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________________ अथर्ववेद] [ अथर्ववेद आजकल 'अथर्ववेद' संहिता का प्रचलित रूप इसी शाखा का है। मौदशाखामहाभाष्य ( ४।१।८६ ) तथा शाबरभाष्य में ( १।१।३० ) इसका उल्लेख है। अथर्ववेद का प्रतिपाद्य विषय-इसके ७३१ (कुछ लोगों के अनुसार ७३० ) सूक्तों को विषयविवेचन की दृष्टि से इस प्रकार विभाजित किया जाता है-आयुर्वेद विषयक १४४ सूक्त, राजधर्म एवं राष्ट्रधर्म-सम्बन्धी २१५ सूक्त, समाज व्यवस्थाविषयक ७५ सूक्त, अध्यात्मविषयक ८३ सूक्त तथा शेष २१४ सूक्तों का सम्बन्ध विविध विषयों से है। इसके विषय अन्य वेदों की अपेक्षा नितान्त भिन्न एवं विलक्षण हैं। इन्हें अध्यात्म, अधिभूत एवं अधिदैवत के रूप में विभक्त किया जा सकता है। अध्यात्म के अन्तर्गत ब्रह्म, परमात्मा तथा चारों आश्रमों के विविध निर्देश आते हैं तथा अधिभूत के भीतर राजा, राज्य-शासन, संग्राम, शत्रु, वाहन आदि विषयों का वर्णन है। अधिदैवतप्रकरण में देवता, यज्ञ एवं काल सम्बन्धी विविध विषयों का विवेचन है। 'अथर्ववेद' मन्त्र-तन्त्रों का प्रकीर्ण संग्रह है तथा इसमें संगृहीत सूक्तों का विषय अधिकांशतः गृह्य संस्कारों का है। इनमें जातेष्टि, विवाह एवं अन्त्येष्टि सदृश पारिवारिक संस्कारों का उल्लेख है तथा राजधर्म से सम्बद्ध विषय 'अधिकतर वर्णित हैं। आयुर्वेद सम्बन्धी सूक्त-इस विषय के अन्तर्गत रोग एवं उनकी चिकित्सा से सम्बद्ध मन्त्र हैं जिनमें बताया गया है कि नाना प्रकार के भूत प्रेतों के कारण ही रोगों की उत्पत्ति होती है। इनमें आयुर्वेद-विषयक मानव-शरीर के आपादमस्तक सभी अङ्गों का नामग्रहपूर्वक कथन है तथा मानव शरीर का वर्णन पैर के तलुये से लेकर सिर "तक किया गया है। 'अथर्ववेद' में रोगों को दूर करने के लिए अनेक मन्त्रों में जादू-टोने का वर्णन है । चिकित्सा-प्रकरण में जलचिकित्सा का उल्लेख है तथा उदय होते हुए सूर्य की रश्मियों के प्रयोग पर भी बल दिया गया है। आयुष्याणि सूक्तानि–'अथर्ववेद' में अनेक ऐसे मन्त्र हैं, जिनमें दीर्घजीवन के लिए प्रार्थना की गयी है। ऐसे सूक्त विशेष रूप से मुण्डन, उपनयन आदि संस्कारों के अवसर पर प्रयुक्त होते थे। राजकर्माणि-राजाओं के सम्बन्ध में 'अथर्ववेद' में अनेक सूक्त हैं, जिनमें तत्कालीन राजनैतिक अवस्था का चित्रण है। इसमें विशुद्ध प्रजातन्त्रात्मक राजव्यवस्था का निर्देश है-'त्वं विशो वृणतां राज्याय ३।४।२।' इस सूक्त में राजा के वरण की चर्चा है। चतुर्थ काण्ड के अष्टम सूक्त में राज्याभिषेक के समय राष्ट्रपति द्वारा यह कथन किया गया है कि मैं सदा उनका विश्वासभाजन बना रहूँगा। राष्ट्रपति सदा राष्ट्र की उन्नति में तत्पर रहता है'बृहद्राष्ट्रं दधातु नः'। राज्य के शासन के लिए राष्ट्रपति के अतिरिक्त 'प्रवर समिति' का भी निर्देश है-( सभा च मां समितिश्चावताम् ७१३।१) तथा राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्रपति तथा राष्ट्रसभा के सदस्यों के मतैक्य की भी बात कही गयी है। स्त्रीकर्माणि-'अथर्ववेद' में ऐसे कई सूक्त हैं, जिनका सम्बन्ध विवाह और प्रेम से है तथा कुछ सूक्तों में पुत्रोत्पत्ति एवं नवजात शिशु की रक्षा के लिए प्रार्थना की गयी है। इसमें कुछ ऐसे भी मन्त्र हैं, जिनमें सपत्नी को वश में करने तथा पति-पत्नी का स्नेह प्राप्त करने के लिए जादू-टोने का वर्णन है तथा स्त्री और पुरुष को वश में करने के लिए वशीकरण मन्त्रों का विधान है। इसी प्रकार मारण, मोहन और
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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