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________________ दण्डी] ( २१०) [दण्डी की रचना के नाम से प्रसिद्ध है । इस मत की पुष्टि उन्होंने 'मृच्छकटिक' एवं 'दशकुमारचरित' में वर्णित सामाजिक सम्बन्धों के सादृश्य के कारण की है। उन्होंने अपने कथन को सिद्ध करने के लिए 'मृच्छकटिक' एवं 'काव्यादर्श' में प्राप्त होने वाले इस श्लोक को 'लिंपतीव तमोंगानि' आधार बनाया है। उनका कहना है कि दण्डी ने बिना नाम दिये ही इस श्लोक को 'काव्यादर्श' में उद्धृत किया है। पर, इतने भर से ही दण्डी 'मृच्छकटिक' के रचयिता सिद्ध नहीं होते । कुछ विद्वानों ने 'छन्दोविचिति' को दण्डी की तृतीय कृति माना है, क्योंकि इसका संकेत 'काव्यादर्श' में भी प्राप्त होता है। पर डॉ. कीथ इस विचार से सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार 'छन्दोविचिति' तथा 'कालपरिच्छेद' दण्डी की स्वतन्त्र रचना न होकर 'काव्यादर्श' के दो परिच्छेद थे। 'काव्यादर्श' एवं 'दशकुमारचरित' के रचयिता की अभिन्नता के सम्बन्ध में भी सन्देह प्रकट किया गया है। 'काव्यादर्श' में दण्डी ने गद्यकाव्य के जिन नियमों का प्रतिपादन किया है उनका पालन 'दशकुमारचरित' में नहीं किया जा सका है। अतः एक ही व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त की अपने ग्रन्थ में अवहेलना करने से विद्वान् इसे दण्डी की रचना नहीं मानते। पर दोनों प्रन्यों की भिन्नता का समाधान इस प्रकार किया गया है कि 'दशकुमारचरित' कवि की युवावस्था की कृति है, अतः इसमें सभी नियमों का पालन नहीं किया जा सका है। 'काव्यादर्श' की रचना इन्होंने प्रौढ़ावस्था में की होगी। दण्डी की तीसरी रचना 'अवन्तिसुन्दरी कथा' को कहा जाता है । यह ग्रन्थ अपूर्ण रूप में प्रकाशित हो चुका है और अधिकांश विद्वान् इस (अपूर्ण) ग्रन्थ को ही दण्डी की तीसरी रचना मानने के पक्ष में हैं। इस प्रकार परम्परागत विचार की पुष्टि हो जाती है त्रयोऽग्नयस्त्रयो देवास्त्रयो वेदास्त्रयो गुणाः । त्रयो दण्डिप्रबन्धाश्च त्रिषु लोकेषु विश्रुताः॥ राजशेखर-सूक्तिमुक्तावली ४१७४ 'अवन्तिसुन्दरीकथा' में दण्डी के जीवनवृत्त के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है। यह रचना पद्यबद्ध है जिसकी एक रचना के अनुसार दण्डी भारवि के प्रपौत्र सिद्ध होते हैं। पर बाद में इसका नवीन पाठ प्राप्त होने पर भारवि दण्डी के प्रपितामह दामोदर के मित्र सिद्ध हुए। ___स मेधावी कविविद्वान् भारवि प्रभवं गिराम् । अनुरुध्याकरोन्मैत्री नरेन्द्र विष्णुवर्धने ॥ १।२३ दण्डी के काल-निर्धारण में भी मतैक्य नहीं दिखाई पड़ता है। 'काव्यादर्श' के आधार पर इनका समय-निर्धारण आसान हो गया है। दण्डी को बाण से २०-२५ वर्ष पूर्व माना जाता है। साम्प्रतिक विद्वानों के मतानुसार दण्डी का समय सप्तम शती का उत्तरार्ध है। इस मत के पोषक प्रो० आर० नरसिंहाचार्य, डॉ० बेलबेलकर एवं आचार्य बलदेव उपाध्याय आदि हैं। पर यह मत बाण और दण्डी के ग्रन्थों की तुलना करने पर अमान्य ठहर जाता है। दण्डी बाण के पूर्ववर्ती थे। उनका गब बाण की
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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