SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्भाणी] (१६८) [चतुर्भाणी विवाहोपरान्त संभोग के नियम, ब्राह्मण की वृत्तियाँ, ४० संस्कार, अपमान लेख, गाली, आक्रमण, चोर, बलात्कार तथा कई जातियों के व्यक्ति के लिए चोरी के नियम, ऋण देने, सूदखोरी, विपरीत सम्प्राप्ति, दण्ड देने के विषय में ब्राह्मणों का विशेषा. विकार, जन्म-मरण के समय अपवित्रता के नियम, नारियों के कतंव्य, नियोग तथा उनकी दशाएं पांच प्रकार के बाद तथा श्राद्ध के समय न बुलाये जाने वाले व्यक्तियों के नियम, प्रायश्चित्त के अवसर एवं कारण, ब्रह्महत्या, बलात्कार, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, गाय या किसी अन्य पशु की हत्या से उत्पन्न पापों के प्रायश्चित्त, पापियों की श्रेणियां, महापातक, उपपातक तथा दोनों के लिए गुप्त प्रायश्चित्त, चान्द्रायणव्रत, सम्पत्तिविभाजन, स्त्रीधन, द्वादश प्रकार के पुत्र तथा वसीयत आदि । सर्व प्रथम डॉ. स्टेज्लर द्वारा १८७६ ई० में कलकता से प्रकाशित, हरदत्त की टीका के साथ भास्करी भाष्य मैसूर से प्रकाशित, अंगरेजी अनुवाद सेक्रेड बुक्स ऑफ ईस्ट भाग २ में डॉ० बुहलर द्वारा प्रकाशित ] ____ गौतमधर्मसूत्र (मूल एवं हिन्दी अनुवाद)-अनुवादक डॉ. उमेशचन्द्र चौखम्बा प्रकाशन । चतुर्भाणी--यह गुप्तयुग में रचित चार भाणों में ( रूपक के प्रकार ) संग्रह है। वे हैं--'उभयाभिसारिका', 'पप्रप्राभूतक', 'पादताडितक' एवं 'धूतं विट-संवाद' । इनके रचयिता क्रमशः वररुचि, शूद्रक, श्यामिलक एवं ईश्वरदत्त है। 'पद्मप्राभृतक' एवं 'पाद ताहिक' का कार्यक्षेत्र उज्जयिनी तथा 'धूतं विट-संवाद' और 'उभयाभिसारिका' का कार्यस्थ. पाटलिपुत्र है। सभी भाणों का विषय समान है और इनमें शृङ्गार रस की प्रधानता है। इनमें वेश्याओं तथा उनके फेरे में पड़ने वाले व्यक्तियों की अच्छीबुरी बावे भरी हुई हैं। ग. वासुदेव शरण अग्रवाल ने बताया है कि इनमें तत्कालीन भारत की सांस्कृतिकनिधि पड़ी हुई है तथा इनके वर्णनों में स्थापत्य, चित्र, वस्त्र, मेष-भूषा, सानपान, नृत्य, संगीत, कला, शिष्टाचार आदि से सम्बट अत्यन्त रोचक एवं उपादेव सामग्री है । गुप्त-युग की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए इनभाणों की उपयोगिता संदिग्ध है। चतुर्भाणी के सम्पादक. मोतीचन्द्र के अनुसार इनका समय चतुर्थ शताब्दी का अन्त एवं पांचवीं शताब्दी का प्रारम्भ है। इसके लेखकों ने तत्कालीन समाज के अभिजातवर्ग की कामुकता एवं विलासिता के ऊपर फबतियां कसते हुए उनका मजाक उड़ाया है। यत्रतत्र इनमें अश्लीलता भी दिखाई फड़ती है किन्तु विटों तथा आकाशभाषित पात्रों को संबादली की मनोहरा, हास्य एवं व्यंग्य के समक्ष यह दोष दब जाता है। 7. मोतीचन ने बताया है कि इनमें आधुनिक बनारसी दलालों, गुण्डों एवं मनचलों की भाषा का बाभास होता है। संस्कृत-साहित्य के इतिहास में चतुर्भाणी का, महत्त्व असंदिग्ध है। लेखकों ने तत्कालीन समाज के दुर्बल पक्ष पर व्यंग करते हुए अत्यन्त जीवन्त साहित्य की रचना की है। चतुर्भाणी का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन हिन्दी ग्रन्थ रलाकर बम्बई से
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy