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________________ अनघराघव] [अनघराघव पर्यन्त सम्पूर्ण कथा को नाटक का रूप दिया है। रामायण की कथा को एक नाटक में निबद्ध करने में कवि का प्रयास सफल न हो सका है और इसका कथानक बिखर गया है, फिर भी रोचकता तथा काव्यात्मकता का इसमें अभाव नहीं है। प्रथम अंक में अत्यधिक लंबी प्रस्तावना का नियोजन किया गया है। तत्पश्चात् राजा दशरथ एवं वामदेव रंगमंच पर प्रवेश करते हैं। कंचुकी द्वारा उन्हें महर्षि विश्वामित्र के आगमन की सूचना प्राप्त होती है तथा महर्षि उनसे राम को यज्ञ-विध्वंस करने वाले राक्षसों का संहार करने के लिए मांगते हैं। राजा प्रथमतः हिचकिचाते हैं, किन्तु अन्ततः राम-लक्ष्मण को उनके साथ विदा कर देते हैं। द्वितीय अंक में शुनःशेप एवं पशुमेढ़ नामक दो शिष्यों द्वारा बाली, रावण, राक्षस तथा जाम्बवन्त के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त होती है। तदनन्तर राम-लक्ष्मण का मंच पर प्रवेश होता है और ताड़का के आगमन की सूचना प्राप्त होती है। राम ताड़का को स्त्री जानकर मारने में संकोच करते हैं, पर महर्षि विश्वामित्र का उपदेश ग्रहण कर उसका वध कर डालते हैं। इसी अंक में कवि ने सूर्यास्त का अतिविस्तृत वर्णन किया है। ताड़कावध के पश्चात् राम द्वारा रात्रि का वर्णन कराया गया है जो नाटकीय दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं रखता। तदनन्तर विश्वामित्र मिथिला जाने का प्रस्ताव करते हैं। तृतीय अंक के विष्कम्भक में कंचुकी द्वारा यह सूचना प्राप्त होती है कि रावण ने सीता के साथ विवाह करने का प्रस्ताव भेजा है। इसी बीच जनकपुर में रामचन्द्र का आगमन होता है और राजा जनक मुनि के साथ उनका स्वागत करते हैं। राजा जनक यह शर्त रखते हैं कि जो शिवजी का धनुष चढ़ा देगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा। इस पर शौष्कल (रावण का दूत) अपना अपमान समझता है और रावण की प्रशंसा करता है, पर रामचन्द्र उसका उत्तर देते हैं। रामचन्द्र धनुष तोड़ डालते हैं और सीता के साथ उनका विवाह होता है। शौष्कल राम से बदला लेने की घोषणा कर उन्हें चेतावनी देकर चला जाता है और दशरथ के अन्य पुत्रों का भी विवाह राजा जनक के यहाँ सम्पन्न होता है। चतुर्थ अंक में राम से बदला चुकाने के लिए चिन्तित रावण का मंत्री माल्यवान् विचारमग्न अवस्था में प्रदर्शित किया जाता है। तत्क्षण वहाँ शूर्पणखा आती है और माल्यवान् उसे मंथरा का छद्मवेश धारण कराकर कैकेयी से राम के वनवास की योजना बनवा देता है। वह परशुराम को भी प्रभावित कर राम से युद्ध करने के लिए मिथिला भेज देता है तथा आवेश में आकर परशुराम राम से युद्ध करते हैं और अन्ततः पराजित होकर चले जाते हैं। राजा दशरथ राम को अभिषेक देना चाहते हैं, पर कैकेयी दो वरदान मांगकर राजा की आशा पर पानी फेर देती है और वे मूच्छित हो जाते हैं। पंचम अंक के विष्कम्भक में जाम्बवन्त एवं श्रमणा के वार्तालाप से विदित होता है कि राम वन चले गए हैं और वहां उन्होंने कई राक्षसों का संहार किया है। इसी अंक में संन्यासी के वेष में आये हुए रावण को जाम्बवन्त पहचान लेता है जो सीता-हरण के लिए आया था। इसी बीच जटायु वहाँ आकर रावण एवं मारीच की योजना को जाम्बवन्त से कहता है । जाम्बवन्त यह बात जाकर सुग्रीव को बताता है और रावण जटाय के प्रतिरोध करने पर भी सीता का हरण कर लेता है।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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