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________________ बृहस्पतिस्मृति] [बृहदारण्यक उपनिषद् अनुवाद राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना से दो खण्डों में हो चुका है ] सोमदेव की शैली सुन्दर, सरस तथा प्रवाहपूर्ण है। . बृहस्पतिस्मृति-इस ग्रन्थ के रचयिता बृहस्पति हैं जो प्राचीन भारतीय अर्थशास्त्रज्ञ माने जाते हैं। 'मिताक्षरा' तथा अन्य भाष्यों में बृहस्पति के लगभग ७०० श्लोक प्राप्त होते हैं जो व्यवहार-विषयक हैं। इनको कौटिल्य ने प्राचीन अर्थशास्त्री के रूप में वर्णित किया है। 'महाभारत' के शान्तिपर्व में ( ५९, ८०-८५) बृहस्पति को ब्रह्मा द्वारा रचित धर्म, अर्थ एवं काम-विषयक ग्रन्थों को तीन सहस्र अध्यायों में संक्षिप्त करने वाला कहा गया है। महाभारत के वनपर्व में 'बृहस्पतिनीति' का उल्लेख है। 'याज्ञवल्क्यस्मृति' में बृहस्पति 'धर्मवक्ता' कहे गए हैं। 'बृहस्पतिस्मृति' अभी तक सम्पूर्ण रूप में प्राप्त नहीं हुई है । डॉ. जॉली ने इनके ७११ श्लोकों का प्रकाशन किया है। इसमें व्यवहार-विषयक सिद्धान्त तथा परिभाषाओं का वर्णन है। उपलब्ध 'वृहस्पतिस्मृति' पर 'मनुस्मृति' का प्रभाव दिखाई पड़ता है और अनेक स्थलों पर तो ये मनु के संक्षिप्त विवरणों के व्याख्याता सिद्ध होते हैं। अपराक एवं कात्यायन के ग्रन्थों में बृहस्पति के उद्धरण प्राप्त होते हैं। डॉ० पी० वी० काणे के अनुसार बृहस्पति का समय दो सौ ई० से चार सौ ई० के बीच माना जा सकता है। स्मृतिचन्द्रिका, मिताक्षरा, पराशरमाधवीय, निर्णय-सिन्धु एवं संस्कारकौस्तुभ में, बृहस्पति के अनेक उद्धरण प्राप्त होते हैं। बृहस्पति के संबंध में अभी तक विज्ञान कु श्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके हैं। अपराकं एवं हेमाद्रि ने बृद्धबृहस्पति एवं ज्योतिबृंहस्पति का भी उल्लेख किया है। बृहस्पति प्रथम धर्मशास्त्रज्ञ हैं जिन्होंने धन तथा हिंसा के भेद को प्रकट किया है। आधारग्रन्थ-धर्मशास्त्र का इतिहास (खण्ड १) पी० वी० काणे (हिन्दी अनुवाद)। बृहदारण्यक उपनिषद्-यह उपनिषद् 'शतपथब्राह्मण' की अन्तिम दो शाखाओं से सम्बध है । इसमें तीन काण्ड एवं प्रत्येक में दो-दो अध्याय हैं। तीन काण्डों को क्रमशः मधुकाण्ड, याज्ञवल्ककाण्ड (मुनिकाण्ड) और खिलकाण्ड कहा जाता है। इसके प्रथम अध्याय में मृत्यु द्वारा समस्त पदार्थों को ग्रस लिए जाने का, प्राणी की श्रेष्ठता एवं सृष्टि-निर्माण संबंधी सिद्धान्तों का वर्णन रोचक बाख्यायिका के द्वारा किया गया है। द्वितीय अध्याय में गाग्यं एवं काशीनरेश अजातशत्रु के संवाद हैं तथा याज्ञवल्क द्वारा अपनी दो पलियों-मैत्रेयी एवं कात्यायनी-में धन का विभाजन कर, वन जाने का वर्णन है। उन्होंने मैत्रेयी के प्रति जो दिव्य दार्शनिक सन्देश दिये हैं, उनका वर्णन इसी अध्याय में है। तृतीय एवं चतुर्थ अध्यायों में जनक तथा याज्ञवल्क की कथा है। तृतीय में राजा जनक की सभा में याज्ञवल्क द्वारा अनेक ब्रह्मज्ञानियों का परास्त होना तथा चतुर्थ अध्याय में महाराज जनक का याज्ञवल्क से ब्रह्मज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने का उल्लेख है। पन्चम अध्याय में कात्यायनी एवं मैत्रेयी का आख्यान तथा नानाविध आध्यात्मिक विषयों का निरूपण है जैसे नीतिविषयक, सृष्टिसंबंधी तथा परलोकविषयक । षष्ठ अध्याय में अनेक प्रकार की प्रतीकोपासना एवं पन्चामि
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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