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________________ चिय] ( १७८ ) [चैतन्यमत बाधारग्रन्थ-१. भारतीयदर्शन-डॉ० राधाकृष्णन् (हिन्दी अनुवाद) २. भारतीय रचन-डॉ० डी० एम० दत्त ( हिन्दी अनुवाद ) ३. भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ४. चार्वाक दर्शन की शास्त्रीय समीक्षा-डॉ० सर्वदानन्द पाठक ५. सर्वदर्शन संग्रह ( हिन्दी अनुवाद)-चौखम्बा प्रकाशन । चित्रचम्पू-इस चम्पूकाव्य के प्रणेता का नाम श्री वाणेश्वर विद्यालंकार है। इनके पिता का नाम रामदेव तकवागीश्वर एवं पितामह का नाम विष्णु सिद्धान्तवागीश्वर था। इस चम्पू का निर्माणकाल १७४४ ई० है । यह काव्य महाराज चित्रसेन (वर्दमान नरेश ) के आदेश से लिखा गया था। इसमें यात्राप्रबन्ध एवं भक्तिभावना का मिला हुआ रूप है। इसमें २९४ पद्य तथा १३१ गद्य चूर्णक हैं। इसमें कवि ने राजा के आदेश से मनोरम वन का वर्णन किया है। प्रारम्भ में गणेश, शिव, शक्ति, राधा तथा माधव की वन्दना की गयी है । राधा-माधव की वन्दना इस प्रकार है यद्गोलोकविलासकेलिरसिकं भ्रूभंगभंगीनव क्रीडाविष्कृतसर्गसंस्थितिलयं सारं श्रुतीनामपि । वृन्दावल्यलिकुंजपुंजभवनं तन्मेमनः पंजरे राधामाधवसंज्ञितं विजयामद्वन्द्वमाधं महः ॥ ५॥ इस सम्पूकाव्य का प्रकाशन कलकत्ता से हो चुका है। आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छबिनाथ त्रिपाठी। चेतोदूत-यह संस्कृत का ऐसा सन्देशकाव्य है जिसका लेखक अज्ञात है और रचनाकाल का भी पता नहीं है । इसमें किसी शिष्य द्वारा अपने गुरु के चरणों में उनकी कृपादृष्टि को प्रेयसी मानकर अपने चित्त को दूत बनाकर भेजने का वर्णन है। गुरु की वन्दना, उनके यश का वर्णन तथा उनकी नगरी का वर्णन किया गया है। अन्त में गुरु की प्रसन्नता एवं शिष्य के अन्तःतोष का वर्णन है । इसमें कुल १२९ श्लोक हैं और मन्दाक्रान्ता वृत्त का प्रयोग किया गया है। चित्त को दूत बनाने के कारण इसका नाम चेतोदूत रखा गया है । इसकी रचना मेषदूत के एकोकों की समस्यापूक्ति के रूप में की गयी है । अन्य का प्रकाशन वि० सं० १९७० में जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर से हो चुका है। इसकी भाषा प्रवाहपूर्ण एवं प्रसादमयी है तथा शृंगार के स्थान पर शान्तरस एवं धार्मिकता का वातावरण उपस्थित किया गया है। कवि अपने काव्य में गुरु की कृपादृष्टि को ही स 'स्व मानता है सन्ति श्रीमत्परमगुरवः सर्वदाऽपि प्रसन्ना स्तेषां शिष्यः पुनरनुपमात्यन्तभक्तिप्रणुनः । तन्माहात्म्यादपि जहमतिर्मेषदूतान्त्यपादैः चेतोदूताभिधमभिनवं काव्यमेतद् व्यधत्त ॥ १२९ ॥ आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देशकाव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य । चैतन्यमत-(अचिन्त्यभेदाभेदवाद)-यह वैष्णवदर्शन का एक महत्त्वपूर्ण सम्प्रदाय है जिसके प्रवर्तक (बंगदेशनिवासी) महाप्रभु चैतन्य थे। इनका जन्म नवद्वीप
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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