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________________ कात्यायन स्मृति] (१०७) [कादम्बरी इनके अन्य ग्रन्थों के नाम हैं-'ध्रोजस्शकश्लोक', 'स्मृतिकात्यायन' तथा 'उभयसारिकाभाण'। आधारग्रन्थ-१. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १-५० युधिष्ठिर मीमांसक २ पतम्जलिकालीन भारतवर्ष-डॉ. प्रभुदयाल अग्निहोत्री । कात्यायन स्मृति-इस स्मृति के रचयिता कात्यायन नामक व्यक्ति हैं जो वात्तिककार कात्यायन से भिन्न सिद्ध होते हैं। डॉ० पी० वी० काणे के अनुसार इनका समय ईसा की तीसरी या चौथी शताब्दी है। कात्यायन का धर्मशास्त्रविषयक अभी तक कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हो सका है। विविध धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों में इनके लगभग ९०० सौ श्लोक उद्धृत हैं । दस निबन्ध ग्रन्थों में व्यवहार सम्बन्धी उद्धत एलोकों की संख्या नौ सौ मानी जाती है। एकमात्र 'स्मृतिचन्द्रिका' में ही इनके ६०० श्लोकों का उल्लेख है। जीवानन्द संग्रह में कात्यायन कृत ५०० श्लोकों का एक ग्रन्थ प्राप्त होता है जो तीन प्रपाठकों एवं २९ खण्डों में विभक्त है। इसके ईलोक अनुष्टप में हैं किन्तु कहीं-कहीं उपेन्द्रवजा का भी प्रयोग है। यही अन्य कर्मप्रदीप' या 'कात्यायनस्मृति' के नाम से विख्यात है। इसमें वर्णित विषयों को सूची इस प्रकार है-यज्ञोपवीत पहनने की विधि, जल का छिड़कना एवं जल से विविध अंगों का स्पर्श करना, प्रत्येक कार्य में गणेश तथा १४ मातृ-पूजा, कुश, बाढ-विवरण, पूताग्निप्रतिष्ठा, अरणियों, सुक् , सुव का विवरण, प्राणायाम, वेद-मन्त्रपाठ, देवता तथा पितरों का श्राद्ध, दन्तधावन एवं स्नान की विधि, सन्ध्या, महाह्निकयज्ञ, श्रादकर्ता का विवरण, मरण के समय का अशौच काल, पत्नीकर्तव्य एवं नाना प्रकार के श्राद । इस ग्रन्थ के अनेक उद्धरण मिताक्षरा एवं अपराक ने भी दिये हैं। इसका लेखक कौन है यह भी विवादास्पद है। आधारग्रन्थ-धर्मशास्त्र का इतिहास ( खण्ड १) डा० पी० वी० काणे हिन्दी अनुवाद । कादम्बरी-यह संस्कृत साहित्य का श्रेष्ठतम गवकाव्य है, जिसके रचयिता हैं महाकवि बाणभट्ट । (दे० बाणभट्ट) इसके दो भाग हैं-पूर्व भाग एवं उत्तर भाग । कहा जाता है कि पूर्व भाग बाण की रचना है और उत्तर भाग को उनके पुत्र (पुलिन्दभट्ट) ने पूर्ण किया है। इसके प्रारम्भ में बीस श्लोकों की प्रस्तावना है। प्रारम्भिक तीन श्लोकों में देवताओं की स्तुति है। तत्पश्चात् गुरु-वन्दना, खलनिन्दा आदि का. वर्णन कर, कवि स्ववंशक्रम का उल्लेख करता है। इसके बाद कथा का प्रारम्भ होता है। कवि ने विदिशा के राजा शूद्रक की राज-सभा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। एक चोण्डाल-कन्या वैशम्पायन नामक तोते को लेकर सभा में उपस्थित होती है । वह तोता पण्डित तथा मनुष्य की भांति बोलने वाला है। वह राजा की प्रशंसा करते हुए एक आर्या का पाठ करता है। राजा उसकी प्रतिभा पर मुग्ध होकर उसे अपनी कथा सुनाने को कहता है। तोता विस्तारपूर्वक विन्ध्याटकी, उसके आश्रम एवं पपसर का वर्णन कर शाल्मली तर के कोटर में अपने निवासस्थान का परिचय
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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