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कुमारलात ]
( १४२ )
[ कुमारसम्भव चम्पू
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वे कामदेव को अपनी ओर बाण छोड़ने के लिए उद्यत देखते हैं और तृतीय नेत्र खोल कर उसे स्मभूत कर देते हैं चतुर्थ सगं में काम की पत्नी करुण विलाप करती है । वसन्त उसे सान्त्वना देता है पर वह सन्तुष्ट नहीं होती । वह वसन्त से चिता सजाने को कह कर अपने पति का अनुसरण करना ही चाहती है कि उसी समय आकाशवाणी उसे इस कार्य को करने से रोकती है। उसे अदृश्य शक्ति के द्वारा यह वरदान प्राप्त होता है कि उसका पति के साथ पुनर्मिलन होगा । पंचम सर्ग में उमा शिव की प्राप्ति के लिए तपस्या के निमित्त माता से आज्ञा प्राप्त करती है । वह फलोदय पर्यन्त घोर साधना में निरत होना चाहती है। माता-पिता के मना करने पर भी स्थिर निश्चय वाली उमा अन्ततः अपने हठ पर अटल रहती है और घोर तपस्या में संलग्न होकर नाना प्रकार के कष्टों को सहन करती है। उसकी साधना पर मुग्ध होकर बटुरूपधारी शिव का आगमन होता है और वे शिव के अवगुणों का विश्लेषण कर उमा का मन उनकी ओर से हटाने का अथक प्रयत्न करते हैं। पर, उमा अभीष्ट देव का उद्वेगजनक चित्रण सुनकर भी अपने पथ पर अडिग रहती है ब्रह्मचारी के आरोपों का प्रत्युत्तर देती है । तदनन्तर प्रसन्न होकर साक्षात् शिव प्रकट होते और उमा को आशीर्वाद देते हैं । षष्ठ सगं में शिव का सन्देश लेकर सप्तर्षिगण हिमवान् के पास आते हैं । मुनिगण शिव के पास जाकर उनकी स्तुति करते हैं और शिव उन्हें सन्देश देकर विदा करते हैं। सप्तम सर्ग में शिव-पार्वती विवाह का वर्णन है । शिव एवं उनकी बारात को देखने के लिए उत्सुक नारियों की चेष्टाओं का मनोरम वर्णन किया गया है। आठवें सर्ग में शिव-पार्वती का रति-विलास तथा कामशास्त्रानुसार आमोद-प्रमोद का वर्णन है। 'कुमारसंभव' में कवि की सौन्दर्य - भावना रूप-चित्रण एवं प्राकृत वर्णन में मुखरित हुई है। पार्वती के नख - शिख वर्णन में कवि ने अंग-अंग में रुचि लेकर उसके प्रत्येक अवयव का प्रत्यक्षीकरण कराया है ।
और उग्रता एवं तीक्ष्णता के साथ
आधारग्रन्थ - १. कालिदास ग्रन्थावली - अनु० पं० सीताराम चतुर्वेदी । २. कुमारसंभव (अष्ट सगं तक ) - संस्कृत हिन्दी टीका, चौखम्बा प्रकाशन ।
कुमारलात - बौद्धदर्शन के अन्तर्गत सौत्रान्तिक मत के ( दे० बोद्ध-दर्शन ) प्रतिष्ठापक आचार्य कुमारलात हैं । ये तक्षशिला के रहने वाले थे । बौद्ध परम्परा के अनुसार ये 'चार - प्रकाशमान सूर्यो' में हैं जिनमें अश्वघोष, देव एवं नागार्जुन आते हैं । इनका समय द्वितीय शतक है। इनके ग्रन्थ का नाम है 'कल्पना मण्डतिक दृष्टान्त' जो तुरफान में डॉ० लुडर्स को हस्तलिखित रूप में प्राप्त हुआ था । इस ग्रन्थ में आख्या - यिकाओं के माध्यम से बौद्धधर्म की शिक्षा दी गयी है। मूल ग्रन्थ गद्य में है किन्तु बीच-बीच में श्लोकों का भी संग्रह किया गया है। इस ग्रन्थ का महत्व साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में लेखक बौद्धधमं की किसी मान्य शिक्षा को उद्धृत कर उसके प्रमाण में आख्यायिका प्रस्तुत करता है ।
दे० बौद्धदर्शन - आ० बलदेव उपाध्याय ।
कुमारसम्भव चम्पू- इस चम्पूकाव्य के रचयिता शरफोजी द्वितीय ( शरभोजी ) हैं । इनका शासनकाल
तंजोर के शासक महाराज १८०० ई० से १८३२ तक