SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता ] ( १६३ ) [ गीता 'ब्राह्मण', 'क्रमपाठ', 'शिक्षा', 'निरुक्त', 'दैवतग्रन्थ', 'शालाक्यतन्त्र', 'कामसूत्र' तथा 'भूवर्णन' । सुश्रुत के टीकाकार उल्हण के अनुसार गालव धन्वन्तरि के शिष्य थे । इनके पिता का नाम गलु या गलव माना जाता है । भगवद्दत्त जी के अनुसार ये शाकल्य के शिष्य थे । आधारग्रन्थ - १. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १ - पं० युधिष्ठिर मीमांसक २. वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग २ – पं० भगवद्दत्त । गीता - यह स्वतन्त्र ग्रन्थ न होकर 'महाभारत' के भीष्मपर्व का अंश है । इसका प्रणयन महर्षि वेदव्यास ने किया है । [ दे० व्यास ] इसमें ७०० श्लोक एवं १८ अध्याय हैं तथा नैतिक, व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक तीनों प्रकार की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया गया है । 'गीता' में मुख्यतः उपनिषद, सांख्य, कर्ममीमांसा, योग, पाचरात्र आदि के दार्शनिक तत्वों का अत्यन्त प्रान्जल एवं सुबोध भाषा में आध्यात्मिक समन्वय उपस्थित किया गया है । इसकी महत्ता इसी से प्रमाणित होती है कि भारतीय दार्शनिकों ने प्रस्थानत्रयी के अन्तर्गत इसे स्थान दिया और इसे वही गौरव प्राप्त हुआ जो 'ब्रह्मसूत्र' और उपनिषदों को मिला था । इस पर प्राचीन समय से ही अनेकानेक भाष्य लिखे गए और आधुनिक युग तक विद्वानों ने इस पर टीकाओं एवं भाष्यों की रचना की है । विभिन्न मतावलम्बी आचार्यों ने अपने मत की पुष्टि के लिए गीता पर भाष्य लिखकर अपने सिद्धान्त की श्रेष्ठता प्रमाणित की है जिनमें शंकर, रामानुज, तिलक, गांधी, अरविन्द, राधाकृष्णन एवं विनोबाभावे के नाम उल्लेखनीय हैं । न केवल भारत में अपितु विश्व के अनेक उन्नत देशों में भी गीता की लोकप्रियता बनी हुई है और संसार की ऐसी कोई भी भाषा नहीं है जिसमें इसका अनुवाद न हुआ हो । विश्व के अनेक विद्वानों ने मुक्तकण्ठ से इसकी प्रशंसा की है । विलियम बॉन हम्बोल्ट के अनुसार यह "सबसे सुन्दर और यथार्थ अर्थों में संभवतः एकमात्र दार्शनिक गीत है जो किसी ज्ञात भाषा में लिखा गया हो ।" गीता में कर्तव्यनिष्ठा का जो संदेश दिया गया है उसका क्षेत्र सार्वभौम है तथा उसका आधार हिन्दू धर्म का दार्शनिक विचार है । इसमें न केवल दार्शनिक विचारधारा का आख्यान किया गया है अपितु भक्ति के प्रति उत्साह तथा धार्मिक भावना की मधुरता का भी सम्यक् निरूपण है । गीता का स्वरूप-विधान दार्शनिक पद्धति एवं उच्च काव्यात्मक प्रेरणा का मध्यवर्ती है। इसमें दार्शनिक विचार को काव्य का रूप प्रदान किया गया है जिसके कारण इसका प्रभाव अखण्ड है तथा इसकी लोकप्रियता भी बनी हुई है । इसमें जीवन की समस्या का प्रयत्नसाध्य बौद्धिक समाधान प्रस्तुत किया गया है, अतः इसमें दार्शनिक सुझावों का रूप प्राप्त नहीं होता। इसकी योजना के पीछे मानसिक अव्यवस्था तथा आन्तरिक क्लेशों के निवारण की भावना क्रियाशील है तथा जीवन की जटिल परिस्थितियों का सामना करने के लिए सुदृढ़ आधार तैयार किया गया है । गीता की रचना ऐसे समय में हुई थी जब महाभारत का होने वाला था । पाण्डकें और कौरवों की सेनाएँ कुरुक्षेत्र के प्रलयंकरी संग्राम प्रारम्भ मैदान में आ डटी थीं।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy