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न्यायदर्शन]
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[न्याय-प्रमाण-मीमांसा
कवि-प्रशस्ति से सम्बद्ध इलोकों को असंदिग्ध माना गया है, अतः उनके आधार पर कोई निश्चित निर्णय देना ठीक नहीं है। उपर्युक्त तर्कों के आधार पर वर्तमान नैषध काव्य अधूरा लगता है।
नल-दमयन्ती की कथा अत्यन्त लोकप्रिय है। इसका वर्णन 'महाभारत', पुराण एवं 'कथासरित्सागर' में प्राप्त होता है। श्रीहर्ष की कथावस्तु का स्रोत 'महाभारत' ही है किन्तु कवि ने नूतन उद्भावनागक्ति एवं कल्पना के बल पर इसमें नवीन भाव भर दिया है।
आधारग्रन्थ-१. नैषधचरित ( हिन्दी अनुवाद)-अनु० डॉ० चण्डिका प्रसाद शुक्ल २. नैषधचरित (हिन्दी अनुवाद)-डॉ० हरिदत्त शास्त्री कृत अनुवाद ३. नैषधचरित-( मल्लिनाथ कृत संस्कृत टीका एवं हिन्दी अनुवाद ) चौखम्बा प्रकाशन ४. नैषधपरिशीलन-(शोधप्रबन्ध ) डॉ० चण्डिका प्रसाद शुक्ल ।
न्यायदर्शन-भारतीय दर्शन का एक सम्प्रदाय जिसमें प्रमाणों के द्वारा वस्तु-तत्व की परीक्षा की जाती है-प्रमाणेरर्थपरीक्षणं न्यायः १११११, वात्स्यायनभाष्य ।न्यायदर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम हैं जिन्हें अक्षपाद भी कहा जाता है [ दे० गौतम ] । उन्होंने 'न्यायसूत्र' की रचना की है जो इस दर्शन का मूल ग्रन्थ है। 'न्यायसूत्र' में पांच अध्याय हैं तथा प्रत्येक अध्याय दो-दो आह्निकों में विभाजित हैं। इसमें षोडश विषयों के उद्देश्य, लक्षण एवं परीक्षण किये गये हैं। उनके नाम हैं-प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति तथा निग्रहस्थान । 'न्यायसूत्र' पर वात्स्यायन ने विस्तृत भाष्य लिखा है जो 'वात्स्यायनभाष्य' के नाम से प्रसिद्ध है। न्यायदर्शन के प्रसिद्ध आचार्यों में उद्योतकर (न्यायवात्तिक ), जयन्तभट्ट (न्यायमंजरी), उदयनाचार्य (आत्मतत्त्वविवेक एवं न्यायकुसुमाञ्जलि ), गंगेश उपाध्याय ( तत्त्वचिन्तामणि), जगदीशतर्कालंकार ( शब्दशक्तिप्रकाशिका), गदाधर भट्टाचार्य ( व्युत्पत्तिवाद एवं शक्तिवाद ) । न्यायशास्त्र के तीन अन्य लोकप्रिय ग्रन्थ हैं जिनमें इसके सिद्धान्तों को सरल रूप दिया गया है; वे हैंविश्वनाथ भट्टाचार्य कृत 'न्यायसिद्धान्तमुक्तावली', केशवमिश्र रचित 'तकंभाषा' तथा अन्नभट्ट कृत 'तर्कसंग्रह' [ उपर्युक्त सभी आचार्यों का परिचय इस कोश में देखें, उनके नामों के सम्मुख ] । कालान्तर में न्यायदर्शन की दो धाराएं हो गयीं-प्राचीनन्याय एवं नव्यन्याय । नव्यन्याय के प्रवत्तंक गंगेश उपाध्याय ( मैथिल नैयायिक ) हैं जिन्होंने 'तत्त्वचिन्तामणि' की रचना कर न्यायदर्शन में युगप्रवर्तन कर उसकी धारा को मोड़ दिया। नव्यन्याय के अन्य आचार्य हैं-जगदीश तर्कालंकार एवं गदाधर भट्टाचार्य । गौतमसूत्र तथा उसके भाष्य के विरुद्ध किये गए आक्षेपों के खण्डन के लिए जो ग्रन्थ लिखे गए उन्हें प्राचीन न्याय कहा जाता है। नव्यन्याय के विकास में मिथिला एवं नदिया (पूर्व बंगाल) के नैयायिकों का महत्त्वपूर्ण योग है। ___ न्याय-प्रमाण-मीमांसा-न्यायदर्शन का विषय है शुद्ध विचार एवं तार्किक आलोचना के नियमों के द्वारा परमतत्व का स्वरूप उद्घाटित करते हुए मोक्ष की प्राप्ति