SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूतवाक्य] ( २२० ) [ देवताध्यायब्राह्मण दूतवाक्य-यह महाकवि भास विरचित एक अंक का व्यायोग है (रूपक का एक भेद )। इसमें महाभारत के विनाशकारी युद्ध से बचने के लिए पाण्डवों द्वारा कृष्ण को अपना दूत बनाकर दुर्योधन के पास भेजने का वर्णन है। नाटक का प्रारम्भ कंचुकी की घोषणा से होता है कि आज महाराज सुयोधन समागत नरेशों के साथ मन्त्रणा करनेवाले हैं। दुर्योधन के सभा में बैठते ही कंचुकी प्रवेश कर कहता है कि पाण्डवों की ओर से पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण दूत बन कर आये हैं। श्रीकृष्ण को पुरुषोत्तम कहने पर दुर्योधन उसे डांट कर ऐसा कभी नहीं कहने को कहता है। वह अपने सभासदों से कहता है कि कोई भी व्यक्ति कृष्ण के प्रवेश-समय अपने आसन से खड़ा न हो। जो व्यक्ति कृष्ण के आने पर अपने आसन से खड़ा होगा उसे द्वादश सुवर्ण भार का दण्ड होगा।' वह श्रीकृष्ण का अपमान करने के लिए चीर-कर्षण के समय का द्रौपदी का चित्र देखता है तथा भीम, अर्जुन आदि की तत्कालीन भंगियों पर व्यंग्य करता है। श्रीकृष्ण के प्रवेश करते ही दरबारी सहसा उठ कर खड़े हो जाते हैं और दुर्योधन उन्हें दण्ड का स्मरण कराता है, पर स्वयं भी घबराहट से गिर जाता है। श्रीकृष्ण अपना प्रस्ताव रखते हुए पाण्डवों का आधा राज्य मांगते हैं। दुर्योधन कहता है कि क्या दायाद्य मांगते हैं ? मेरे चाचा पाण्डु तो वन में आखेट के समय मुनिशाप को प्राप्त हुए थे और तभी से स्त्रीप्रसंग से विरत रहे; तो फिर दूसरों से उत्पन्न पुत्रों को दायाच कैसा? इस पर श्रीकृष्ण भी वैसा ही कटु उत्तर देते हैं । दोनों का उत्तर-प्रत्युत्तर बढ़ता जाता है और दुर्योधन उन्हें बन्दी बना देने का आदेश देता है, पर किसी का साहस नहीं होता। स्वयं दुर्योधन उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़ता है, पर श्रीकृष्ण अपना विराट रूप प्रकट कर उसे स्तंभित कर देते हैं। कृष्ण क्रुद्ध होकर सुदर्शन चक्र का आवाहन करते हैं तथा उसे दुर्योधन का वध करने का आदेश देते हैं, पर वह उन्हें वैसा करने से रोकता है। श्रीकृष्ण शान्त हो जाते हैं। अब वे पाण्डव-शिविर में जाने लगते हैं तभी धृतराष्ट्र आकर उनके चरणों पर गिर पड़ते हैं और श्रीकृष्ण के आदेश से लौट जाते हैं । तत्पश्चात् भरतवाक्य के बाद नाटक की समाप्ति हो जाती है। ___इसमें वीर रस की प्रधानता है तथा उसकी अभिव्यक्ति के लिए आरभटी वृत्ति की योजना की गयी है । शास्त्रीय दृष्टि से यह व्यायोग है । इसका (व्यायोग का) नायक गर्वीला होता है और कथा.ऐतिहासिक होती है। इसमें स्त्री पात्रों का अभाव होता है और युवादि की प्रधानता होती है। दूतवाक्य में व्यायोग के सभी लक्षण घट जाते हैं। सम्पूर्ण ग्रन्थ में वीररस से पूर्ण वचनों की भरमार है। पाण्डवों की ओर से कौरवों के पास जाकर श्रीकृष्ण के दूतत्व करने में इस नाटक के नामकरण की सार्थकता सिद्ध होती है। देवताध्यायब्राह्मण-यह सामवेद का ब्राह्मण है तथा सामवेदीय सभी ब्राह्मणों में छोटा है। यह तीन खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में सामवेदीय देवताओं के नाम निर्दिष्ट हैं; जैसे अग्नि, इन्द्र, प्रजापति, सोम, वरुण, त्वष्टा, अंगिरस, पूषा, सरस्वती
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy