SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गदूत] [भंग-सन्देश इस चम्पू में भोसल वंश का वर्णन किया गया है और मुख्यतः शरभोजी का जीवनवृत्त वर्णित है। यह काव्य एक ही आश्वास में समाप्त हुआ है और अभी तक अप्रकाशित है । इसका विवरण तंजोर केटलाग ४२४० में प्राप्त होता है। अन्य के उपसंहार में कवि ने अपना परिचय दिया है-"इति श्रीभोसलवंशावलिचम्पुप्रबन्धे श्रीशरभोजिराजचरितवर्णनं नाम प्रथमाश्वासः समाप्तः।" आधारग्रन्थ-चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी । भुंगदूत-यह संस्कृत का दूतकाव्य है जिसके रचयिता शतावधानकवि श्रीकृष्णदेव हैं। इनका समय विक्रम का अष्टादश शतक है । इस काव्य के रचयिता के सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं होता । अनेक स्रोतों के आधार पर ग्रन्थकार सोरों या मैनपुरी निवासी सिद्ध होता है । इस पुस्तक का प्रकाशन नागपुर विश्वविद्यालय पत्रिका सं० ३, दिसम्बर १९३७ ई० में हो चुका है। मेषदूत की काव्य-शैली पर इस ग्रन्थ का निर्माण हुआ है। इसमें कुल १२६ मन्दाक्रान्ता छन्द हैं । श्रीकृष्ण के विरह में व्याकुल होकर कोई गोपी भुंग के द्वारा उनके पास सन्देश भिजवाती है । सन्देश के प्रसंग में वृन्दावन, नन्दगृह, नन्दउद्यान एवं गोपियों की विलासमय चेष्टानों का मनोरम वर्णन किया गया है। सन्देश के अन्त होते ही श्री कृष्ण का प्रकट होकर गोपी को परमपद देने का वर्णन है। गोपी अपनी विरहावस्था का वर्णन इस प्रकार करती है-शोणान्जानो ततिषु परणाकार मिन्दीवरेषु छायामांगीमधरसुषमा बन्धुजीवावलीषु । नेत्रालोकश्रियमपि ते पुण्डरीकेषु बाला निध्यायन्ती कथमपि बलाज्जीवितं सा बिभर्ति ॥ ११३ आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देश-काव्य-डॉ रामकुमार आचार्य । श्रृंग-सन्देश-इस सन्देश-काव्य के रचयिता वासुदेव कवि हैं। इनका समय १५ वीं एवं सोलहवीं शताब्दी का मध्य है। वासुदेव कवि कालीकट के राजा जमूरिन के सभा-कवि थे । इन्होंने पाणिनि के सूत्रों पर व्याख्या के रूप में 'वासुदेवविजय' नामक एक काव्य लिखा था जो अधूरा है और बाद में इनके भानजे नारायण कवि ने इसे पूरा किया। इनकी अन्य रचनामों में 'देवीचरित' (यमक काव्य, ६ आश्वासों का), 'शिवोदय' एवं 'अच्युतलीला' नामक काम्य.हैं। 'भृत-सन्देश' की कथा काल्पनिक है। इसमें किसी प्रेमी विरही द्वारा स्यान्दूर (त्रिवेन्द्रम् ) से श्वेतदुर्ग ( कोहक्कल ) में स्थित अपनी प्रेयसी के पास सन्देश भेजा गया है। यह सन्देश एक भृक्ष के द्वारा भेजा जाता है। इस काव्य की रचना 'मेघदूत' के माधार पर हुई है। कवि ने इसके दो विभागपूर्व एवं उत्तर-किये हैं और सर्वत्र मन्दाक्रान्ता वृत्त का प्रयोग किया है । इसके पूर्वभाग में ९५ तथा उत्तरभाग में ८० श्लोक हैं। सन्देश में नायक अपनी पत्नी को अपने शीघ्र ही आने की सूचना देता है-इत्थं तस्यै कथय सुदति ! स्वां प्रियो मन्मुखेम व्यक्तं ब्रूते नवमनुभवन्नीरशं विप्रयोगम् । पादाम्भोजं तव सुवदने ! चूडितुं प्रस्थितोऽहं तावन्मा मा तनु तनुलतां दीपिते तापबही २।५४ । बाधारग्रन्थ- संस्कृत के सन्वेश-काव्य-डॉ. रामकुमार आचार्य ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy