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________________ पाणिनि] ( २८० ) [पार्थसारथि मिश्र उपनिषद् युग के बाद भी कई शती का समय अपेक्षित था । कीथ ने इसी सूत्र के आधार पर पाणिनि को उपनिषदों के परिचय की बात प्रामाणिक मानी थी । तथ्य तो यह है कि पाणिनिकालीन साहित्य की परिधि वैदिक ग्रन्थों से कहीं आगे बढ़ चुकी थी।' पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ४६९ । पाणिनि के समय-निर्णय पर अभी सम्यक् अनुसंधान अपेक्षित है। उनके काल-निर्णय के सम्बन्ध में अद्यावधि जितनी शोध हो चुकी है उसके आधार पर उनका काल ईसा पूर्व ७०० वर्ष माना जा सकता है । __पाणिनिकृत 'अष्टाध्यायी' भारतीय जनजीवन एवं तत्कालीन सांस्कृतिक परिवेश को समझने के लिए स्वच्छ दर्पण है । इसमें अनेकानेक ऐसे शब्दों का सुगुंफन है जिनमें उस युग के सांस्कृतिक जीवन के चित्र का साक्षात्कार होता है । तत्कालीन भूगोल, सामाजिक जीवन, आर्थिक अवस्था, शिक्षा और विद्यासम्बन्धी जीवन, राजनैतिक और धार्मिक जीवन, दार्शनिक-चिन्तन, रहन-सहन, वेशभूषा, खान-पान का सम्यक् चित्र 'अष्टाध्यायी' में सुरक्षित है जिसके प्रत्येक सूत्र में विगत भारतीय जीवन की सांस्कृतिक निधि का उद्घोष सुनाई पड़ता है । आधारग्रन्थ-१. हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर-डॉ० एन० एन० दासगुप्त एवं डॉ० एस० के० डे । २. दि रिपोर्ट ऑफ संस्कृत मनस्क्रिप्ट्स-पीटसंन । ३. पाणिनिज अमेटिक-बोलिक । ४. पाणिनि-हिज प्लेस इन संस्कृत लिटरेचर-गोल्डस्टूकर । ५. स्टडीज ऑन पाणिनीज ग्रामर-फैडरगन । ६. सिस्टिम्स ऑफ संस्कृत ग्रामरवेलवेलकर । ७. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १, २, पं० युधिष्ठिर, मीमांसक। ८ पाणिनिकालीन भारतवर्ष-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल । ९. पाणिनि-डॉ. वासु. देवशरण अग्रवाल । १०. संस्कृत साहित्य का इतिहास-कीथ ( हिन्दी अनुवाद)। ११. संस्कृत साहित्य का इतिहास-पं० बलदेव उपाध्याय । १२. संस्कृत सुकविसमीक्षा-पं. बलदेव उपाध्याय । १३. पतन्जलिकालीन भारत-डॉ० प्रभुदयाल अमिहोत्री। १४. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का संक्षिप्त इतिहास-पं० रामाकान्त मिश्र । १५. दि स्ट्रक्चर ऑफ अष्टाध्यायी-फैडरगन । १६. पाणिनि व्याकरण अनुशीलनम० रामाशंकर भट्टाचार्य । १७. इण्डिया इन पाणिनि-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल । पार्थसारथि मिश्र-मीमांसा-दर्शन के भाट्टमत के आचार्यों में पार्थसारथि मिश्र का स्थान है [ ३० मीमांसा-दर्शन ] । इनके पिता का नाम यज्ञात्मा था। ये मिथिला निवासी थे तथा इनका समय १२ वीं शताब्दी है। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा भट्ट-परम्परा को अधिक महत्त्व एवं स्थायित्व प्रदान किया। मीमांसा-दर्शन पर इनकी चार रचनाएं उपलब्ध होती हैं जिनमें दो टीकाएँ एवं दो मौलिक रचनाएं हैं। तन्त्ररत्न, न्यायरत्नाकर, न्यायरत्नमाला एवं शास्त्रदीपिका । तंत्ररत्न कुमारिल भट्ट प्रसिद्ध मीमांसक [ दे० कुमारिल ] रचित टुप्टीका नामक ग्रन्थ की टीका है । 'न्यायरत्नाकर' भी कुमारिलभट्ट की रचना श्लोकवार्तिक की टीका है। 'न्यायरत्नमाला' इनकी मौलिक रचना है जिसमें स्वतःप्रामाण्य एवं व्याप्ति प्रभृति सात विषयों का विवेचन है। इस पर रामानुजाचार्य ने (१७वीं शताब्दी) 'नाणकरल' नामक व्याख्या अन्य की रचना की
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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