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________________ भारवि । ३४८ ) [भारवि पराग निकालने के बहाने चुम्बन करना चाहता था।)" किरातार्जुनीय में कई स्थलों पर शारीरिक सौन्दर्य के उद्घाटन के लिए अङ्गों का वर्णन किया गया है तथा नारी के रूप वर्णन के अतिरिक्त उनके हावभावों के चित्रण में सौन्दर्य की विवृत्ति हुई है। दसवें सर्ग में अप्सराओं तथा गन्धर्व युवतियों की वासनामय चेष्टाओं तथा कृत्रिम भाव-भंगियों का प्रदर्शन अमर्यादित शृङ्गार की सीमा पर पहुंच गया है। भारवि ने प्रथम सर्ग में द्रौपदी के चुभते हुए शब्दों में भाषणकला का सुन्दर विकास दिखलाया है। द्रौपदी-संवाद संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधि के रूप में प्रतिष्ठित है। युधिष्ठिर के जीवन की विषमता का चित्र खींच कर द्रोपदी उनके मन में उत्साह का भाव जगाना चाहती है-पुराधिरूढः शयनं महाधनं विबोध्यसे यः स्तुतिगीतमङ्गलैः । अदभंदर्भामधिशय्य स स्थली जहासि निद्रामशिवः शिवारुतः ॥ पुरोपनीतं नृप रामणीयकं द्विजातिशेषेण यदेतदन्धसा । तदद्य ते वन्यफलाशिनः परं परैति काश्यं यशसा समं वपुः ॥ "पहले आप बहुमूल्य पलंगों पर शयन करते थे एवं बन्दी भाटों की स्तुति के द्वारा आप की नींद टूटती थी, पर अब आप कुश आदि कठोर घास से आच्छादित पृथ्वी पर सोते हैं और स्यारिनों के अमङ्गलमय शब्दों से जागते हैं। राजन् ! पहले आप का यह शरीर द्विजातियों को खिलाकर बचे हुए अन्न से सुन्दर पुष्टि को प्राप्त हुआ था, अब आप बनैले फलों को खाकर गुजर करते हैं, जिसपे आप का शरीर और यश दोनों क्रमशः क्षीण हो जाते हैं। __भारवि कवि के अतिरिक्त महान् पण्डित एवं राजनीति-विशारद भी ज्ञात होते हैं। इनके महाकाव्य में नीति-बोध तथा जीवन-विवेक के तथ्य प्राप्त होते हैं । 'किराताजुनीय' में कई स्थलों पर नैतिक आदशों का निरूपण किया गया है। प्रथमतः प्रथम सगं में वनेचर एवं युधिष्ठिर-संवाद में इसका विवेचन है तत्पश्चात् द्वितीय सर्ग में भीम एवं युधिष्ठिर-संवाद में । द्विषन्निमित्ता यदियं दशा ततः समूलमुन्मूलयतीव मे मनः । परैरपर्यासितवीर्यसम्पदा पराभवोऽप्युत्सव एव मानिनाम् ॥ ११४१। “आप की यह ( सोचनीय) दशा शत्रुओं के कारण है, इसलिए वह मुझे विशेष कष्ट देती है। जिन मानी वीरों की शोयं-सम्पत्ति शत्रुओं द्वारा निहत नहीं होती, उनकी विपति भी उत्सव के समान है।" किरातार्जुनीय में युधिष्ठिर, भीम, एवं द्रौपदी तीनों ही नीतिज्ञों के रूप में चित्रित हैं । इनके कथन में गजा का ध्येय शक्ति, समृद्धि एवं विजय है । इसमें अनेक सूक्तिया जीवनादशं से विभूषित हैं-क-हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः । ११४, खब्रजन्ति ते मूढधियः पराभवं, भवन्ति मायाविषु येन मायिनः ॥१॥३०, ग-निवसन्ति पराक्रमाश्रया न विषादेन समं समृदयः ।। २११५, घ--सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् । वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ॥ १।३०, भारवि की शैली प्रभावशाली, प्रांजल तथा हृदयहारिणी है। इन्होंने अलंकारों के प्रयोग में भी चतुरता से काम लिया है। अर्थान्तरन्यास अलंकार के तो ये मानों सम्राट हैं। जीवन की सूक्ष्म अनुभूति को गुंफित करते हुए कवि ने अर्थान्तरन्यास अलंकार का सहारा लिया है। इनकी छन्द-योजना रसानुकूल एवं मनोरम है। 'किरातार्जुनीय' में पंचम सगं से १८ वें तक सोलह प्रकार के छन्द प्रयुक्त हुए हैं। इन्द्रवजा, उपजाति,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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