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________________ अनन्तदेव] [ अन्नंभट्ट रप्रसरत्परागसिकतादुर्गास्तटीभूमयः । याः कृच्छ्रादतिलछ्य लुब्धकभयात्तैरेवरेणूत्करैधीरावाहिभिरस्तिलुप्तपदवीनिःशेषमणीकुलम् ॥ ५॥६॥ “ये जनस्थान की नदियों के तटप्रदेश दिखाई दे रहे हैं, जहां पराग के चखने से (या वसन्त ऋतु के कारण ) मस्त कोकिलाओं के द्वारा कंपाये हुए आम के बोरों से इधर-उधर बिखर कर फैलते हुए पराग की रेती इतनी सघन है कि वहाँ जाना बड़ा कठिन है। इस सघन आम्रपरागांधकार से युक्त तटियों को बड़ी कठिनता से पार कर शिकारी के भय से डरी हुई हिरनियाँ धाराप्रवाह में बिखरे हुए पराग-समूह से सुरक्षित होकर इसलिए विचरण कर रही हैं कि उनके पद-चिह्नों को आम्रपराग की धूलि ने छिपा लिया है।" . आधार ग्रन्थ-१. संस्कृत नाटक-कीथ (हिन्दी अनुवाद), २. संस्कृत कविदर्शन-डॉ० भोलाशंकर व्यास, ३. संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास-श्री वाचस्पतिशास्त्री गैरोला, ४. अनर्घराघव (हिन्दी अनुवाद सहित )। अनन्तदेव-राजनीति धर्म के निबन्धकार । ये सुप्रसिद्ध महाराष्ट्रीय सन्त एकनाथ के पौत्र थे। इनके पिता आपदेव थे। अनन्तदेव चन्द्रवंशीय राजा बाजबहादुरचन्द्र के सभापण्डित थे। इन्होंने उन्हीं के आदेश से 'राजधर्मकौस्तुभ' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया था । इनकी अन्य रचनाएँ हैं—सैनिकशास्त्र तथा त्रिवीणक धर्म । इनका रचनाकाल १६६२ ई० के आसपास है। 'राजधर्मकौस्तुभ' राजनीतिधर्म का प्रसिद्ध निबन्ध ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ चार खण्डों में विभक्त है जिन्हें दीधिति कहा गया है। इन चार दीधितियों के नाम हैं-वास्तुकर्म-दीधिति, वास्तु योग दीधिति, राज्याभिषेक दीधिति एवं प्रजापालन दीधिति । प्रथम दीधिति में १६ अध्याय, द्वितीय में १२ अध्याय, तृतीय में २५ अध्याय एवं चतुर्थ दीधिति में ३५ अध्याय हैं। इस प्रकार इसमें कुल ८८ अध्याय हैं जिनमें राजधर्मविषयक विविध पद्धतियाँ वणित हैं। इस निबन्ध की रचना का मुख्य उद्देश्य है 'राजाओं को उनके व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक कर्तव्यों के विधिवत् पालन हेतु पथप्रदर्शन एवं निर्देशन'। इन्होंने राजधर्म के पूर्वस्वीकृत सिद्धान्तों का समावेश कर अपने ग्रन्थ की रचना. की है। बाजबहादुरचन्द्र भूपतेस्तस्यभूरियशसे प्रतन्यते । राजधर्मविषयेऽत्र कौस्तुभे अनेकपद्धतियुताऽथ दीधितिः ।। . आधार ग्रन्थ-भारतीय राजशास्त्र प्रणेता-डॉ० श्यामलाल पाण्डेय । अन्नंभट्ट-'तर्कसंग्रह' नामक अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ के रचयिता अन्नंभट्ट हैं। ये न्यायदर्शन के आचार्य हैं। इनका समय १७ वीं शताब्दी का उत्तरार्ध है। ये तैलंग ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम तिरुमल था जिनकी उपाधि अद्वैतविद्याचार्य की थी। अन्नंभट्ट ने काशी में आकर विद्याध्ययन किया था। इन्होंने अनेक दार्शनिक ग्रन्थों की टीकाएं लिखी हैं, पर इनकी प्रसिद्धि एकमात्र ग्रन्थ 'तसंग्रह' के कार ही है। इसकी इन्होंने 'दीपिका' नामक टीका भी लिखी है। इनके अन्य टीका-ग्रन्थों के नाम हैं-राणकोज्जीवनी ( यह न्यायसुधा की विशद टीका है), ब्रह्मसूत्रव्याख्या, अष्टाध्यायी टीका, उद्योतन (यह कैयटप्रदीप के ऊपर रचित व्याख्यान-ग्रन्थ है ), सिद्धान्जन (यह न्यायशास्त्रीय ग्रन्थ है जो जयदेव विरचित 'मण्यालोक' के ऊपर टीका है)। 'तर्कसंग्रह'
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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