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________________ गङ्गादेवी ( १६१ ) गंगेश उपाध्याय है और सूत तथा ऋषियों के वार्तालाप के रूप में रचित है। यह रचना अभी तक अप्रकाशित है। इसका विवरण तंजोर कैटलॉग ४०३५ में प्राप्त होता है। कवि ने पुस्तक के सम्बन्ध में इस प्रकार कहा है : भोजादिभिः कृतपदं कविभिमहद्भिश्चम्पूक्तिसौधमधिरोढुमहं यतिष्ये । निःशङ्कमम्बरतलं पततः पतंत्रिराजस्य मार्गमनुसतुमिवाण्डजोन्यः ।। ११५ आधार ग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी। __ गङ्गादेवी-ये संस्कृत की कवयित्री हैं। इन्होंने 'मधुराविजय' या 'वीरकम्परायचरित' नामक ऐतिहासिक काव्य की रचना की है। ये विजयनगर के राजा कम्पण की महिषी एवं महाराज बुक की पुत्रवधू थीं। इन्होंने वीर एवं पराक्रमी पति की विजययात्रा का इस महाकाव्य में वर्णन किया है। यह काव्य अधूरा है और आठ सौ तक ही प्राप्त होता है। इसकी शैली अलंकृत एवं शब्द चयन सुन्दर है । एक उदाहरण वनभुवः परितः पवनेरितैनवजपाकुसुमैः कुलदीपिकाः । प्रथममेव नृपस्य निदेशतो, बिजयिनस्तुरगाननिराजयन् ॥ गंगावतरण चम्पू प्रबन्ध-इस चम्पू के प्रणेता शंकर दीक्षित हैं। इनके विवरण के लिए दे० शंकर चेतोविलास चम्पू । इस चम्मू में कवि ने सात उच्छ्वासों में गंगावतरण की कथा का वर्णन किया है। इसकी शैली अनुप्रासमयी है। कवि ने प्रारम्भ में वाल्मीकि, कालिदास एवं भवभूति प्रभृति कवियों का भी उल्लेख किया है। इन्होंने 'प्रद्युम्न विजय' नामक ग्रन्थ की भी रचना की थी। 'गंगावतरणचम्पू' के अन्त में सगर-पुत्रों की मुक्ति का वर्णन किया गया हैकपिलमुनिसुकोपप्रौढदावानलोद्यल-ललिततरशिखाभिः प्लुष्ट सर्वांगसाराः । भसितलसितदेहाः सागरा वल्गुगंगा-चरणशरणचित्ता मुक्तिभावं गतास्ते ॥ ७।९५ ।। यह रचना अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण इण्डिया ऑफिस कैटलॉग ७,४०४।११४ डी० में प्राप्त होता है। आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी। गंगेश उपाध्याय-न्यायदर्शन के अन्तर्गत नव्यन्याय नामक शाखा के प्रवत्तंक प्रसिद्ध मैथिल नैयायिक आचार्य गंगेश उपाध्याय हैं। इन्होंने 'तस्वचिन्तामणि' नामक युगप्रवर्तक ग्रन्थ की रचना कर न्यायदर्शन में युगान्तर का आरम्भ किया था और उसकी धारा ही पलट दी थी। "नव्यन्याय' [ दे० न्यायदर्शन ] भारतीय दर्शन का अद्भुत सिद्धान्त है जिसमें भारतीय वैदुष्य एवं तकंपति का चरमविकास दिखाई पड़ता है। नव्यन्याय में प्राचीन नैयायिकों की सूत्रशैली का परित्याग कर स्वतन्त्र रूप से ग्रन्थ निर्माण किया गया है। इसमें पदार्थों (न्याय के षोडश पदार्थों, दे० न्यायदर्शन ) में से कुछ को अधिक महत्व दिया गया और कुछ की महत्ता कमे कर दी गयी। इस शाखा में प्रकरण ग्रन्थों की अधिक रचना हुई है। शास्त्र के एक अंश के प्रतिपादक तथा अन्य ११ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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