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________________ किरातार्जुनीयम् ] ( १३७ ) [ किरातार्जुनीयम् दर्शाया गया है। दांतों के नाम, उनकी उत्पत्ति आदि का विस्तृत वर्णन, फक्करोम (रिकेट ) तथा कटुतैल कल्प का वर्णन 'काश्यपसंहिता' की अपनी विशेषतायें हैं । - इसके अध्यायों के नाम 'चरकसंहिता' के ही आधार पर प्राप्त होते हैं- अतुल्यगोत्रीय ( चरक में ), असमानशारीरगोत्रीय ( काश्यप संहिता में ), गर्भाव क्रान्ति, जातिसूत्रीय । इसमें नाना प्रकार के धूपों एवं उसके उपयोग का महत्त्व बतलाया गया है । श्री सत्यपाल विद्यालङ्कार ने इसका हिन्दी अनुवाद किया है । आधारग्रन्थ - आयुर्वेद का बृहत् इतिहास - श्री अत्रिदेव विद्यालङ्कार । किरातार्जुनीयम् - महाकवि भारवि रचित महाकाव्य । [ दे० भारवि ] इसका कथानक 'महाभारत' पर आधृत है । इन्द्र तथा शिव को प्रसन्न करने के लिए की गयी अर्जुन की तपस्या ही इस महाकाव्य का वयं विषय है जिसे कवि ने १८ सर्गों में लिखा है | प्रथम सगं - इसकी कथा का प्रारम्भ द्यूतक्रीड़ा में हारे हुए पाण्डवों के द्वैतवन में निवास करने से हुआ है । युधिष्ठिर द्वारा नियुक्त किया गया वनेचर (गुप्तचर ) उनसे आकर दुर्योधन की सुन्दर शासन व्यवस्था, प्रजा के प्रति व्यवहार एवं रीति-नीति की प्रशंसा करता है । शत्रु की प्रशंसा सुनकर द्रौपदी का क्रोध उबल पड़ता है और वह युधिष्ठिर को कोसती हुई उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित करती है । द्वितीय सगं - भीम द्रौपदी की बातों का समर्थन कर कहते हैं कि पराक्रमी पुरुषों को ही समृद्धियाँ प्राप्त होती हैं । युधिष्ठिर उनके विचार का प्रतिवाद करते हैं । सगं के अन्त में व्यास का आगमन होता है । तृतीय सर्ग - युधिष्ठिर एवं व्यास के वार्ताक्रम में अर्जुन को शिव की आराधना कर पाशुपतास्त्र प्राप्त करने का आदेश मिलता है । व्यास अर्जुन को योग विधि बतलाकर अन्तर्धान हो जाते हैं। तभी व्यास द्वारा भेजा गया एक यक्ष प्रकट होता है और उसके साथ अर्जुन प्रस्थान करते हैं । चतुर्थ सर्ग - इन्द्रकील पर्वत पर का वर्णन । अर्जुन एवं यक्ष का प्रस्थान तथा शरद् ऋतु पञ्चम सर्ग - हिमालय का मोहक वर्णन तथा यक्ष द्वारा अर्जुन को इन्द्रियों पर संयम करने का उपदेश । षष्ठ सगं - अर्जुन संयतेन्द्रिय होकर घोर तपस्या में लीन हो जाते हैं और उनके व्रत में विघ्न उपस्थित करने के लिए इन्द्र की ओर से अप्सरायें भेजी जाती हैं । सप्तम सर्ग - गन्धवों एवं अप्सरायों का अर्जुन की तपस्या भंग करना । वन-विहार तथा पुष्पचयन का वर्णन । अष्टम सर्ग - अप्सराओं की जलक्रीड़ा का मोहक वर्णन । नवम सगं – सन्ध्या, चन्द्रोदय, मान, मान-भंग एवं द्वती-प्रेषण का मोहक वर्णन । दशम सर्ग - अप्सराओं की असफलता एवं गृह प्रयाण । एकादश सर्ग - अर्जुन की सफलता देखकर इन्द्र मुनि का वेश धारण कर आते हैं
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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