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________________ पुराण ] ( २८८ ) [ पुराण अन्तरप्रलय, अन्तराला - उपसंहृति, आभूत संप्लव, उदाप्लुत, निरोध, संस्था, उपसंहृति एकार्णवास्था, तत्त्वप्रतिसंयम आदि । प्रलय के चार प्रकार होते हैं - नैमित्तिक, प्राकृत, आत्यन्तिक एवं नित्य । ( क ) नैमित्तिक प्रलय --- प्रलय के अवसर पर जब ब्रह्मा एवं शेषशायी विष्णु विश्व को आत्मलीन कर सो जाते हैं तब उनके शयन को निमित्त मान कर ही प्रलय होता है जो ब्रह्मा के एक दिन व्यतीत होने पर होता है । ( ख ) प्राकृत प्रलय -- ब्रह्मा की आयु सी वर्ष होने पर यह प्रलय होता है । इस स्थिति में सात प्रकृतियाँ, पञ्च तन्मात्राएँ, अहंकार एवं महत्तत्त्व अव्यक्त प्रकृति में लीन हो जाते हैं एवं संसार में भीषण संहार के दृश्य परिलक्षित हो जाते हैं । नैमित्तिक प्रलय ब्रह्मा की आयु शेष होने पर ही होता है । ( ग ) आत्यन्तिक प्रलय - - इसके समय की कोई सीमा नहीं है । यह कभी भी हो सकता है । इसके उदय की साधन-सामग्री जब कभी उपस्थित हो जाती है, तभी यह सम्भव होता है । अत्यन्त दुःख - निवृत्ति को ही आत्यन्तिक प्रलय कहते हैं (घ ) नित्य प्रलय -- पुराणों में यह कहा गया है कि सृष्टि और प्रलय दोनों ही नित्य हैं । ब्रह्मा से लेकर हर प्राणी एवं तिनके भी सभी जन्मते एवं मरते हैं और इस प्रकार सृजन एवं संहार की लीला सदा चलती रहती है। मन्वन्तर का विवरण -- चारों युगों का मान ४३२०००० वर्षों का है । जब चारों युग एक हजार बार व्यतीत हो जाते हैं तब ब्रह्मा का एक दिन होता है। एक ब्राह्म दिन को ही कल्प कहते हैं और एक कल्प में १४ मनु अधिपति बनते हैं । एक मनु से दूसरे मनु तक आने वाला समय अन्तराल कहा जाता है और इसे ही मन्वन्तर कहते हैं । युगों का मान । कृतयुग (सत्ययुग ) त्रेतायुग 1 १७,२८,००० वर्ष १२,९६,००० वर्ष । ८,६४,००० वर्षं । ४,३२,००० वर्षं । ४३,२०,००० वर्ष । मन्वन्तरों के नाम – स्वायम्भुव मनु स्वारोचिष मनु तत्तम मनु, तामस मनु, रैवत मनु, चाक्षुस मनु, वैवस्वत मनु, सार्वाणि मनु, दक्षसार्वाण, ब्रह्मसार्वाण, धर्म सार्वाण, रुद्र सार्वाण, देव सार्वाण तथा इन्द्र सार्वाणि । पुराणों के अन्य विषयों में धर्मशास्त्रीय विषय आते हैं । इनमें पूतधमं तीर्थमाहात्म्य, राजधर्म आदि का विवेचन किया गया है । अन्य वर्णित विषय हैं - अश्वशास्त्र, आयुर्वेद, रत्नपरीक्षा, वास्तुविद्या, ज्योतिष, सामुद्रिकशास्त्र, धनुविद्या, अनुलेपनविद्या, पद्मिनीविद्या, जालन्धरीविद्या आदि। पुराणों में भौगोलिक वर्णन भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त होते हैं । इनमें ब्रह्माण्ड एवं चोदहो भुवन का विस्तारपूर्वक वर्णन है । पुराणों का वंशवृत्त ऐतिहासिक विवरणों से पूर्ण है । वंशों का प्रारम्भ मनु से होता है। इसमें दो मनुओं को अधिक महत्व प्राप्त है - स्वायम्भुव मनु ( प्रथम ) तथा द्वापर कलियुग >
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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