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________________ कौटिलीय अर्थशास्त्र] ( १५१ ) [अर्थशास्त्र की प्रामाणिकता सुनकर ही उसे अपनी प्रिया की स्मृति हो जाती है । यहाँ कांची नगरी से लेकर जयन्तमंगल (चेन्नमंगल ) तक के मार्ग का मनोरम चित्र अंकित किया गया है । इस काव्य की भाषा श्रृंगाररसोपयुक्त ललित एवं प्रसादगुणयुक्त है। प्रेमी का स्वयं कथन देखें अन्तस्तोषं मम वितनुषे हन्त ! जाने भवन्तं , स्कन्धावारप्रथमसुभटं पंचबाणस्य राज्ञः। कूजाव्याजादितमुपदिशन् कोकिलाव्याजबन्धो । कान्तैः साकं ननु घटयसे मानिनीर्मानभाजः ॥ १७ आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देशकाव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य । कौटिलीय अर्थशास्त्र-चाणक्य या कौटिल्य 'अर्थशास्त्र' के प्रणेता हैं। वे मौर्यसम्राट् चन्द्रगुप्त के मन्त्री एवं गुरु थे। उन्होंने अपने बुद्धिबल एवं अद्भुत प्रतिभा के द्वारा नन्दवंश का नाश कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। 'अर्थशास्त्र' में भी इस तथ्य के संकेत हैं कि कौटिल्य ने सम्राट चन्द्रगुप्त के लिए अनेक शास्त्रों का मनन एवं लोकप्रचलित शासनों के अनेकानेक प्रयोगों के आधार पर इस ग्रन्थ की रचना की थी। सर्वशास्त्राण्यनुक्रम्य प्रयोगमुपलभ्य च । कौटिल्येन नरेन्द्रार्थे शासनस्य विधिः कृतः ।। अर्थशास्त्र १०।२।६५ कौटिल्य के नाम की ख्याति कई नामों से है। चणक के पुत्र होने के कारण इन्हें चाणक्य कहा जाता है तथा कुटिल राजनीतिज्ञ होने से ये कौटिल्य के नाम से विख्यात हैं। ये दोनों ही नाम वंशज नाम या उपाधि नाम हैं, पितृप्रदत्त नाम नहीं। कामन्दक के 'नीतिशास्त्र' से ज्ञात होता है कि इनका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त था। नीतिशास्त्रामृतं धीमानर्थशास्त्रमहोदधेः ।। समुद्दधे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ॥६ अर्थशास्त्र की प्रामाणिकता-आधुनिक युग के कतिपय पाश्चात्य विद्वान् तथा भारतीय पण्डित भी इस मत के पोषक हैं कि अर्थशास्त्र चाणक्य विरचित नहीं है। जॉली, कीथ एवं विन्टरनित्स ने अर्थशास्त्र को मौर्यमन्त्री की रचना नहीं माना है । उनका कहना है कि जो व्यक्ति मौयं ऐसे विस्तृत साम्राज्य की स्थापना में लगा रहा उसे इतना समय कहाँ था जो इस प्रकार के ग्रन्थ की रचना कर सके। किन्तु यह कवन अनुपयुक्त है । सायणाचार्य ऐसे व्यस्त जीवन व्यतीत करने वाले महामन्त्री ने वेद भाष्यों की रचना कर इस कथन को असिद्ध कर दिया है। स्टाइन एवं विन्टरनित्स का कथन है कि मेगास्थनीज ने अपने भ्रमणवृत्तान्त में कौटिल्य की चर्चा नहीं की है। पर इस कथन का खण्डन डॉ. काणे ने कर दिया है । उनका कहना है कि "मेगास्थनीज की 'इण्डिका' केवल उद्धरणों में प्राप्य है, मेगास्थनीज को भारतीय भाषा का क्या शान था कि वह महामन्त्री की बातों को समझ पाता ? मेगास्थनीज को बहुत-सी बातें भ्रामक भी हैं। उसने तो लिखा है कि भारतीय लिखना नहीं जानते थे। क्या यह सत्य है ?" धर्मशास्त्र का इतिहास ( भाग १) पृ० ३० (हिन्दी अनुवाद ) । जाली, विन्टरनित्स तथा कीथ ने अर्थशास्त्र को तृतीय शताब्दी की रचना माना है, किन्तु
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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