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________________ तत्त्वगुणादर्श] ( २०२) [ताण्ड्य या पञ्चविंश ब्राह्मण कहते हैं।" भारतीयदर्शन-पं० बलदेव उपाध्याय पृ० ५४२ । तन्त्र ग्रन्थ दो प्रकार के होते हैं-वेदानुकूल एवं वेदबाह्य । तन्त्रों के कई सिद्धान्त तथा आचार वेदानुकूल हैं तथा इनका स्रोत वेदों में दिखाई पड़ता है; जैसे पाञ्चरात्र एवं शैवागम के कई सिद्धान्त । शाक्त आगम वेदानुकूल न होकर वेद बाह्य होता है। पर इसके भी कुछ सिदान्त वैदिक हैं। तन्त्र के तीन विभाग माने जाते हैं जाह्मण, बौद्ध एवं जैन तन्त्र । ब्राह्मण तन्त्र के भी तीन विभाग हैं-वैष्णवागम (पाश्चरात्र या भागवत ) शैवागम एवं शाक्तागम । इन तीनों के क्रमशः तीन उपास्य देव हैं-विष्णु, शिव तथा शक्ति । तीनों के परिचय पृथक्-पृथक् दिये गए हैं। तन्त्र का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं प्रौढ़ है किन्तु इसका अधिकांश अभी तक अप्रकाशित है। आधारग्रन्थ-भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । तत्त्वगुणादर्श-इस चम्पूकाव्य के प्रणेता श्री अण्णयाय हैं । इनका समयं १६७५ से १७२५ ई० के बासपास है। इनके पिता का नाम श्रीदास ताताचार्य एवं पितामह का नाम अण्णयाचार्य था जो श्रीशैल परिवार के थे। इस चम्पू में वार्तात्मक शैली में शैव एवं वैष्णव सिवान्त की अभिव्यंजना की गयी है। तत्वार्थनिरूपण एवं कवित्व चमत्कार दोनों का सम्यक् निदर्शन इस काव्य में किया गया है । यह काव्य अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण डी० सी० मद्रास १२२९५ में प्राप्त होता है। कवि ने रचना का उद्देश्य इन शब्दों में प्रकट किया है__तत्वनिर्धारणबुः स्तम्भनादतथात्वहक् । वैष्णवस्त्वभवद् भूष्णुः सत्त्वतस्तत्व वित्तमः ॥ ६॥ ___ माधारग्रन्थ-पम्पू-काव्य का बालोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी। ताण्ड्य या पञ्चविंश ब्रामण-इसे ताब्य महाब्राह्मण भी कहा जाता है। इसका संबंध 'सामवेद' की ताहि शाखा से है, इसीलिए इसका नाम ताण्डव है । इसमें पचीस अध्याय हैं, बतः इसे 'पञ्चविंश' भी कहते हैं। विशालकाय होने के कारण इसकी संज्ञा 'महाबाह्मण' है। इस महाब्राह्मण में यज्ञ के विविध रूपों का प्रतिपादन किया गया है जिसमें एक दिन से लेकर सहस्रों वर्षों तक समाप्त होनेवाले या वर्णित हैं। प्रारम्भिक तीन अध्यायों में त्रिवृत, पञ्चदश, सप्तदश आदि स्तोमों की विष्टुतियाँ विस्तारपूर्वक वर्णित हैं तथा चतुर्थ एवं पंचम अध्यायों में गवामयन' का वर्णन किया गया है । षष्ठ अध्याय में ज्योतिष्टोम, उक्य एवं अहिरात्र का वर्णन एवं सात से नवम अध्याय में प्रातः सबन, माध्यदिन सवन, सायं सवन बोर रात्रि पूजा की विधि कषित है। दशम से १५ अध्याय तक द्वादशाह यागों का विधान है। इनमें एक दिन से प्रारम्भ कर दसवें दिन तक के विधानों एवं सामों का वर्णन है। १६ से १९ अध्याय तक अनेक प्रकार के एकाह यज्ञ वर्णित हैं एवं २० से २२ अध्याय तक अहीन यज्ञों का विवरण है । ( अहीन यज्ञ उस यज्ञ सोमभागको कहते हैं जिसमें तीनों वर्गों का अधिकार रहे ) २३ से २५ तक सत्रों का वर्णन किया गया है। इस ब्राह्मण का मुख्य विषय है
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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