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________________ कादम्बरी] कादम्बरी दूसरे को देखकर परस्पर प्रेम करने लगते हैं, पर पिता का पत्र पाकर चन्द्रापीड़ राजधानी लौट जाता है। उज्जयिनी पहुंचने पर चन्द्रापीड़ कादम्बरी की स्मृति में विकल हो उठता है। कुछ दिनों के उपरान्त पत्रलेखा नामक स्त्री के द्वारा उसे कादम्बरी का वृत्तान्त ज्ञात होता है। वह कादम्बरी की विरहावस्था का वर्णन कर उसका सन्देश सुनाती है । [ इसी प्रकरण से कादम्बरी का पूर्वभाग समाप्त हो जाता है ] बाणपुत्र ने आठ पद्यों में शिव, पार्वती, नरसिंह एवं विष्णु की प्रार्थना की है तदनन्तर अपने पिता को प्रणाम कर ग्रन्थ का शेषांश पूर्ण किया है। कादम्बरी की विरहावस्था का समाचार सुनकर चन्द्रापीड़ उससे मिलने को व्याकुल हो उठता है। तत्क्षण कादम्बरी का भेजा हुआ सन्देश लेकर केयूरक आता है और उसकी विरहावस्था का विस्तारपूर्वक वर्णन करता है। चन्द्रापीड़ द्रवित होकर गन्धर्व लोक में जाने को आतुर हो उठता है तभी उसे सुनाई पड़ता है कि उसकी सेना दशपुर तक लौट आयी है। वह पत्रलेखा से कादम्बरी के पास अपना सन्देश भेजकर पिता की आज्ञा से वैशम्पायन को वापस लाने के लिए चल पड़ता है, पर उसकी वैशम्पायन से भेंट नहीं होती। उसके पूछने पर अधिकारी वर्ग बताते हैं कि अच्छोद सरोवर पर पहुंचने के बाद वैशम्पायन को न जाने क्या हो गया है कि वह वहां से आने का भी नाम नहीं ले रहा है। चन्द्रापीड़ वैशम्पायन के विषय में विचार करता हुआ अपनी राजधानी उज्जयिनी चला आता है। पुनः वह माता-पिता की अनुमति लेकर अच्छोद सरोवर पर वैशम्पायन से मिलने के लिए चल पड़ता है। बहुत खोज करने के बाद भी उसे वैशम्पायन नहीं मिलता है तो वह महाश्वेता के आश्रम में चला जाता है। वहां उसकी शोकाकुल अवस्था में महाश्वेता से भेंट होती है। चन्द्रापीड़ के पूछने पर महाश्वेता बताती है कि उसकी एक ऐसे ब्राह्मण युवक से भेंट हुई है जो अपरिचित होते हुए भी उससे प्रणय-याचना करता है। पुण्डरीक से ही एकमात्र प्रेम करने वाली महाश्वेता अन्ततः उसे शुक हो जाने का शाप दे देती है। वैशम्पायन की मृत्यु हो जाती है तब महाश्वेता को ज्ञात होता है कि वह चन्द्रापीड़ का मित्र है। इस प्राणान्तक घटना के पश्चात् चन्द्रापीड़ की भी मृत्यु हो जाती है। कादम्बरी उसके शव को लेकर विलाप करती है तथा अपना भी शरीर-त्याग करना चाहती है। उसी समय आकाशवाणी होती है कि चन्द्रापीड़ का शरीर दिव्य-लोक में सुरक्षित है, अतः शाप की अवधि तक कादम्बरी उसके शरीर की सुरक्षा करे। उसी समय चन्द्रापीड़ के शरीर से चन्द्रमा की भाँति दिव्य ज्योति निकलती है। अचेत पड़ी हुई पत्रलेखा संज्ञा प्राप्त करने पर मृत चन्द्रापीड़ के लिए वाहन लाने के विचार से इन्द्रायुध के साथ अच्छोद सरावर मे कूद पड़ती है। उसी समय सरोवर से कपिजल निकलता है और महाश्वेता के पुण्डरीक के सम्बन्ध में पूछने पर वह उसकी मृत्यु के बाद की सारी घटना कहता है । जब कपिंजल पुण्डरीक के मृतक शरीर के साथ चन्द्रलोक में पहुंचा तो उसे ज्ञात हुआ कि उसके मित्र के शव को चन्द्रमा हो उठा ले गया है। चन्द्रमा द्वारा ज्ञात हुआ कि पुण्डरीक ने चन्द्रमा को भी शाप दे दिया कि जिस प्रकार तुमने मेरे प्रणय-प्रसंग को भंग करके मेरे प्राण-हरण किये हैं, उसी प्रकार तुम्हें भी प्रेम-पीड़ सहकर प्राण त्यागने होंगे।' इस
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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