यम मनुस्मृति - इसके रचयिता मनु हैं जिन्हें प्राचीन ग्रन्थों में मानवजाति का पिता कहा जाता है । इस कथन की पुष्टि 'ऋग्वेद' के कई मन्त्रों से होती है - १२६०११६,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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