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________________ ऋतुसंहार ] [ऋतुसंहार ___ आधारमन्य-१. हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर-वेबर (चौखम्बा १६६६ ई.) २. हिस्ट्री ऑफ एनसिएन्ट संस्कृत लिटरेचर-मैक्समूलर ३. रिलीजन ऑफ दी वेदब्लूमफील्ड ४. लेक्चर्स ऑन ऋग्वेद-घाटे ( पूना) ५. वेदिक एज-भारतीय विद्याभवन, बम्बई ६. प्राचीन भारतीय साहित्य-भाग १, खण्ड १ विन्टरनित्स ७. वैदिकदर्शनकीथ (हिन्दी अनुवाद) ८. संस्कृत साहित्यक का इतिहास-मैक्डोनल ९. वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग-१-५० भगवदत्त १०. वैदिक साहित्यक-पं. रामगोविन्द त्रिवेदी ११. वैदिक साहित्य और संस्कृति-पं० बलदेव उपाध्याय १२. ऋग्वेद रहस्य-श्री अलगूराय शास्त्री १३. वैदिक सम्पत्ति-पं० रघुनन्दन शर्मा १४. वेद-रहस्य-श्री अरविन्द (हिन्दी अनुवाद ) १५. वैदिक विज्ञान और भारतीय संस्कृति-म० म० पं० गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी १६. वेदविद्या-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल १७. वेदिक बिब्लोओग्राफीभाग १, २-आर० एन० दान्डेकर १८. वैदिक इण्डिया-लूई रेनो १९. वैदिक संस्कृतिडॉ० मुन्शीराम शर्मा 'सोम' २०. वैदिक संस्कृति-हिन्दी-समिति, लखनऊ २१. वैदिक साहित्य-पब्लिकेशन, डिवीजन । - ऋतुसंहार-यह महाकवि कालिदास रचित ६ सर्गों का लघुकाव्य है, जिसके प्रत्येक सगं में एक ऋतु का वर्णन है । इसमें कवि ने ऋतुओं का मनोरम वर्णन उद्दीपन के रूप में किया है। कतिपय विद्वानों के अनुसार यह महाकवि कालिदास की प्रथम काव्य-कृति है क्योंकि इसमें महाकवि की अन्य काव्यों में उपलब्ध होनेवाली 'उच्चाशयता एवं अभिव्यक्ति की चारुता' के दर्शन नहीं होते । कवि ने अपनी प्रिया को सम्बोधित करते हुए छह ऋतुओं का वर्णन किया है । इसका प्रारम्भ ग्रीष्म की प्रचण्डता के वर्णन से हुआ है और समाप्ति हुई है वसन्त की मादकता में। इसके प्रत्येक सगं में १६ से २८ तक की श्लोक-संख्या प्राप्त होती है। ऋतुसंहार की भाषा सरल एवं बोधगम्य है तथा शैली में प्रसाद गुण की छटा प्रदर्शित हुई है। विद्वानों ने भाषाशैली की सहजता, उद्दाम-प्रेमभावना का चित्रण, ध्वनि का अभाव एवं नैतिक गुणराहित्य के कारण इसे कालिदास की रचना मानने में सन्देह प्रकट किया है। पर, कवि की युवावस्था की रचना होने के कारण उपर्युक्त सभी दोषों का मार्जन हो सकता है । इसके सम्बन्ध में अन्य आक्षेप हैं-मल्लिनाथ का इस पर टीका न लिखना एवं काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में इसका उद्धरण नहीं मिलना। इन आक्षेपों का कीथ महोदय ने युक्तियुक्त उत्तर दिया है । 'वास्तव में ऋतुसंहार कालिदास के सर्वथा योग्य है और यदि वह काव्य उनकी कृति न ठहराया जाय तो उनकी प्रसिद्धि को यथार्थ रूप में हानि पहुंचेगी। महिनाथ ने उनके अन्य तीन काव्यों पर टीका लिखी, परन्तु इस पर नहीं लिखी, इस आपत्ति का समाधान इस विचार से हो जाता है कि इसकी सरलता के कारण उस विद्वान् टीकाकार को टीका लिखना खिलवाड़ के समान प्रतीत हुआ। अलंकारशास्त्र के लेखक ऋतुसंहार में से उदरण नहीं देते, इस बात का भी सीधा उत्तर इसी तथ्य में निहित है, ये लेखक साधारण वस्तु में जरा भी रुचि प्रदर्शित नहीं करते और उदाहरणों को दिखाने के लिए वे बाद की कविताओं से भरपूर सामग्री प्राप्त कर सकते थे। संस्कृत साहित्य का इतिहास पृ० १०१, १०२ । वत्सभट्टि के
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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