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________________ কি ] ( ११६ ) [कालिदास पर, यह अमान्य हो गया है क्योंकि ( ४७३ ई०) कुमारगुप्त की प्रशस्ति के रचयिता वत्समट्टि की रचना में ऋतुसंहार के कई पद्यों का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है। द्वितीय मत के अनुसार कालिदास गुप्त युग में हुए थे। इसमें भी दो मत हैंएक के अनुसार कालिदास कुमारगुप्त के राजकवि थे तथा द्वितीय मत में इन्हें चन्द्रगुप्त द्वितीय का राजकवि माना जाता है। प्रो० के० बी० पाठक ने इन्हें स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य का समकालीन कवि माना है। इनके अनुसार वलभदेव कृत निम्नांकित श्लोक ही इस मत का आधार है विनीताध्वश्रमास्तस्य सिन्धुतीरविचेष्टनः । दुधुवुर्वाजिनः स्कंधौल्लग्नकुंकुमकेसरान् ।। पाश्चात्य विद्वानों ने इन्हें शकों को पराजित कर भारत से निकालने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय का राजकवि माना है। रघुवंश के चतुर्थ सर्ग में वर्णित रघुविजय समुद्रगुप्त की दिग्विजय से साम्य रखता है तथा इन्दुमती के स्वयंवर में प्रयुक्त उपमा के वर्णन में चन्द्रगुप्त के नाम की ध्वनि निकलती है। ___ 'ज्योतिष्मती चन्द्रमसैव रात्रिः', 'इन्दुं नवोत्थानमिवेन्दुमत्यै [ इसमें चन्द्रमा एवं इन्दु शन्द चन्द्रगुप्त के द्योतक माने गए हैं ] पर, यह मत भी अप्रामाणिक हैं क्योंकि द्वितीय चन्द्रगुप्त प्रथम विक्रमादित्य नहीं थे और इनसे भी प्राचीन मालवा में राज्य करने वाले एक विक्रम का पता लगता है, अतः कालिदास की स्थिति गुप्तकाल में नहीं मानी जा सकती। तृतीय सिद्धान्त के अनुसार कालिदास ईसा के ५८ वर्ष पूर्व माने जाते हैं। कालिदास विक्रमादित्य के नवरत्नों में प्रमुख माने गए हैं। हाल की गाथा 'सप्तशती' में दानशील विक्रम नामक राजा का उल्लेख प्राप्त होता है । इस पुस्तक का रचनाकाल स्मिथ के अनुसार ७० ई० के आसपास है। संवाहण सुहरस-तोसिएण देन्तेण तुह करे लक्खम् । चलणेन विक्रमादित्त चरिअं अणुसिक्खि तिस्सा ॥ १६४ विद्वानों ने इसके आधार पर विक्रम का समय एक सौ वर्ष पूर्व माना है। इसी विक्रमादित्य को शकारि की उपाधि प्राप्त हुई थी। ईसा के १५० वर्ष पूर्व शकों के भारत पर आक्रमण का विवरण प्राप्त होता है अतः इससे 'शकारि' उपाधि की भी संगति में किसी प्रकार की बाधा नहीं पड़ती। भारतीय विद्वानों ने इस विक्रम को ऐतिहासिक व्यक्ति मान कर उनके दरबार में कालिदास की स्थिति स्वीकार की है। अभिनन्द ने अपने 'रामचरित' में इस बात का उल्लेख किया है कि कालिदास को शकारि द्वारा यश प्राप्त हुआ था। _ 'ख्याति कामपि कालिदासकृतयो नीतः शकारातिनां'। कालिदास के आश्रयदाता विक्रम का नाम महेन्द्रादित्य था। कवि ने अपने नाटक 'विक्रमोवंशीय' में अपने आश्रयदाता के नाम का संकेत किया है। बौद्धकवि अश्वघोष ने, जिनका समय विक्रम का प्रथम शतक है, कालिदास के अनेक पद्यों का अनुकरण किया है, इससे कालिदास का समय विक्रम संवत् का प्रथम शतक सिद्ध होता है ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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