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________________ अभिज्ञान शाकुन्तल] ( १७ ) [अभिज्ञान शाकुन्तल एवं संवारने में कवि ने अपनी मौलिकता एवं कौशल का परिचय दिया है। वालि-वध को न्यायरूप देने तथा समुद्र द्वारा मार्ग देने के वर्णन में नवीनता है। इसी प्रकार जटायु से समाचार जानकर हनुमान् द्वारा समुद्र-संतरण करने तथा राम-रावण के युद-वर्णन में भी नवीनता प्रदर्शित की गयी है। रावण की पराजय होती है, पर वह सीता के समक्ष राम एवं लक्ष्मण की मायामयी प्रतिकृति दिखाकर उन्हें वश में करना चाहता है। उसी समय उसे सूचना मिलती है कि उसका पुत्र मेघनाद मारा गया। इसमें पात्रों के कथोपकथन छोटे एवं सरल वाक्यों में हैं, जो अत्यन्त प्रभावशाली हैं। 'अभिषेक' में वीररस की प्रधानता है पर यत्र-तत्र करुणरस भी अनुस्यूत है। कथोपकथन में कहीं-कहीं अत्यन्त विचित्रता भी दिखाई पड़ती है, जिसे सुनकर दर्शक चकित हो जाते हैं। जैसे; रावण के इस कथन पर नेपथ्य से ध्वनि का आना-कि रामेण, रामेण-व्यक्तमिन्द्रजिता युद्धे हते तस्मिन्नराधमे । लक्ष्मणेन सह भ्राता केन त्वं मोक्षयिष्यसे ॥ ५॥१० आधार ग्रन्थ-१. भासनाटकचक्रम् (हिन्दी अनुवाद सहित ). चौखम्बा प्रकाशन २. महाकविभास-एक अध्ययन-आ० बलदेव उपाध्याय । अभिज्ञान शाकुन्तल-यह महाकवि कालिदास का सर्वोत्तम नाटक है। [दे. कालिदास ] इसमें कवि ने सात अङ्कों में राजा दुष्यन्त एवं शकुन्तला के प्रणय, वियोग तथा पुनमिलन की कहानी का मनोरम वर्णन किया है। ____ कथानक-प्रथम अङ्क में राजा दुष्यन्त मृगया खेलते हुए महर्षि कण्व के आश्रम में चला जाता है जहां उसे वृक्षों का सिंचन करती हुई तीन मुनि-कन्याओं से साक्षात्कार होता है। उनमें से शकुन्तला के प्रति वह अनुरक्त हो जाता है। उस समय कण्व ऋषि शकुन्तला के किसी अमङ्गल के शान्त्यर्थ सोमतीर्थ गये हुए थे। उसका जीवन-वृत्तान्त जानने के बाद वह शकुन्तला पर आकृष्ट होता है और शकुन्तला भी उस पर अनुरक्त होती है। वार्तालाप के क्रम में राजा को ज्ञात हो जाता है कि शकुन्तला कण्व की पुत्री न होकर मेनका नामक अप्सरा की कन्या है, जो विश्वामित्र से उत्पन्न हुई है। दोनों ही अपनी अभीष्ट-सिद्धि के लिए गान्धवं-विधि से प्रणयसूत्र में आबद्ध हो जाते हैं। द्वितीय अङ्क में दुष्यन्त अपने मित्र माढव्य (विदूषक ) से शकुन्तला के प्रणय की चर्चा करता है। तभी आश्रम के दो तपस्वी आकर राजा से आश्रम की रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं । उसी समय हस्तिनापुर से दूत सन्देश लेकर आता है कि देवी वसुमती के उपवास के पारण के दिन राजा अवश्य आयें । शकुन्तला के प्रति मुग्ध राजा तपोवन छोड़ना नहीं चाहता । अन्त में वह माढव्य को भेज देता है और उसके चन्चल स्वभाव को जानते हुए शकुन्तला की प्रणय-गाथा को कपोलकल्पित कहकर उसे परिहास की बात कहता है। ऐसा कहकर कवि पञ्चम अङ्क की शकुन्तला-परित्याग की घटना की पृष्ठभूमि तैयार कर लेता है। यदि माढव्य का सन्देह दूर नहीं किया जाता तो सम्भव था कि सामाजिक के हृदय में यह सन्देह उत्पन्न हो जाता कि जब विदूषक इस बात को जानता था तो उसने २ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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