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________________ न्याय-प्रमाण-मीमांसा ] ( २५९ ) [ नृसिंह चम्पू आप्तवचन निश्चित रूप से प्रमाणित करते हैं कि ईश्वर की सत्ता है। न्यायदर्शन के अनुसार वेदों की प्रामाणिकता ईश्वर के ही कारण है। __ न्यायदर्शन की शास्त्रीय विवेचनात्मक पद्धति भारतीय तत्वज्ञान की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसके द्वारा निरूपित प्रमाणों को, किंचित् परिवर्तन के साथ, सभी दर्शन स्वीकार करते हैं। इसमें हेत्वाभास का सूक्ष्म विवेचन कर अनुमान को दोष-मुक्त कर दिया गया है तथा आत्मा को शरीर एवं इन्द्रियों से सर्वथा स्वतन्त्र एवं मुक्त मान कर उसकी नित्यता सिद्ध की गयी है, जिससे चार्वाक एवं बौद्धों की तद्विषयक मान्यताएं खंडित हो जाती हैं। इसकी तक-पद्धति अत्यन्त प्रौढ़ एवं संतोषपद है, किन्तु इसका तत्त्वज्ञान एवं ईश्वर-विषयक मान्यताएं उतनी सशक्त नहीं हैं। इसमें जगत् को ज्ञान से पृथक् एक स्वतन्त्र सत्ता के रूप में चित्रित किया गया है तथा इसमें अनेक पदार्थ; जैसे-दिक्, काल, आकाश, मन, परमाणु आदि भी नित्य माने गए हैं। अनेक वस्तुओं को नित्य मानने के पीछे कोई औचित्य नहीं दिखाई पड़ता तथा ईश्वर को जगत् का केवल निमित्त कारण मान कर उसमें मानवसुलभ दुर्बलताओं का समावेश कर दिया गया है। यह सम्पूर्ण विश्व के लिए एक ही परम सत्ता का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता और इस तरह अद्वैतवाद का समर्थन नहीं करता। इस दृष्टि से इसका तत्त्वज्ञान सांख्य और वेदान्त से हल्का पड़ जाता है। आधारग्रन्थ-१ इण्डियन फिलॉसफी-डॉ. एस. राधाकृष्णन् । २ भारतीय दर्शनदत्त और चटर्जी (हिन्दी अनुवाद) । ३ भारतीय दर्शन-पं बलदेव उपाध्याय । ४ तर्कभाषा-हिन्दी भाष्य-आ० विश्वेश्वर । ५ न्यायकुसुमाञ्जलि-(हिन्दीभाष्य-आ० विश्वेश्वर । ६ न्यायदर्शन-हिन्दी अनुवाद-श्रीराम शर्मा । ७ हिन्दी न्यायदर्शनपं० ढुण्डिराज शास्त्री। ८ पदार्थशास्त्र-आनन्द झा । ९ दर्शन-संग्रह-डॉ दीवानचन्द । १० न्यायमुक्तावली-हिन्दी अनुवाद । ११ भारतीय दर्शन-परिचय-न्यायपं० हरिमोहन झा। नृसिंह चम्पू-इस चम्पू-काव्य के प्रणेता दैवज्ञ सूर्य हैं। इनका रचना-काल सोलहवीं शती का मध्य भाग है। इन्होंने अपने ग्रन्थ में अपना परिचय दिया है (५७६ -७८)। इसके अनुसार ये भारद्वाजकुलोद्भव नागनाथ के पौत्र एवं ज्ञानराज के पुत्र थे। इनका जन्म गोदावरी तटस्थ वार्था संज्ञक नगर में हुआ था। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की है जिनमें 'लीलावती' एवं 'बीजगणित' की टीकाएं भी हैं। 'नृसिंह चम्पू' पांच उच्छवासों में विभक्त है जिसमें नृसिंहावतार की कथा का वर्णन है। प्रथम उच्छवास में केवल दश श्लोक हैं जिनमें वैकुण्ठ एवं नृसिंह की वन्दना की गयी है। द्वितीय में हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद की प्रताड़ना का वर्णन है। तृतीय उच्छास में हिरण्यकशिपु का वध तथा चतुर्थ अध्याय में देवताओं एवं सिदों द्वारा नृसिंह की स्तुति का वर्णन है। पन्चम उच्छ्वास में नृसिंह का प्रसन्न होना वर्णित है। इस चम्पू काव्य में श्लोकों की संख्या ७५ एवं गद्य के १९ चूर्णक हैं। इसमें भयानक, रोद्र, वीर, बीभत्स, अद्भुत, हास्य, श्रृंगार एवं शान्त रस का समावेश है। इस चम्पू-काव्य का प्रधान
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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