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________________ कठोपनिषद् ] ( ९४ ) [ कर्णभार में 'विजयिनी काव्य' की रचना की थी । गया ( बिहार ) के जिला स्कूल के शिक्षक पं० हरिनन्दन भट्ट कृत 'सम्राट्चरितम्' उत्कृष्ट कोटि का काव्य है, जिसमें पंचम जार्ज एवं मेरी का जीवनवृत्त वर्णित है [ दे० सम्राट्चरितम् ] पं० शिवकुमार शास्त्री (१८४८१९१९ ई० ) ने अपने ग्रन्थ 'लक्ष्मीश्वरप्रताप' में दरभंगा के राजाओं का वंशवृत्त उपस्थित किया है । संस्कृत में ऐतिहासिक काव्यों की रचना अभी भी होती जा रही है। पटना (बिहार) के प्रसिद्ध ज्योतिषी पं० विष्णुकान्त झा ने देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के ऊपर 'राजेन्द्र-वंश-वृत्तम्' नामक काव्य की रचना की है । संस्कृत का ऐतिहासिक महाकाव्य ऐतिहासिक तथ्यों, भाषागत सौष्ठव एवं कलात्मक वैभव के अतिरिक्त भावात्मक गरिमा के लिए प्रसिद्ध है और इसकी धारा अद्यावधि मन्द नहीं पड़ने पायी है । आधारग्रन्थ - १. संस्कृत साहित्य का इतिहास- डॉ० ए० बी० कीथ ( हिन्दी अनुवाद ) २. संस्कृत साहित्य का इतिहास - पं० बलदेव उपाध्याय ३. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर - दासगुप्त एवं डे ४. संस्कृत साहित्य नवीन इतिहास - कृष्ण चैतन्य ( हिन्दी अनुवाद ) ५. संस्कृत साहित्य का इतिहास - श्रीगैरोला ६ संस्कृत साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास- डॉ० रामजी उपाध्याय ७. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत क्लासिकल लिटरेचर - कृष्णामाचारियार । कठोपनिषद् - यह 'कृष्ण यजुर्वेद' की इसमें दो अध्याय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण । एवं प्रत्येक अध्याय में तीन-तीन बल्लियाँ हैं है । इसकी रचना नचिकेता और उद्दालक के गम्भीर अद्वैततस्व की स्थापना रूपक के द्वारा की गयी है । नचिकेता के विशेष रोचक आख्यान के रूप में हुई है तथा कठशाखा का अंश है। यह सभी उपनिषदों में इसकी रचना पद्य में हुई है । आग्रह पर उसे यमराज अद्वैततत्त्व की शिक्षा देते हैं । 'कठोपनिषद्' में सांख्य और योग के भी विचार उपलब्ध होते हैं । प्रथम अध्याय में श्रेय प्रेय का विवेचन, वैराग्य की प्रशंसा तथा अविद्या में लीन पुरुषों की दुर्दशा, निष्काम भाव की महिमा, परब्रह्म एवं परमात्मा की महिमा, नाम महत्त्व, आत्मा का स्वरूप, परमात्य स्वरूप, जीवात्मा एवं परमात्मा के नित्य सम्बन्ध, रथ ओर रथी के रूप में परमात्म-प्राप्ति के उपाय, इन्द्रियों को असत् मार्ग से रोक कर भगवान् की ओर लगाना तथा परमात्म-प्राप्ति के साधन का विवेचन है। द्वितीय अध्याय में परमेश्वर की सर्वरूपता एवं सर्वत्र परिपूर्णता, जीवात्मा की गति, परमेश्वर का स्वरूप एवं उसकी सर्वप्रकाशकता का प्रतिपादन, योग का स्वरूप एवं साधन, भगवद्विश्वास से भगवत्प्राप्ति, मृत्यु के पश्चात् जीव की गति तथा ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति आदि विषयों का वर्णन है । इसमें परमेश्वर को गूढ़, सर्वव्यापी, संसार के गहन वन गया है, जिसकी प्राप्ति मनुष्य हर्ष एवं शोक की आत्मविषयक योग-साधना मनःस्थिति से ऊपर उठ में छिपा हुआ तथा सनातन कहा से ही होती है। इस स्थिति में जाता है । कर्णभार - यह महाकवि भासविरचित नाटक है। के आधार पर कर्ण का चरित वर्णित है। महाभारत के इसमें 'महाभारत' की कथा युद्ध में द्रोणाचार्य की मृत्यु
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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